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आध्यात्म

दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि, जानें यहां

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नई दिल्ली। आज पोरे देश में दिवाली का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। मान्यता है कि दिवाली के दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और भक्तों के घर आती हैं। ऐसे में व्यक्ति को दिवाली के दिन अपने घर को साफ-सुथरा रखना चाहिए। साथ ही दिए भी जलाने चाहिए। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। तो आइए जानते हैं मां लक्ष्मी की पूजन सामग्री और कैसे करें महालक्ष्मी का आह्वान।

शाम 5:40 से रात 8:15 बजे तक दिवाली पूजा का शुभ मुहूर्त है.

15 तारीख को केवल स्नान दान की अमावस्या की जाएगी.

यंत्र-तंत्र की पूजा जरूरी

मां लक्ष्मी के साथ-साथ दिवाली में में श्री यंत्र की पूजा भी की जाती है. 2020 की दीपावली में गुरु धनु राशि में रहेगा. यही कारण है कि श्री यंत्र की पूजा कच्चे दूध से करने से सभी राशि के जातकों को लाभ होगा. इधर, शनि अपनी मकर राशि में विराजमान होगी. साथ ही साथ इस दिन अमावस्या का भी योग बन रहा है. ऐसे में इस दौरान भी तंत्र-यंत्र की पूजा करनी चाहिए.

दिवाली की पूजा सामग्री

मां-लक्ष्मी और श्री गणेश की पूजा-पाठ के लिए आपको कुमकुम, चावल (अक्षत), रोली, सुपारी, पान, लौंग, नारियल, इलायची, अगरबत्ती, धूप, रुई बत्ती, मिट्टी, दीपक, दूध, दही, गंगाजल शहद, फल, फूल, चंदन, सिंदूर, पंचमेवा, पंचामृत, श्वेत-लाल वस्त्र, चौकी, कलश, जनेऊ, बताशा, कमलगट्टा, संख, माला, एक आसन, हवन कुंड, आम के पत्ते, लड्डू काजू की बर्फी व अन्य सामग्री की जरूरत पड़ सकती है.

दीपावली पूजन विधि

सबसे पहले आपको पूजा वाली चौकी लेना होगा, उसे साफ करके कपड़ा बिछाना होगा. अब मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा को वहां स्थापित करें.

याद रहे मूर्तियों का मुख हमेश पूर्व की ओर होना चाहिए.

हाथ में थोड़ा गंगाजल ले लें, अब भगवान की प्रतिमा पर निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए छिड़कें…

ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।

य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।

इसके बाद जल को अपने आसन और खुद पर भी छिड़कें

अब धरती मां को प्रणाम करें और आसन पर बैठें, हाथ में गंगाजल लेकर पूजा करने का संकल्प करें.

इसके बाद जल से भरा कलश लें और मां लक्ष्मी के पास अक्षत की ढेरी रखें. अब कलश पर मौली बांध दें और ऊपर आम का पल्लव रखें.

उसमें सुपारी, दूर्वा, अक्षत व सिक्का रखें.

कलश पर एक नारियल स्थापित करें. नारियल लाल वस्त्र में लपेटा होना चाहिए. याद रहे उसका अग्रभाग दिखाई देता रहे. इसे कलश वरुण का प्रतीक माना गया है.

अब सबसे पहले श्री गणेश जी की पूजा करें. फिर मां लक्ष्मी जी की अराधना करें. वहीं, इस दौरान देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, मां काली और कुबेर का भी ध्यान लगाएं.

पूजा के समय 11 या 21 छोटे सरसों के तेल के दीपक जरूर जला लें और एक बड़ा दीपक भी जलाएं. इसके अलावा एक दीपक चौकी के दाईं ओर एक बाईं ओर रख दें.

भगवान के बाईं तरफ घी का दीपक जलाकर रखें और फूल, अक्षत, जल व मिठाई उन्हें अर्पित करें.

अपने इच्छा अनुसार गणेश, लक्ष्मी चालीसा पढ़ सकते हैं.

अब गणेश जी और मां लक्ष्मी की आरती उतारें और उन्हें भोग लगाकर पूजा संपन्न करें.

11 या 21 दीपकों को घर के सभी दरवाजों के कोनों में रख दें.

याद रहे पूरी रात पूजा घर में एक घी का दीपक भी जलता रहना चाहिए. यह बेहद शुभ माना जाता है.

आध्यात्म

आज है गोवर्धन पूजा, जानें पूजन विधि व शुभ मुहूर्त

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हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) की जाती है। यानी दिवाली अगले दिन ये पर्व मनाया जाता है। इस साल गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 1 नवंबर की शाम 6 बजकर 16 मिनट पर शुरू हो रही है और यह 2 नवंबर की रात 8 बजकर 21 मिनट पर खत्म होगी। इस तरह से गोवर्धन पूजा का सही दिन 2 नवंबर ही माना गया है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाती हैं और उसकी पूजा करती हैं।

गोवर्धन पूजा मुहूर्त

इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 3 बजकर 23 मिनट से शाम 5 बजकर 35 मिनट तक है। इस समय पूजा करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है।

गोवर्धन पूजा विधि

गोवर्धन पूजा के दिन सुबह काल जल्दी उठकर स्नानादि करें। फिर शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं और साथ ही पशुधन यानी गाय, बछड़े आदि की आकृति भी बनाएं।

इसके बाद धूप-दीप आदि से विधिवत पूजा करें। भगवान कृष्ण को दुग्ध से स्नान कराने के बाद उनका पूजन करें। इसके बाद अन्नकूट का भोग लगाएं।

गोवर्धन पूजा का महत्व

मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण के द्वारा ही सर्वप्रथम गोवर्धन पूजा आरंभ करवाई गई थी और गोवर्धन पर्वत तो अपनी उंगली पर उठाकर इंद्रदेव के क्रोध से ब्रज वासियों और पशु-पक्षियों की रक्षा की थी। गोवर्धन पूजा में गिरिराज के साथ कृष्ण जी के पूजन का भी विधान है। इस दिन अन्नकूट का विशेष महत्व माना जाता है।

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