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मप्र कांग्रेस पर कॉर्पोरेट कल्चर हुआ हावी

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भोपाल, 24 मई (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में कांग्रेस भले ही सत्ता से डेढ़ दशक से बाहर हो, मगर अब उस पर कॉर्पोरेट कल्चर का कलर चढ़ने लगा है। आम कार्यकर्ता तो क्या जिलों के पदाधिकारियों तक का प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों से मेल-मुलाकात आसान नहीं रहा। पहले नेताओं के करीबी कारिंदों से मिलो, वे अनुमति दें तभी बड़े नेता तक पहुंचने का अवसर मिल पा रहा है।

कांग्रेस ने चुनाव से पहले प्रदेश की कमान पूर्व मंत्री और अनुभवी नेता कमलनाथ को सौंपकर बड़ा दांव चला है। कमलनाथ के राजनीति के चार दषकों के सफर में से लगभग तीन दशक केंद्र में मंत्री पद पर रहते हुए बीते हैं, लिहाजा उनकी राजनीति करने का अंदाज अलग है। वे संगठन से काफी दूर रहे हैं, अचानक चुनाव से पहले एक राज्य की कमान सौंपा जाना और फिर डगमगाते रथ को संभालना उनके लिए आसान नहीं हो रहा है।

राजनीतिक विश्लेषक भारत शर्मा कहते हैं कि कमलनाथ ने हमेशा केंद्र की राजनीति की है, वे केंद्र में कांग्रेस के प्रभावशाली नेता रहे हैं। जहां तक राज्य में राजनीति का सवाल है तो वे महाकौशल के अलावा कहीं भी ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। यह बात अलग है कि उनके समर्थक प्रदेश के लगभग हर हिस्से में है। संगठन की बड़ी जिम्मेदारी पहली बार उनके हाथ में आई है, लिहाजा उसे बेहतर तरीके से संचालित कर पाना आसान नहीं है।

राज्य में कांग्रेस की कमान अरुण यादव से कमलनाथ के हाथ में आने के बाद बीते एक माह में पदाधिकारियों में बदलाव का दौर ही पूरा नहीं हो पाया है। इतना ही नहीं अभी तक प्रदेश की कार्यकारिणी का गठन नहीं हो पाया है। कार्यकर्ता पार्टी दफ्तर पहुंचता है तो उसका अध्यक्ष से मिलना संभव नहीं हो पाता है।

बुंदेलखंड से भोपाल पहुंचे एक नेता ने बताया कि वह प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ से मुलाकात करने उनके बंगले पर पहुंचा तो दो ऐसे अफसर मिले जो स्वयं कमलनाथ से जुड़ा बताते हैं, सवाल करते हैं कि क्या साहब से समय लिया है और डांटते हुए कहा कि ये कोई घूमने फिरने की जगह नहीं है।

अध्यक्ष बदलने के साथ कार्यकर्ताओं को लगने लगा है कि पार्टी ही बदल गई है। एक पूर्व पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वे दो दशक से कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं, कई पदों पर रहे हैं, मगर यह पहला मौका है जब कार्यकर्ता और नेता के बीच दूरी नजर आ रही है। कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव तक पहुंचने में किसी तरह की बाधा नहीं आती थी, मगर अब तो हाल ही निराला है ।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि सवाल है कि, कमलनाथ ने बीते चार दशक में जिस तरह की राजनीति की है, उसमें कैसे बदलाव आ सकता है। उनको घेरे रखने वाले अफसर, अपने को कमलनाथ से बड़ा नेता मानते हैं, वे अब तक यह भूल ही नहीं पाए हैं कि उनके साहब अब केंद्र सरकार के मंत्री नहीं बल्कि पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी उन पर है। कमलनाथ और कार्यकर्ताओं के बीच दीवार के तौर पर खड़े रहने वालों के नजरिए में बदलाव नहीं आया तो कांग्रेस के लिए जमीनी जंग जीतना आसान नहीं होगा।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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