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उत्तर प्रदेश

17 सितम्बर से 02 अक्टूबर पूरे प्रदेश में चलाया जाएगा स्वच्छता अभियान

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश को स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर नगर विकास विभाग आगामी 17 सितंबर से 2 अक्तूबर तक पूरे प्रदेश में स्वच्छता अभियान चलाने जा रहा है। राष्ट्र को स्वच्छता का संदेश देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 155वें जन्मदिवस के अवसर पर स्वच्छता ही सेवा पखवाड़ा के तहत समस्त नगरीय निकायों में 155 घंटे का नॉन-स्टॉप सफाई अभियान चलाकर श्रद्धांजलि दी जाएगी। 15 दिवसीय यह अभियान दैनिक आधार पर थीम आधारित आईईसी गतिविधियों के माध्यम से संपन्न कराया जाएगा।

नगर विकास विभाग को मुख्यमंत्री ने साफ निर्देश दिए है कि अभियान के दौरान प्रदेश के सभी शहरों को स्वच्छ रखा जाए। इस बार स्वच्छता ही सेवा वर्ष-2024 अभियान की थीम ‘स्वभाव स्वच्छता-संस्कार स्वच्छता’ है। स्वच्छता की भागीदारी के अंतर्गत मंत्रिगण, जनप्रतिनिधियों, अधिकारीगणों एवं स्वयं सेवी संस्थाओं व स्कूल कॉलेजों द्वारा विभिन्न स्थलों पर श्रमदान करते हुए साफ-सफाई का आयोजन किया जाएगा। युवाओं की भागीदारी एवं स्वच्छता की जागरूकता के लिए विभिन्न आईईसी कार्यक्रम कराए जाएंगे। आईईसी कार्यक्रम के तहत प्लॉगरन, मैराथन, साईक्लॉथान, पौधरोपड़, जीरो वेस्ट इवेंट के साथ ही स्वच्छ वातावरण प्रोत्साहन समिति के सदस्यों द्वारा वार्डों में जन-जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। यह भी बताया गया कि वर्तमान में लगभग 5000 स्वच्छ सारथी क्लब प्रदेश में स्थापित किये गये हैं। विभिन्न अभियानों के माध्यम से क्लबों की सहभागिता करायी जायेगी। स्कूल परिसरों को प्लास्टिक मुक्त, शिक्षण संस्थानों के परिसर की साफ-सफाई तथा छात्रों को स्वच्छता की प्रतिज्ञा दिलायी जायेगी।

संपूर्ण स्वच्छता अभियान के अंतर्गत बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्थान, सरकारी कार्यालय, बाजार, शिक्षण संस्थानों, चिड़ियाघर, गंगा टाउन-घाट, जल निकाय, पर्यटन स्थल, धार्मिक, आध्यात्मिक विरासत स्थल, सभी शौचालयों आदि में स्वच्छता गतिविधियां संचालित की जाएंगी। प्रत्येक वार्ड में स्वच्छ वातावरण प्रोत्साहन समिति का गठन किया गया है, जो प्रत्येक वार्ड में स्वच्छ घर हेतु सर्वेक्षण में भूमिका निभाएगी व प्रत्येक वार्ड में सर्वश्रेष्ठ 3 घरों को प्रशस्ति पत्र से सम्मानित करेगी। साथ ही प्रत्येक वार्ड में उत्कृष्ट कार्य करने वाले सफाई कर्मियों को सम्मानित भी किया जायेगा। सफाई मित्र सुरक्षा शिविर के अंतर्गत स्वच्छता कर्मियों की स्वास्थ्य जांच और स्वास्थ्य बीमा कराया जायेगा तथा उनके लिए उपलब्ध सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूक किया जायेगा।

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उत्तर प्रदेश

कश्मीर से लेकर पंजाब तक लोगों का रास आ रही कुशीनगर के केले की मिठास

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लखनऊ। योगी सरकार द्वारा एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) घोषित बुद्ध महापरिनिर्वाण की धरती कुशीनगर के केले की मिठास पंजाब से लेकर कश्मीर तक के लोग ले रहे हैं। दिल्ली, मेरठ, गाजियाबाद, चंडीगढ़, लुधियाना और भटिंडा तक जाता है कुशीनगर का केला।
यही नहीं गोरखपुर मंडल से संबद्ध सभी जिलों और कानपुर में भी कुशीनगर के केले की धूम है। नेपाल और बिहार के भी लोग कुशीनगर के केले के मुरीद हैं।

