अन्तर्राष्ट्रीय
चीन : शी की दूसरी किताब 16 देशों में प्रकाशित होगी
बीजिंग, 27 नवंबर (आईएएनएस)| राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भाषणों और विचारों की संग्रहण किताब ‘शी जिनपिंग : चीन का शासन’ को प्रकाशित और अनुवादित करने के लिए 16 देशों के प्रमुख प्रकाशक हाउसेस ने चीन के विदेशी भाषा प्रेस(एफएलपी) के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किया है। एफएलपी के अनुसार, ये देश इटली, पौलेंड, यूक्रेन, अल्बानिया, रोमानिया, केन्या, तजाकिस्तान, वियतनाम, पाकिस्तान, बांग्लादेश, कंबोडिया, लाओस, मंगोलिया, नेपाल, श्रीलंका और अफगानिस्तान हैं।
सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, चीनी और अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित ‘शी जिनपिंग : चीन का शासन’ का दूसरा अंक सात नंवबर को प्रकाशित हुआ था। चीनी सरकार इसे फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश भाषा में अनुवादित और प्रकाशित करने की प्रक्रिया में है।
नए अंक में शी के 99 भाषणों, बातचीत, सलाह और पत्रों का संकलन है। लेखों को 17 टॉपिकों में बांटा गया है और किताब में कुछ टिप्पणी भी है।
एफएलपी के अनुसार, नए प्रकाशित अंक से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को शी के विचारों को जानने में मदद मिलेगी।
‘शी जिनपिंग : चीन का शासन’ की पहली प्रति वर्ष 2014 में प्रकाशित हुई थी और 24 भाषाओं में इसकी लगभग 66 लाख प्रति विभिन्न देशों में बिकी थी।
अन्तर्राष्ट्रीय
इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास, पूरी तरह समझे कानून
ब्रिटेन। इच्छामृत्यु को लेकर कई देशों में वाद-विवाद है, भारत में इच्छामृत्यु संबंधी कानून सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु के बीच अंतर करता है। देश में (India) घातक यौगिकों के प्रशासन सहित सक्रिय इच्छामृत्यु के रूप अभी भी अवैध हैं। लेकिन एक वक्त पर भारत पर राज करने वाले ब्रिटेन (Britain) ने इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास कर दिया है। ब्रिटेन का ये विधेयक गंभीर रूप से बीमार लोगों, जिनकी जीवन प्रत्याशा 6 महीने से कम है, वे अपनी इच्छा से खुद का जीवन खत्म कर सकते हैं। ये पूरी तरह से कानूनी होगा।
क्या होगा कानून
इस विधेयक के मुताबिक इसे लागू करने के लिए दो स्वतंत्र डॉक्टर्स और एक हाईकोर्ट के जज की सहमति भी जरूरी होगी। हालांकि मरीज को इच्छामृत्यु के इस फैसले के लिए मानसिक रूप से पहले सक्षम माना जाना चाहिए और ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वो किसी दबाव में तो नहीं। इसके अलावा मरीज को 2 बार अपनी मरने की इच्छा भी जतानी होगी। जिसके बीच कम से कम 7 दिनों का अंतर होना चाहिए।
विधेयक पर तीखी बहस
ब्रिटेन की संसद में इस बिधेयक को लेकर तो बहस हुई ही साथ ही अब जनता भी दो धड़ों में बंटी हुई दिखाई दे रही है। संसद में इस बिल के समर्थकों ने इसे मरीज का दर्द खत्म करने और गरिमा के साथ मौते देने का विकल्प बताया तो विरोधी पक्ष ने इसे कमजोर और बीमार लोगों के लिए जोखिम भरा बताया और इसके दुरुपयोग की संभावना जताई। बता दें कि ये विधेयक भले ही संसद से पास हो गया हो लेकिन इसे कानून बनने के लिए और भी समीक्षा प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। इसके बाद ही कानून का रूप ले पाएगा। अब विपक्ष समेत आधी जनता के विरोध को देखते हुए जानकारों का मानना है कि शायद ही ये विधेयक इतनी आसानी से कानून का रूप ले पाएगा।
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