ऑफ़बीट
अनूठी बीयर बनाने को जमा कराई 50 हजार लीटर मानव पेशाब
कोपेनहेगेन। डेनिश कंपनी नोरब्रो ने एक नई किस्म की बीयर तैयार की है। इसका नाम है पिसनर। नई तरह की बीयर बनाने के लिए कंपनी ने एक म्यूजिक फेस्टिवल से 50 हजार लीटर मानव पेशाब जमा करवाई थी।
बेल्जियम यूनिवर्सिटी की एक टीम ने पिछले साल दावा किया था कि उन्होंने एक मशीन बनाई है जो पेशाब को पेयजल और उवर्रक में तब्दील कर देती है। इस तकनीक का इस्तेमाल ग्रामीण इलाक़ों और विकासशील देशों में किया जा रहा है।
शराब बनाने वाली कंपनी नोरब्रो का दावा है कि पेशाब की मदद से तैयार होने वाली इस बीयर में रत्ती भर भी मानवीय अपशिष्ट नहीं है। पीने वालों ने भी बताया है कि बीयर में मानवीय अपशिष्ट जैसे पेशाब का कोई स्वाद नहीं है।
पिसनर में लगी बार्ली यानी जौ को उगाने में खाद के रूप में इंसान के पेशाब का उपयोग किया गया था। आमतौर पर शराब या बीयर को बनाने में लगनी वाली चीजों में खाद के रूप में जानवरों के गोबर या फैक्ट्री में बने उवर्रक का इस्तेमाल किया जाता है।
बता दें कि पेशाब को दो साल पहले उत्तरी यूरोप के सबसे बड़े म्यूज़िक फेस्टिवल रोसकिले से स्टोर किया गया था। नोरेब्रो के सीईओ हेनरिक वांग ने कहा, ”जब हमने इस तरह से बीयर बनाने की जानकारी दी तो लोगों को लगा कि हम बीयर में सीधे पेशाब डाल रहे हैं, इसे सुनकर हमलोग खूब हंसे।’
इस आइडिया को ”बीयरसाइक्लिंग” कहा जा रहा है। 2015 के रोसकिले म्यूज़िक फेस्टिवल में शरीक होने वाले एंड्रेस स्जोग्रेन ने कहा कि इसे चखने पर तनिक भी पेशाब की तरह नहीं लगता है। मैंने इसे पिया है लेकिन कहीं से भी ऐसा नहीं लगा।”
इस 50 हज़ार लीटर पेशाब से जितनी बार्ली की उत्पादन हुआ उससे 60 हज़ार बोतल बीयर बनी है। दरअसल, पेशाब को बीयर बनाने की प्रक्रिया में शामिल करने वाली मशीन मौजूद है।
बेल्जियम यूनिवर्सिटी की एक टीम ने पिछले साल दावा किया था कि उन्होंने एक मशीन बनाई है जो पेशाब को पेयजल और उवर्रक में तब्दील कर देती है। इस तकनीक का इस्तेमाल ग्रामीण इलाक़ों और विकासशील देशों में किया जा रहा है।
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बिहार का ‘उसैन बोल्ट’, 100 किलोमीटर तक लगातार दौड़ने वाला यह लड़का कौन
चंपारण। बिहार का टार्जन आजकल खूब फेमस हो रहा है. बिहार के पश्चिम चंपारण के रहने वाले राजा यादव को लोगों ने बिहार टार्जन कहना शुरू कर दिया है. कारण है उनका लुक और बॉडी. 30 मार्च 2003 को बिहार के बगहा प्रखंड के पाकड़ गांव में जन्मे राज़ा यादव देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाना चाहते हैं.
लिहाजा दिन-रात एकक़र फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ रेसलिंग में जुटे हैं. राज़ा को कुश्ती विरासत में मिली है. दादा जगन्नाथ यादव पहलवान और पिता लालबाबू यादव से प्रेरित होकर राज़ा यादव ने सेना में भर्ती होने की कोशिश की. सफलता नहीं मिली तो अब इलाके के युवाओं के लिए फिटनेस आइकॉन बन गए हैं.
महज 22 साल की उम्र में राजा यादव ‘उसैन बोल्ट’ बन गए. संसाधनों की कमी राजा की राह में रोड़ा बन रहा है. राजा ने एनडीटीवी से कहा कि अगर उन्हें मौका और उचित प्रशिक्षण मिले तो वे पहलवानी में देश का भी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. राजा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने के लिए दिन रात मैदान में पसीना बहा रहे हैं. साथ ही अन्य युवाओं को भी पहलवानी के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
’10 साल से मेहनत कर रहा हूं. सरकार ध्यान दे’
राजा यादव ने कहा, “मेरा जो टारगेट है ओलंपिक में 100 मीटर का और मेरी जो काबिलियत है उसे परखा जाए. इसके लिए मैं 10 सालों से मेहनत करते आ रहा हूं तो सरकार को भी ध्यान देना चाहिए. मेरे जैसे सैकड़ों लड़के गांव में पड़े हुए हैं. उन लोगों के लिए भी मांग रहा हूं कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सुविधा मिले तो मेरी तरह और युवक उभर कर आएंगे.”
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