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बीजेपी की हार पहले ही भांप गए थे अटल, आधी रात को करीबी से कही थी ये बात
नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर लंबे समय तक उनके सहायक रहे शिवकुमार पारीक ने अहम खुलासे किए हैं। पारीक ने 2004 के लोकसभा चुनाव पर खुलासा करते हुए बताया कि अटल को लोकसभा चुनाव के परिणाम आने से पहले ही आभास हो गया था कि बीजेपी चुनाव हारने वाली है। पारीक का यह बयान तब आया है जब भाजपा लोकसभा 2019 के चुनाव को लेकर जोर शोर से तैयारी कर रही है।
पारीक के मुताबिक जो तालमेल भाजपा और कार्यकर्ता के बीच अटल जी के समय था वह वर्तमान समय में कहीं गुम सा हो गया है। पांच दशकों तक वाजपेयी के साथ सुख-दुख में साथ रहे शिव कुमार ने आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में कहा, 2004 में मिली हार के पीछे दो कारण थे।
पहला ‘इंडिया शाइनिंग’ नारा, जो हमारे खिलाफ गया। दूसरा जल्द चुनाव कराने का फैसला। हालांकि अटलजी जल्द चुनाव कराने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन पार्टी ने फैसला ले लिया।
उन्होंने खुलासा किया कि वाजपेयी को 2004 में अपने अंतिम चुनाव में वोट डालने से एक दिन पहले भाजपा की हार का आभास हो गया था।
वाजपेयी लखनऊ में चुनाव अभियान से तकरीबन आधी रात को लौटे थे और शिवकुमार से कहा था, सरकार तो गई। हम हार रहे हैं।उन्होंने कहा, जब मैंने कहा कि हम नहीं हार सकते तो वाजपेयी ने कहा, आप कौन सी दुनिया में जी रहे हो? मैं लोगों के बीच प्रचार अभियान चलाकर आया हूं।
भाजपा एक बार फिर सत्ता में है और अगले चुनाव का सामना करने के लिए कमर कस रही है। मोदी सरकार का कामकाज आपको कैसा लग रहा है? वह वाजपेयी के दिखाए रास्ते पर चल रही है या नहीं? इस सवाल पर शिवकुमार ने कहा, यह एक राजनीतिक सवाल है। जब मैं किसी की तारीफ करता हूं तो मुझे उसे खुले दिल से करना चाहिए और जब मैं किसी की आलोचना करता हूं तो उसे भी उसी तरीके से करूंगा।
उन्होंने कहा, अटल जी के रास्ते पर चलने का मतलब उनकी तरह जिंदगी जीने, हर किसी के साथ वैसा व्यवहार करना, जैसा उन्होंने किया और बतौर प्रधानमंत्री उनके जैसा कार्य करना है। मुझे उम्मीद है कि मोदी उस रास्ते पर चलेंगे।
उन्होंने कहा कि यह वाजपेयी की रखी नींव ही थी, जिस कारण भाजपा ने न केवल 2014 में आधी से ज्यादा सीटों पर कब्जा जमाया, बल्कि अपने दम पर बहुमत पाने वाली पहली गैर कांग्रेस पार्टी भी बनी। केंद्र के अलावा भाजपा 19 राज्यों में सत्ता पर काबिज है। अगर नींव मजबूत हो तो ढांचा भी स्थायी होगा।
यह पूछने पर कि क्या देश दूसरे वाजपेयी को देख सकता है? शिव कुमार ने कहा, मेरा विश्वास है कि एक शिल्पकार किसी भी मूर्ति की रचना कर सकता है, चाहे वह भगवान राम की हो या हनुमान या फिर मां दुर्गा की, लेकिन लोग तब तक सिर नहीं झुकाएंगे जब तक उसे मंदिर में स्थापित न कर दिया जाए।
उन्होंने कहा, अटलजी ने कार्यकर्ताओं के साथ भी वही किया। वर्तमान स्थिति में किसी ने भी ऐसा नहीं किया। वाजपेयी युग के दौरान पार्टी और कार्यकर्ताओं के बीच जो समन्वय था, वह अब गुम हो चुका है।
शिवकुमार ने कहा कि मोदी सरकार अच्छा काम कर रही है और वाजपेयी की पहलों को आगे ले जा रही है। इस सरकार ने कई नई योजनाएं शुरू की हैं। वर्ष 2019 में देश के लोग इस सरकार का फैसला करेंगे।
उन्होंने इस बात को खारिज कर दिया कि वाजपेयी ने 2004 में मिली चौंकाने वाली हार के कारण खुद के सक्रिय राजनीति से अलग कर लिया।
शिवकुमार ने कहा, अटलजी को हार और जीत से कोई फर्क नहीं पड़ता था। आपने उनकी प्रसिद्ध कविता सुनी होगी..न हार में न जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं। हार के बाद उन्होंने मुंबई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शिरकत की, जहां उन्होंने सक्रिय राजनीति से अपनी सेवानिवृत्ति की घोषणा की। उसके बाद उन्होंने अपने करीबियों के निजी समारोहों में जाने तक ही खुद को सीमित कर लिया। वह 2007 के राष्ट्रपति चुनाव में भैरों सिंह शेखावत के खड़े होने तक राजनीति में सक्रिय रहे थे।
