Connect with us
https://aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

मुख्य समाचार

बिहार में जली थी होलिका!

Published

on

बिहार में जली थी होलिका, होली रंग-गुलाल और प्रेम का त्योहार, बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़

Loading

बिहार में जली थी होलिका, होली रंग-गुलाल और प्रेम का त्योहार, बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़

मनोज पाठक

पूर्णिया| होली रंग-गुलाल और प्रेम का त्योहार है, इस दिन सारा देश रंगों और प्रेम के रस में डूब जाता है, लेकिन रंगों का त्योहार मनाने वाले लोग शायद यह नहीं जानते कि इस त्योहार को मनाने की शुरुआत बिहार के पूर्णिया से हुई थी। कहा जाता है कि बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में वह स्थान आज भी मौजूद है, जहां होलिका भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर जलती चिता के बीच बैठ गई थी। यहीं एक खंभे से भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था और उन्होंने हिरण्यकश्यपु का वध किया था। हिन्दुओं के महान पर्व होली जहां वर्ष के पहले दिन के आगमन की खुशी में मनाई जाती है, वहीं इसके एक दिन पूर्व लोग होलिका दहन करते हैं। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं और किवंदंतियों के मुताबिक, हिरण्यकश्यपु का किला था, जहां भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए एक खंभे से भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था। भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी सिकलीगढ़ में मौजूद है। कहा जाता है कि इसे कई बार पूर्व में तोड़ने का प्रयास किया गया परंतु यह झुक अवश्य गया परंतु यह टूट नहीं सका।

पूर्णिया जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर सिकलीगढ़ के बुजुर्गो का कहना है कि प्राचीन काल में 400 एकड़ में एक टीला था जो अब सिमटकर 100 एकड़ में हो गया है। पिछले दिनों इन टीलों की खुदाई में कई प्राचीन वस्तुएं भी निकली थीं। हिन्दुओं की धार्मिक पत्रिका ‘कल्याण’ के 31 वें वर्ष के विशेषांक में भी सिकलीगढ़ की विशेष तौर पर विवरण देते हुए इसे नरसिंह भगवान के अवतार स्थल के विषय में कहा गया था। बनमनखी अनुमंडल के अनुमंडल पदाधिकारी रहे तथा इस क्षेत्र में कई विकास के कार्य कराने वाले केशवर सिंह बताते हैं कि इसकी कई प्रमाणिकता है। उन्होंने कहा कि यहीं हिरन नामक नदी बहती है।

वह बताते हैं कि कुछ वर्षो पहले तक नरसिंह स्तंभ में जो हॉल है, उसमें पत्थर डालने से हिरन नामक नदी में पत्थर पहुंच जाता था। इसी भूखंड पर भीमेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है। कहा जाता है कि हिरण्यकश्यपु यहीं बैठकर पूजा करता था। मान्यताओं के मुताबिक, हिरण्यकश्यपु का भाई हिरण्यकच्छ बराह क्षेत्रका राजा था जो अब नेपाल में पड़ता है। प्रहलाद स्तंभ की सेवा के लिए बनाए गए ‘प्रहलाद स्त्ांभ विकास ट्रस्ट’ के अध्यक्ष बद्री प्रसाद साह बताते हैं कि यहां साधुओं का जमावड़ा प्रारंभ से रहा है। वह बताते हैं कि भागवत पुराण (सप्तम स्कंध के अष्टम अध्याय) में भी माणिक्य स्तंभ स्थल का जिक्र है। उसमें कहा गया है कि इसी खंभे से भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी।

लाल ग्रेनाइट के इस स्तंभ का शीर्ष हिस्सा ध्वस्त है। जमीन की सतह से करीब 10 फुट ऊंचे और 10 फुट व्यास के इस स्तंभ का अंदरूनी हिस्सा पहले खोखला था। पहले जब श्रद्धालु उसमें पैसे डालते थे तो स्तंभ के भीतर से ‘छप-छप’ की आवाज आती थी। इससे अनुमान लगाया जाता था कि स्तंभ के निचले हिस्से में जल स्रोत है। बाद में स्तंभ के नीचे का क्षेत्र (पेट) भर गया। इसके दो कारण हो सकते हैं- एक तो स्थानीय लोगों ने मिट्टी डालकर भर दिया या फिर किसी प्राकृतिक घटना में नीचे का जल स्रोत सूख गया और उसमें रेत भर गई। पूर्णिया के धमदाहा कॉलेज के इतिहास के प्रोफेसर रमण सिंह का कहना है कि 19वीं सदी के अंत में एक अंग्रेज पुरातत्वविद यहां आए थे। उन्होंने इस स्तंभ को उखाड़ने का प्रयास किया, लेकिन यह हिला तक नहीं।

सन् 1811 में फ्रांसिस बुकानन ने बिहार-बंगाल गजेटियर में इस स्तंभ का उल्लेख करते हुए लिखा कि इस प्रहलाद उद्धारक स्तंभ के प्रति हिन्दू धर्मावलंबियों में असीम श्रद्धा है। इसके बाद वर्ष 1903 में पूर्णिया गजेटियर के संपादक जनरल ओ़ मेली ने भी प्रह्लाद स्तंभ की चर्चा की। मेली ने यह खुलासा भी किया था कि इस स्तंभ की गहराई का पता नहीं लगाया जा सका है। इस स्थल की विशेषता है कि यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है। ग्रामीण बताते हैं कि किवदंतियों के मुताबिक, जब होलिका मर गई थी और प्रहलाद चिता से सकुशल वापस आ गए थे, तब प्रहलाद के समर्थकों ने खुशी में राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगा-लगाकर खुशी मनाई थी और तभी से होली प्रारंभ हुआ है। ग्रामीण शिवशंकर बताते हैं कि यहां होलिका दहन के समय पूरे जिले के अलावे विभिन्न क्षेत्रों के 40 से 50 हजार श्रद्धालु उपस्थित होते हैं और जमकर राख और मिट्टी से होली खेलते हैं।

Continue Reading

मुख्य समाचार

जयप्रकाश नारायण जयंती : भारत के लोकनायक जेपी को प्रधानमंत्री समेत बड़े नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

Published

on

By

Loading

नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) एक महान व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। उनकी जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। जयप्रकाश नारायण ने हमेशा जनता की भलाई के लिए काम किया और अपने समय की राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं के खिलाफ आवाज उठाई।

पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, “लोकनायक जयप्रकाश नारायण को उनकी जयंती पर मेरी आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। उन्होंने देश और समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका व्यक्तित्व और आदर्श हर पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा।”

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक्स पर लिखा, “महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकतंत्र के परम उपासक ‘भारत रत्न’, ‘लोकनायक’ जयप्रकाश नारायण की जयंती पर उन्हें नमन! आपातकाल के दौरान राष्ट्र की जनतांत्रिक चेतना को जागृत कर लोकतंत्र की पुनर्स्थापना में अविस्मरणीय योगदान दिया था। वे सच्चे अर्थों में ‘लोकनायक’ थे।”

दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने सामाजिक उत्थान में उनकी भूमिका को याद करते हुए लिखा, “भारत रत्न लोकनायक श्री जयप्रकाश नारायण जी की जयंती पर सादर नमन। आम आदमी के अधिकारों की रक्षा करते हुए भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने और सामाजिक उत्थान के उनके काम हम सभी के लिए प्रेरणा है।”

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी महान स्वतंत्रता सेनानी, संपूर्ण क्रांति के प्रणेता ‘भारत रत्न’ लोकनायक जयप्रकाश नारायण को शत्-शत् नमन किया।

 

Continue Reading

Trending