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अन्तर्राष्ट्रीय

पूर्व एनएसए फ्लिन ने एफबीआई के समक्ष झूठी गवाही का अपराध कबूला

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वाशिंगटन, 2 दिसम्बर (आईएएनएस)| अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल फ्लिन ने ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले रूस के राजदूत से मिलने और इस संबंध में संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) से झूठ बोलने के अपराध को स्वीकार कर लिया है। माइकल फ्लिन राष्ट्रपति ट्रंप प्रशासन में सिर्फ 24 दिन ही पद पर रहे। रूस से संपर्क को लेकर उपराष्ट्रपति माइक पेंस के भ्रमित करने को लेकर उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

फ्लिन को पांच साल कैद तक की सजा हो सकती है।

अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट जज रूडोल्फ कोंट्रेरस के समक्ष सुनवाई के दौरान फ्लिन ने स्वीकार किया कि उन्होंने अमेरिका में रूस के राजदूत सर्गेइ से संपर्क साधने को लेकर एफबीआई के समक्ष गलत बयान दिए थे।

उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव 2016 में रूस की कथित भागीदारी की जांच कर रहे विशेष काउंसल रॉबर्ट म्यूलर से सहयोग करने का भी वादा किया।

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अन्तर्राष्ट्रीय

इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास, पूरी तरह समझे कानून

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ब्रिटेन। इच्छामृत्यु को लेकर कई देशों में वाद-विवाद है, भारत में इच्छामृत्यु संबंधी कानून सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु के बीच अंतर करता है। देश में (India) घातक यौगिकों के प्रशासन सहित सक्रिय इच्छामृत्यु के रूप अभी भी अवैध हैं। लेकिन एक वक्त पर भारत पर राज करने वाले ब्रिटेन (Britain) ने इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास कर दिया है। ब्रिटेन का ये विधेयक गंभीर रूप से बीमार लोगों, जिनकी जीवन प्रत्याशा 6 महीने से कम है, वे अपनी इच्छा से खुद का जीवन खत्म कर सकते हैं। ये पूरी तरह से कानूनी होगा।

क्या होगा कानून

इस विधेयक के मुताबिक इसे लागू करने के लिए दो स्वतंत्र डॉक्टर्स और एक हाईकोर्ट के जज की सहमति भी जरूरी होगी। हालांकि मरीज को इच्छामृत्यु के इस फैसले के लिए मानसिक रूप से पहले सक्षम माना जाना चाहिए और ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वो किसी दबाव में तो नहीं। इसके अलावा मरीज को 2 बार अपनी मरने की इच्छा भी जतानी होगी। जिसके बीच कम से कम 7 दिनों का अंतर होना चाहिए।

विधेयक पर तीखी बहस

ब्रिटेन की संसद में इस बिधेयक को लेकर तो बहस हुई ही साथ ही अब जनता भी दो धड़ों में बंटी हुई दिखाई दे रही है। संसद में इस बिल के समर्थकों ने इसे मरीज का दर्द खत्म करने और गरिमा के साथ मौते देने का विकल्प बताया तो विरोधी पक्ष ने इसे कमजोर और बीमार लोगों के लिए जोखिम भरा बताया और इसके दुरुपयोग की संभावना जताई। बता दें कि ये विधेयक भले ही संसद से पास हो गया हो लेकिन इसे कानून बनने के लिए और भी समीक्षा प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। इसके बाद ही कानून का रूप ले पाएगा। अब विपक्ष समेत आधी जनता के विरोध को देखते हुए जानकारों का मानना है कि शायद ही ये विधेयक इतनी आसानी से कानून का रूप ले पाएगा। ​

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