यह पूछे जाने पर कि वाजपेयी क्या सचमुच चाहते थे कि गोधरा दंगों के बाद मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाए, शिवकुमार ने कहा, वाजपेयी चाहते थे कि वह (मोदी) राजधर्म निभाएं (कानून का राज स्थापित करें)।
शिवकुमार ने वाजपेयी को बहुत करीब से देखा था। उन्होंने कहा कि दिवंगत नेता का जीवन एक खुली किताब की तरह था। वाजपेयी के निधन पर उन्होंने कहा, अब मैं एक अनाथ हूं। वाजपेयी की राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि के समय उनके परिवार के सदस्यों के अलावा शिवकुमार ही अकेले ऐसे शख्स थे, जिन्हें चिता के समीप जाने की अनुमति मिली थी।
शिवकुमार ने कहा, मैं एक आरएसएस कार्यकर्ता था। बाद में मैं जनसंघ का कार्यकर्ता बना। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संदिग्ध परिस्थितियों में निधन के बाद मैं अटलजी से मिला और केयरटेकर के रूप में उनके साथ काम करने की मैंने इच्छा जताई। पहले तो उन्होंने कोई वचन नहीं दिया, आखिरकार वह मान गए और मैंने 1967 से उनके साथ काम करना शुरू किया।
उन्होंने बताया कि किस तरह वह वाजपेयी की अंतिम सांस तक उनसे जुड़े रहे।
उन्होंने कहा, अगर आपको भगवान राम के सुविचार, प्रभु कृष्ण की ऊर्जा और चाणक्य की नीतियां किसी एक व्यक्ति में तलाशें, तो वह अटल बिहारी वाजपेयी थे।
शिवकुमार के अनुसार, प्रधानमंत्री पद छोड़ने के बाद से लेकर अस्पताल में भर्ती होने समय तक लगातार 14 साल वाजपेयी ने 3, कृष्ण मेनन मार्ग वाले आवास में गुजारे। उस दौरान वह टीवी पर सिनेमा देखते थे, गीत सुनते थे और मराठी नाटक देखते थे
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कौन है नारायण सिंह चौरा ? जिसने पूर्व मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल की हत्या करने का प्रयास किया
अमृतसर। शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल को बुधवार को पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के बाहर ‘सेवादार’ की ड्यूटी करते समय एक शख्स ने गोली मार दी। गोली दीवार पर लगने से व्हीलचेयर पर बैठे सुखबीर सिंह बादल बाल बाल बच गये। आखिर किस शख्स ने सुखबीर सिंह बादल पर गोली चलाई और उसका मकसद क्या था। तो बता दें कि फायरिंग करने वाले शख्स का नाम नारायण सिंह चौरा है जिसने गोली चलाई जिससे हड़कंप मच गया और तुरंत ही स्वर्ण मंदिर के बाहर खड़े कुछ लोगों ने उसे पकड़ लिया।
कौन हैं नारायण सिंह चौरा?
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, नारायण सिंह चौरा एक खालिस्तानी पूर्व आतंकवादी है, जिस पर पहले भी कई मामले दर्ज हुए हैं और वह भूमिगत रहा है। चौरा, कुछ वर्षों तक पंथिक नेता के रूप में सक्रिय था, वह डेरा बाबा नानक क्षेत्र से हैं। मंगलवार को वह सफेद कुर्ता-पायजामा पहनकर सुखबीर बादल के पास घूमता भी दिखाई दिया था। वह बुड़ैल जेलब्रेक का मास्टरमाइंड था। चौरा ने बब्बर खालसा इंटरनेशनल के आतंकवादियों जगतार सिंह हवारा और परमजीत सिंह भियोरा को उनके दो साथियों जगतार सिंह तारा और देवी सिंह के साथ बुड़ैल जेल से भागने में मदद की थी। उसने जेल की बिजली सप्लाई काफी देर के लिए बंद कर दी थी।
जानिए पाकिस्तान से चौरा का कनेक्शन
कथित तौर पर नारायण सिंह चौरा 1984 में पंजाब में आतंकवाद के शुरुआती चरण के दौरान पाकिस्तान भाग गया था। वहां उसने भारत में हथियारों और विस्फोटकों की बड़ी खेप की तस्करी में अहम भूमिका निभाई। पाकिस्तान में, उन्होंने कथित तौर पर गुरिल्ला युद्ध और देशद्रोही साहित्य पर एक किताब भी लिखी थी। चौरा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह हत्याकांड में संदिग्ध था।
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