ऑफ़बीट
सलमा की शर्त सुन सकते में मुस्लिम समाज, जानिए किस शर्त की वजह से नहीं हो पा रहा निकाह
सोशल मीडिया में सलमा की एक शर्त काफी चर्चा का विषय बनी हुई है। पंजाब के लुधियाना में सलमा नाम की एक मुस्लिम महिला सलमा इस वक्त सुर्खियों में छाई हुई है। सलमा की शादी को लेकर हर कोई उत्सुक है। लुधियाना जिले के पायल कस्बे में रहने वाली सलमा ने अपनी शादी के लिए एक अजीबोगरीब शर्त रखी हुई है जिसकी वजह से 33 साल की सलमा की शादी अभी तक हो ना सकी है। आइए जानते हैं कौन है यह सलमा और क्या है इसकी अनोखी शर्त –
सलमा मुस्लिम समुदाय से होने के बावजूद गायों से बेहद प्यार करती हैं और गायों ने उनके इसी प्रेम के चलते उन्होंने गौशाला शुरू की। इतना ही नहीं गौशाला में उनकी गायों के अलग-अलग नाम भी है। नाम इतने निराले की सुनकर आपका दिल खुश हो जाएगा।
सबसे पहले वो एक बैल लेकर आई। उसने बैल का नाम नंदी रख दिया। कुछ दिनों बाद उसे एक और ऐसी गाय मिली, जिसे किसी ने लावारिस छोड़ दिया गया था। सलमा उस गाय को अपने घर ले आई और उसे गौरी नाम दिया। इसी तरह से उसके गौशाला में गायों की संख्या लगातार बढ़ने लगी और अब उसके पास करीब 33 गाएं हैं।
सलमा न केवल गौशाला चलाती हैं बल्कि उन्होंने अपनी गायों को अलग-अलग नाम भी दे रखा है। गायों का नाम हिंदू देवी-देवताओं के ऊपर है। सलमा की गौशाला में जगदंबा, पार्वती, दुर्गा, मीरा, सरस्वती, राधा, लक्ष्मी और तुलसी नाम वाली गायों के साथ-साथ एजाजा, आशू, जान, गुलबदन, कुमकुम, हनी नाम की गाएं भी हैं।
लोग सलमा के गौशाला को मुस्लिम गौशाला के नाम से जानते हैं। गायों से उसे बेहद लगाव है। दरअसल, सलमा की शर्त है कि वह सिर्फ उस व्यक्ति से निकाह करेंगी, जो इस गौशाला को चलाने के लिए तैयार होगा। इसी शर्त की वजह से शादी के 6 रिश्ते टूट गए हैं। लोग सलमा से अक्सर सवाल करते हैं कि वो मुस्लिम होकर गौशाला कैसे चला सकती हैं।
सलमा का जवाब बस यहीं होता है कि जानवरों का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें जानवरों से प्यार है और इसी लिए वो गायों को अपने पास रखती है। सलमा कहती हैं कि मैं गायों को पूजनीय नहीं मानती, लेकिन मैं उनसे प्रेम जरूर करती हूं।
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बिहार का ‘उसैन बोल्ट’, 100 किलोमीटर तक लगातार दौड़ने वाला यह लड़का कौन
चंपारण। बिहार का टार्जन आजकल खूब फेमस हो रहा है. बिहार के पश्चिम चंपारण के रहने वाले राजा यादव को लोगों ने बिहार टार्जन कहना शुरू कर दिया है. कारण है उनका लुक और बॉडी. 30 मार्च 2003 को बिहार के बगहा प्रखंड के पाकड़ गांव में जन्मे राज़ा यादव देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाना चाहते हैं.
लिहाजा दिन-रात एकक़र फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ रेसलिंग में जुटे हैं. राज़ा को कुश्ती विरासत में मिली है. दादा जगन्नाथ यादव पहलवान और पिता लालबाबू यादव से प्रेरित होकर राज़ा यादव ने सेना में भर्ती होने की कोशिश की. सफलता नहीं मिली तो अब इलाके के युवाओं के लिए फिटनेस आइकॉन बन गए हैं.
महज 22 साल की उम्र में राजा यादव ‘उसैन बोल्ट’ बन गए. संसाधनों की कमी राजा की राह में रोड़ा बन रहा है. राजा ने एनडीटीवी से कहा कि अगर उन्हें मौका और उचित प्रशिक्षण मिले तो वे पहलवानी में देश का भी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. राजा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने के लिए दिन रात मैदान में पसीना बहा रहे हैं. साथ ही अन्य युवाओं को भी पहलवानी के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
’10 साल से मेहनत कर रहा हूं. सरकार ध्यान दे’
राजा यादव ने कहा, “मेरा जो टारगेट है ओलंपिक में 100 मीटर का और मेरी जो काबिलियत है उसे परखा जाए. इसके लिए मैं 10 सालों से मेहनत करते आ रहा हूं तो सरकार को भी ध्यान देना चाहिए. मेरे जैसे सैकड़ों लड़के गांव में पड़े हुए हैं. उन लोगों के लिए भी मांग रहा हूं कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सुविधा मिले तो मेरी तरह और युवक उभर कर आएंगे.”
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