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बकरीद पर ‘कुर्बानी’ को झांपने या कोसने से पहले पढ़िए उसके पीछे की वजह

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नई दिल्ली। सबसे पहले आप सभी को ईद-उल-अजहा यानी बकरीद की बहुत-बहुत बधाईयां। बकरीद के मौके पर बाज़ार किस तरह सज जाते हैं ये तो आप देख ही रहे होंगे। बकरीद भीड़ भरी बाज़ारों के बिना और कुर्बानी के बिना अधूरी है। आप को कतई असहज होकर कुर्बानी को बचाने या कोसने की ज़रूरत नहीं हैं। हम आपको बताएंगे इस्लाम में कुर्बानी के पीछे की धार्मिक मान्यता क्या है?

इस्लाम में कुर्बानी का बहुत महत्व है। इसके पीछे एक कहानी प्रचलित है। बताया जाता है कि अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के ख्वाब में आकर अपनी सबसे प्यारी चीज़ की कुर्बानी देने को कहा था। हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने सबसे प्यारे बेटे हजरत ईस्माइल की कुर्बानी देने का फैसला किया। हजरत इब्राहिम ने जब ये बात अपने बेटे हजरत ईस्माइल को बताई तो उनके बेटे ने अल्लाह के हुक्म का पालन करने को कहा। उस समय हजरत ईस्माइल करीब 13-14 साल के ही थी।

ऐसा माना जाता है कि हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुई थी। हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे के लिए मोहब्बत और अल्लाह के हुक्म में से, अल्लाह के हुक्म को चुना। बेटे की कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं कहीं आड़े ना आ जाएं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांधी और बेटे पर छुरा चलाने लगे। लेकिन जैसे ही उन्होंने बेटे पर छुरा चलाया तो अल्लाह ने उनके बेटे की जगह दुंबा (एक जानवर) भेज दिया और हजरत ईस्माइल की जगह दुंबा कुर्बान हो गया। तभी से हर हैसियतमंद मुस्लमान पर कुर्बानी वाजिब हो गई।

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