कुशीनगर में करीब 16 हजार हेक्टयर रकबे पर हो रही केले की खेती

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के मुताबिक यहां के किसान फल और सब्जी दोनों के लिए केले की फसल लेते हैं। इनके रकबे का अनुपात 70 और 30 फीसद का है। खाने के लिए सबसे पसंदीदा प्रजाति जी-9 और सब्जी के लिए रोबेस्टा है। जिले में लगभग 16000 हेक्टेयर में केले की खेती हो रही है।

ओडीओपी घोषित होने के बाद और बढ़ा केले की खेती का क्रेज

योगी सरकार द्वारा केले को कुशीनगर का एक जिला एक उत्पाद घोषित करने के बाद केले की खेती और प्रसंस्करण के जरिये सह उत्पाद बनाने का क्रेज बढ़ा है। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं केले का जूस, चिप्स, आटा, अचार और इसके तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया एवम चप्पल आदि भी बना रहीं हैं। इनका खासा क्रेज और मांग भी है।

17 साल में 32 गुना बढ़ा खेती का रकबा

अशोक राय बताते हैं कि 2007 में कुशीनगर में मात्र 500 हेक्टेयर रकबे में केले की खेती होती होती थी। अब यह 32 गुना बढ़कर करीब 16000 हेक्टेयर तक हो गया है। जिले का ओडीओपी घोषित होने के बाद इसके प्रति रुझान और बढ़ा है। सरकार प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर करीब 31 हजार रुपये का अनुदान भी किसान को देती है।

कुशीनगर के केले को लोकप्रिय बनाने में गोरखपुर की अहम भूमिका

कुशीनगर, गोरखपुर मंडल में आता है। यहां फलों और सब्जियों की बड़ी मंडी है। शुरू में कुशीनगर के कुछ किसान केला बेचने यहां की मंडी में आते थे। फल की गुणवत्ता अच्छी थी। लिहाजा गोरखपुर के कुछ व्यापारी कुशीनगर के उत्पादक क्षेत्रों से जाकर सीधे किसानों के खेत से केला खरीदने लगे। चूंकि सेब, किन्नू और पलटी के माल के कारोबार के लिए गोरखपुर के व्यापारियों का कश्मीर, पंजाब और दिल्ली के व्यापारियों से संबंध था, लिहाजा यहां के कारोबारियों के जरिये कुशीनगर के केले की लोकप्रियता अन्य जगहों तक पहुंच गई। मौजूदा समय में कुशीनगर का केला कश्मीर, पंजाब के भटिंडा, लुधियाना, चंडीगढ़, भटिंडा, लुधियाना, कानपुर, दिल्ली, गाजियाबाद और मेरठ समेत कई बड़े शहरों तक जाता है।

प्रशासन ने की थी केले की खेती को उद्योग का दर्जा देने की पहल

केले की खेती की ओर जिले के किसानों का झुकाव देख पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने केले को खेती को उद्योग का दर्जा दिलाने की कवायद शुरू की थी। इस बाबत उन्होंने बैंकर्स की मीटिंग भी की थी। साथ ही केन्द्र और प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत केला उत्पादकों को आसान शर्तों पर ऋण मुहैया कराने के निर्देश दिए थे।

दशहरा और छठ होता है बिक्री का मुख्य सीजन

सिरसियां दीक्षित निवासी मुरलीधर दीक्षित, भरवलिया निवासी मृत्युंजयय मिश्रा, विजयीछपरा निवासी शिवनाथ कुशवाहा केले के बड़े किसान हैं। देश और प्रदेश के कई बड़े शहरों में कमीशन एजेंटों के जरिये इनका केला जाता है। इन लोगों के अनुसार नवरात्र के ठीक पहले त्योहारी मांग की वजह से कारोबार का पीक सीजन होता है।

स्थानीय स्तर पर रोजगार भी दे रहा केला

केले की खेती श्रमसाध्य होती है। रोपण के लिए गड्ढे खोदने, उसमें खाद डालने, रोपण, नियमित अंतराल पर सिंचाई, फसल संरक्षा के उपाय, तैयार फलों के काटने उनकी लोडिंग,अनलोडिंग और परिवहन तक खासा रोजगार मिलता है।

फरवरी और जुलाई रोपण का उचित समय

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के सब्जी वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह के मुताबिक केले के रोपण का उचित समय फरवरी और जुलाई-अगस्त है। जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं उनको जोखिम कम करने के लिए दोनों सीजन में केले की खेती करनी चाहिए।

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