Connect with us
https://aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

नेशनल

अफसरशाहों की भरमार, दौड़ पड़ेगी मोदी सरकार!

Published

on

Loading

परंपरागत तरीकों से आगे की सोच, नए प्रयोग, राजनैतिक दबाव से इतर प्रधानमंत्री के तीसरे मंत्रिमंडल विस्तार को मिशन मोड कहना ज्यादा ठीक होगा।

जात-पात, राज्य, राजनैतिक पृष्ठभूमि, दबदबा जैसे ढर्रो को पीछे छोड़ नरेंद्र मोदी ने बता दिया कि कहीं पे निगाहें और कहीं पे निशाना है।

जाहिर है, अब मेक इन इंडिया से न्यू इंडिया का विजन है और मकसद 2019 आमचुनाव में ‘भाजपा’ के बलबूते सफलता का रिकॉर्ड बनाना। शायद इसीलिए मोदी ने घटक दलों- जदयू, एआईएडीएमके और शिवसेना की परवाह तक नहीं की!

आलोचक कुछ भी कहें, इरादे साफ हैं। जोखिम लेने की इसी आदत ने उन्हें सबसे जुदा बनाया। इसी अंदाज में रंगे मोदी ने उन मंत्रियों की छुट्टी में कोई कोताही नहीं बरती, जो उनके सपनों को साकार करने में विफल रहे। लेकिन, सुरेश प्रभु जैसे काबिलों को उन्होंने बख्शा, जो चाहकर भी कुछ खास नहीं कर सके।

हां, तीसरे विस्तार ने इतना संकेत तो दे ही दिया कि उनका भरोसा अफसरशाहों पर कहीं ज्यादा है। शायद वक्त की यही नब्ज है। विस्तार का सार कहीं यह तो नहीं कि अब है तजुर्बेकारों की सरकार?

चार नौकरशाहों- आर.के. सिंह, डॉ. सत्यपाल सिंह, के.जे. अल्फोंस और हरदीप सिंह पुरी को कैबिनेट में शामिल किया गया। अल्फोंस और पुरी सांसद नहीं हैं।

गौरतलब है कि अब के मंत्री और तब के सांसद आर.के. सिंह ने 23 जून, 2015 को भगोड़े ललित मोदी पर वसुंधरा राजे और सुषमा स्वराज का नाम लिए बिना कहा था, मैं एक बार नहीं, 10 बार बोलूंगा कि उसकी मदद करना गलत है। वहीं बिहार विधानसभा चुनावों में अपराधियों से पैसे लेकर टिकट बेचने के आरोप भी उन्होंने भाजपा नेतृत्व पर लगाए थे। आडवाणी का रथ बिहार के समस्तीपुर में रोककर उन्हें आर.के. सिंह ने ही गिरफ्तार किया था।

अल्फोंस ने डीडीए में रहकर अवैध निर्माणों पर सख्ती कर सुर्खियां बटोरीं और इनका झुकाव कम्युनिस्ट राजनीति की तरफ रहा है। लेकिन काबिलियत के पारखी मोदी को इनमें कुछ और ही नजर आता है। हां, धर्मेद्र प्रधान, पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण और मुख्तार अब्बास नकवी को उनकी योग्यता ने प्रमोशन दिलाया।

कुछ भी हो, साढ़े तीन साल के सफर में हमेशा चौंकाने वाले निर्णय मोदी की पहचान बने। ये बात अलग है कि महत्वपूर्ण फैसलों के नतीजे, इरादों से इतर रहे। मोदी ही थे, जिन्होंने राजनैतिक जीवन का कठोर फैसला लेकर निश्चित रूप से देशवासियों को एक बेहतर पैगाम तो दे ही दिया और एक झटके में 8 नवंबर 2016 को 86 फीसदी नकदी को चलन से बाहर कर दुनिया की 7वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के हर बालिग नागरिक को बैंकों की कतार में लगा दिया।

