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अन्तर्राष्ट्रीय

संयुक्त राष्ट्र में बान की मून को दी गई विदाई

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संयुक्त राष्ट्र में बान की मून को दी गई विदाई

संयुक्त राष्ट्र । संयुक्त राष्ट्र के निवर्तमान महासचिव बान की मून को शुक्रवार को विदाई दी गई। वह पिछले 10 वर्षो के इस पद पर थे। बान ने पद से विमुक्त होने से पहले संयुक्त राष्ट्र के स्टाफ का शुक्रिया अदा किया और उन्हें संयुक्त राष्ट्र से जुड़े मामलों पर मेहनत जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया।

इस दौरान संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी, राजनयिक, कर्मचारी दल सभी मौजूद थे।

बान ने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा कि वह शनिवार को न्यूयॉर्क सिटी के टाइम्स स्क्वायर में नए साल के जश्न के मौके पर रहेंगे।

वह इस दौरान दुनियाभर के लोगों को सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) का समर्थन करने का आह्वान करेंगे।

बान का कार्यकाल एक जनवरी 2007 को शुरू हुआ था और यह 31 दिसंबर 2016 को समाप्त हो रहा है।

बान की जगह पुर्तगाल के पूर्व प्रधानमंत्री एंटोनियो गुटेरेस एक जनवरी 2017 से महासचिव पद संभालेंगे।

अन्तर्राष्ट्रीय

इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास, पूरी तरह समझे कानून

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ब्रिटेन। इच्छामृत्यु को लेकर कई देशों में वाद-विवाद है, भारत में इच्छामृत्यु संबंधी कानून सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु के बीच अंतर करता है। देश में (India) घातक यौगिकों के प्रशासन सहित सक्रिय इच्छामृत्यु के रूप अभी भी अवैध हैं। लेकिन एक वक्त पर भारत पर राज करने वाले ब्रिटेन (Britain) ने इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास कर दिया है। ब्रिटेन का ये विधेयक गंभीर रूप से बीमार लोगों, जिनकी जीवन प्रत्याशा 6 महीने से कम है, वे अपनी इच्छा से खुद का जीवन खत्म कर सकते हैं। ये पूरी तरह से कानूनी होगा।

क्या होगा कानून

इस विधेयक के मुताबिक इसे लागू करने के लिए दो स्वतंत्र डॉक्टर्स और एक हाईकोर्ट के जज की सहमति भी जरूरी होगी। हालांकि मरीज को इच्छामृत्यु के इस फैसले के लिए मानसिक रूप से पहले सक्षम माना जाना चाहिए और ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वो किसी दबाव में तो नहीं। इसके अलावा मरीज को 2 बार अपनी मरने की इच्छा भी जतानी होगी। जिसके बीच कम से कम 7 दिनों का अंतर होना चाहिए।

विधेयक पर तीखी बहस

ब्रिटेन की संसद में इस बिधेयक को लेकर तो बहस हुई ही साथ ही अब जनता भी दो धड़ों में बंटी हुई दिखाई दे रही है। संसद में इस बिल के समर्थकों ने इसे मरीज का दर्द खत्म करने और गरिमा के साथ मौते देने का विकल्प बताया तो विरोधी पक्ष ने इसे कमजोर और बीमार लोगों के लिए जोखिम भरा बताया और इसके दुरुपयोग की संभावना जताई। बता दें कि ये विधेयक भले ही संसद से पास हो गया हो लेकिन इसे कानून बनने के लिए और भी समीक्षा प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। इसके बाद ही कानून का रूप ले पाएगा। अब विपक्ष समेत आधी जनता के विरोध को देखते हुए जानकारों का मानना है कि शायद ही ये विधेयक इतनी आसानी से कानून का रूप ले पाएगा। ​

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