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अन्तर्राष्ट्रीय

अफगानिस्तान में बर्बर आतंक, स्कूल में बम विस्फोट; 100 बच्चों की भयवाह मौत

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अफगानिस्तान

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काबुल। अफगानिस्तान में बर्बरता का एक और नमूना सामने आया है। तालिबान शासन में बम धमाकों की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, राजधानी काबुल में एक स्कूल में आत्मघाती बम विस्फोट में कम से कम 100 बच्चों की मौत हो गई। स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि रिपोर्टिंग के दौरान दिखे दृश्य ने मानवीय संवेदनाओं को हिलाकर रख दिया। स्कूल के आस-पास शवों को पहचानना भी मुश्किल हो रहा था। कहीं हाथ पड़े थे, कहीं पैर।

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, विस्फोट शहर के पश्चिम में दश्त-ए-बारची इलाके में काज स्कूल में हुआ। एक स्थानीय पत्रकार बिलाल सरवरी ने इस हमले पर ट्वीट किया, “हमने अब तक अपने छात्रों के 100 शवों की गिनती की है। मारे गए छात्रों की संख्या बहुत अधिक है। कक्षा खचाखच भरी थी। वे छात्र विश्वविद्यालय में दाखिले की तैयारी के लिए जमा हुए थे।”

एक स्थानीय पत्रकार के अनुसार, इस घटना में ज्यादातर छात्र हैं, जिनमें अधिकतर हजारा और शिया थे, जो मारे गए। हजारा अफगानिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है।

सड़क पर बिखरे पड़े हाथ-पैर

लेखक ने भयावहता को याद करते हुए कहा कि काज उच्च शिक्षा केंद्र के एक शिक्षक ने बच्चों के अंगों को उठाया। कहीं हाथ पड़े थे, कहीं पैर। ट्विटर पर विस्फोट से पहले का एक वीडियो भी साझा किया गया था जहां आतंकियों ने बम धमाका किया था।

अन्तर्राष्ट्रीय

इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास, पूरी तरह समझे कानून

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ब्रिटेन। इच्छामृत्यु को लेकर कई देशों में वाद-विवाद है, भारत में इच्छामृत्यु संबंधी कानून सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु के बीच अंतर करता है। देश में (India) घातक यौगिकों के प्रशासन सहित सक्रिय इच्छामृत्यु के रूप अभी भी अवैध हैं। लेकिन एक वक्त पर भारत पर राज करने वाले ब्रिटेन (Britain) ने इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास कर दिया है। ब्रिटेन का ये विधेयक गंभीर रूप से बीमार लोगों, जिनकी जीवन प्रत्याशा 6 महीने से कम है, वे अपनी इच्छा से खुद का जीवन खत्म कर सकते हैं। ये पूरी तरह से कानूनी होगा।

क्या होगा कानून

इस विधेयक के मुताबिक इसे लागू करने के लिए दो स्वतंत्र डॉक्टर्स और एक हाईकोर्ट के जज की सहमति भी जरूरी होगी। हालांकि मरीज को इच्छामृत्यु के इस फैसले के लिए मानसिक रूप से पहले सक्षम माना जाना चाहिए और ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वो किसी दबाव में तो नहीं। इसके अलावा मरीज को 2 बार अपनी मरने की इच्छा भी जतानी होगी। जिसके बीच कम से कम 7 दिनों का अंतर होना चाहिए।

विधेयक पर तीखी बहस

ब्रिटेन की संसद में इस बिधेयक को लेकर तो बहस हुई ही साथ ही अब जनता भी दो धड़ों में बंटी हुई दिखाई दे रही है। संसद में इस बिल के समर्थकों ने इसे मरीज का दर्द खत्म करने और गरिमा के साथ मौते देने का विकल्प बताया तो विरोधी पक्ष ने इसे कमजोर और बीमार लोगों के लिए जोखिम भरा बताया और इसके दुरुपयोग की संभावना जताई। बता दें कि ये विधेयक भले ही संसद से पास हो गया हो लेकिन इसे कानून बनने के लिए और भी समीक्षा प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। इसके बाद ही कानून का रूप ले पाएगा। अब विपक्ष समेत आधी जनता के विरोध को देखते हुए जानकारों का मानना है कि शायद ही ये विधेयक इतनी आसानी से कानून का रूप ले पाएगा। ​

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