नोटबंदी, यानी आर्थिक आपातकाल से कारोबारी तिलमिला गए, शादी-ब्याह में अड़चनें आ खड़ी हुईं, सो से ज्यादा मौतें हुईं, लेकिन मोदी तो मोदी ठहरे। काले धन के लगाम पर 99 फीसदी बंद हुई करेंसी बैंकों में लौट आने पर काले और सफेद धन को लेकर प्रतिक्रियाएं चाहे जो आएं, लेकिन बड़ी ही खूबसूरती से कही डिजिटल अर्थव्यवस्था की बातों में देशवासियों को उलझाकर फिर विश्वास जीत लिया।

नोटबंदी से आतंकवाद और नक्सलवाद के खात्मे का दावा भले ही पूरा नहीं हुआ और ताजा रिपोर्ट में विकास दर पिछली तिमाही की तुलना में 6.1 प्रतिशत से नीचे गिरकर 5.7 पर आ गई, लेकिन वो मोदी ही हैं जो अब भी लगातार कड़े फैसले लेने से गुरेज नहीं कर रहे हैं।

हां, पिछले कैबिनेट के प्रदर्शन पर बाकायदा कॉपोर्रेटर तरीके अपनाए, एक्सेल सीट तैयार कर सबका खाता-बही बनाया, पॉजिटिव-निगेटिव अंकों से ग्रेडिंग की। स्किल इंडिया की विफलता से नई नौकरियों के मौके नहीं आने, साफ-सफाई पर दावों और हकीकत में अंतर, कैबिनेट की बैठकों के दौरान मंत्रियों की गैरहाजिरी, गैरजिम्मेदारी, लापरवाही और भ्रष्टाचार के पुख्ता आधारों ने कई मंत्रियों की एक्सल सीट को निगेटिव रंग से रंग दिया तो कइयों के विभाग भी बदले जाने की इबारत लिख दी।

इधर, एडीआर और नेशनल इलेक्शन वाच की ताजा रिपोर्ट ने भी कइयों की नींद उड़ा रखी होगी। कुल 4986 सांसदों-विधायकों में 4852 के शपथपत्रों के विश्लेषण में पाया गया कि करीब 33 फीसदी, यानी 1581 पर आपराधिक मामले हैं, जिनमें 3 सांसदों और 48 विधायकों पर महिला अत्याचार के आरोप हैं। ये सभी राजनैतिक दलों की कुल स्थिति है। जाहिर है, कुछ तो सत्ताधारी दल से भी होंगे।

मोदी का लक्ष्य अपने बूते 2019 की कामयाबी है। चार उपचुनाव के हालिया नतीजों ने भी उन्हें झकझोरा होगा। जहां अगला लक्ष्य 350 सीटें हैं, वहीं देशवासियों का मिजाज भी समझना जरूरी है। 21 महीने शेष हैं। समय कम और उपलब्धियों की लंबी जुगत का फेर। जाहिर है कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी को इंस्टैंट नतीजों के लिए नौकरशाहों की भी दरकार हो। शायद इसीलिए कुछ अलग, कुछ नया सा प्रयोग है आखिरी विस्तार। देखना है, कसौटी पर कितना खरा उतरता है!

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं)

Continue Reading

नेशनल

5.6 मिलियन फॉलोअर्स वाले एजाज खान को मिले महज 155 वोट, नोटा से भी रह गए काफी पीछे

Published

on

Loading

मुंबई। टीवी एक्टर और पूर्व बिग बॉस कंटेस्टेंट एजाज खान इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने उतरे थे। हालांकि जो परिणाम आए हैं उसकी उन्होंने सपने में भी उम्मीद नहीं की होगी। एजाज आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के टिकट पर वर्सोवा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे लेकिन उन्होंने अभी तक केवल 155 वोट ही हासिल किए हैं।

आपको जानकर हैरानी होगी कि नोटा को भी 1298 वोट मिल चुके हैं। इस सीट से शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के हारून खान बढ़त बनाए हुए हैं जिन्हें अबतक करीब 65 हजार वोट मिल चुके हैं।

बता दें कि ये वहीं एजाज खान हैं जिनके सोशल मीडिया पर 5.6 मिलियन फॉलोअर्स हैं। ऐसे में बड़ी ही हैरानी की बात है कि उनके इतने चाहने वाले होने के बावजूद भी  1000 वोट भी हासिल नहीं कर पाए। केवल 155 वोट के साथ उन्हें करारा झटका लगा है।

Continue Reading

Trending