ऑफ़बीट
‘मेरी बेटी सनी लियोनी बनना चाहती है’, देखिए किसने थामी पॉर्नस्टार की राह
मुंबई। अंडरवर्ल्ड और हॉरर पर फिल्में बनाना निर्माता–निर्देशक रामगोपाल वर्मा यानी रामू के लिए हमेशा पसंदीदा विषय रहे हैं। ज्वलंत और सामाजिक मुद्दों या महिला सशक्तीकरण को उन्होंने कभी अपनी फिल्मों में शामिल नहीं किया।
इस बार रामू ने शॉर्ट फिल्म बनाई है। ‘मेरी बेटी सनी लियोनी बनना चाहती है’ नामक यह फिल्म यू-ट्यूब पर जारी हुई है।
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साढ़े 11 मिनट की इस फिल्म में तीन किरदार हैं। एक युवती अपने माता-पिता को यह बताकर हैरान देती है कि वह सनी लियोनी बनना चाहती है। माता-पिता उससे सवाल करते हैं और लड़की तर्क सहित जवाब देती है। लड़की के जवाब ऐसे हैं कि सब अपनी समझ के हिसाब से उससे पक्ष या विपक्ष में होंगे।
यह रामू की पिछली फीचर फिल्मों से बेहतर है। बेहद बोल्ड और बिंदास तरीके से इसमें बात को समझाने की कोशिश की गई है। फिल्म में मकरंद देशपांडे, दिव्या जगदाले और नैना गांगुली मुख्य भूमिकाओं में हैं।
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अन्तर्राष्ट्रीय
नींद के कारण गलती से हुआ 1990 करोड़ से ज्यादा ट्रांसफर, जानें पूरी रिपोर्ट
जर्मनी। जर्मनी में लगभग 12 साल पहले एक बैंक में ऐसा अजीबोगरीब वाकया हुआ था जिसने सभी को हैरान कर दिया है। एक कर्मचारी काम के दौरान कंप्यूटर के की-बोर्ड पर उंगली दबाए हुए सो गया। इस गलती के कारण एक शख्स को 64.20 यूरो की जगह 222 मिलियन यूरो (करीब 1990 करोड़ रुपये से ज्यादा) ट्रांसफर हो गए। गनीमत रही कि एक अन्य कर्मचारी ने समय रहते इस गलती को पकड़ लिया जिसके बाद ट्रांजैक्शन को रोक दिया गया।
शुरू हुई कानूनी लड़ाई
यह घटना साल 2012 की है जो अब इंटरनेट पर वायरल हो रही है। मामले में सबसे हैरान करने वाली बात यह रही है क्लर्क की इस गलती पर सुपरवाइजर ने भी ध्यान नहीं दिया और इस ट्रांजैक्शन को अप्रूव कर दिया। ट्रांजैक्शन की जांच करने की जिम्मेदारी सुपरवाइजर की थी लिहाजा बैंक ने इस बड़ी गलती के लिए उसे जिम्मेदार ठहराते हुए नौकरी से निकाल दिया। मामला जर्मनी की लेबर कोर्ट तक पहुंचा और मामले में कानूनी लड़ाई शुरू हुई।
अदालत ने सुनाया फैसला
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जर्मनी के हेस्से स्टेट की लेबर कोर्ट की ओर से इस मामले में आदेश दिया गया। कोर्ट ने बैंक द्वारा कर्मचारी को नौकरी से निकालने के फैसले को गलत बताया। कोर्ट ने कहा कि यह गलती क्लर्क ने जानबूझकर नहीं की थी। अदालत की ओर से यह भी कहा गया कि कर्मचारी ने भले ही अपनी गलती पर ध्यान नहीं दिया लेकिन उसके कार्यों के लिए उसे बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा
कोर्ट ने यह भी कहा कि कर्मचारी पर समय का बहुत दबाव था, वह रोजाना सैकड़ों लेन-देन की समीक्षा करता था। कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात का भी जिक्र किया कि 222 मिलियन यूरो के गलत ट्रांजैक्शन वाली घटना के दिन कर्मचारी ने 812 डॉक्युमेंट्स को संभाला था और हर डॉक्युमेंट पर वो महज कुछ सेकेंड का समय ही दे पा रहा था। अदालत ने अपने आदेश में इस बात पर जोर दिया कि कर्मचारी की ओर से जानबूझकर की गई लापरवाही का कोई सबूत नहीं मिला। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में बर्खास्तगी के बजाय औपचारिक चेतावनी ही पर्याप्त थी।
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