आध्यात्म
जानें भगवान गणेश की पूजा में क्यों नहीं किया जाता तुलसी का प्रयोग
लखनऊ। गणेश चतुर्थी के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। घर-घर में गणेश जी के आगमन से लोगों में काफी उत्साह छाया हुआ है। प्रथम पूज्य गणेश जी के भोग, और प्रसाद के बारे में तो सभी जानते हैं। यही नहीं हम सबने गणेश जी से सम्बंधित कई कथाएं भी सुनी है। लेकिन आज हम आपको ऐसी गणेश जी से संबंधित ऐसी कथा बतायेंगे जिसके बारे में शायद ही आप जानते हो। जी हाँ आज हम आपको बताएँगे की गणेश पूजन के दौरान तुलसी का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता।
दरअसल, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार गणपति जी गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। उसी गंगा तट पर धर्मात्मज कन्या तुलसी भी अपने विवाह के लिए तीर्थयात्रा करती हुईं, वहां पहुंची थी। गणेश जी रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे थे और चंदन के लेपन के साथ उनके शरीर पर अनेक रत्न जड़ित हार में उनकी छवि बेहद मनमोहक लग रही थी।
तपस्या में विलीन गणेश जी को देख तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। उन्होंने गणपति जी को तपस्या से उठा कर उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया। तपस्या भंग होने से गणपति जी बेहद क्रोध में आ गए। गणेश जी ने तुलसी देवी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। गणेश जी से ना सुनने पर तुलसी देवी बेहद क्रोधित हो गईं, जिसके बाद तुलसी देवी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे।
वहीं गणेश जी ने भी क्रोध में आकर तुलसी देवी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। ये श्राप सुनते ही तुलसी जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह गणेश जी से माफी मांगने लगीं। तब गणेश जी ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, लेकिन इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी। ना तुम्हारा शाप खाली जाएगा ना मेरा। मैं रिद्धि और सिद्धि का पति बनूंगा और तुम्हारा भी विवाह राक्षस से होगा। लेकिन अंत में तुम भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की प्रिया बनोगी और कलयुग में भगवान विष्णु के साथ तुम्हें पौधेे के रूप में पूजा जाएगा लेकिन मेरी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
आध्यात्म
नवरात्रि के छठे दिन करते हैं माता कात्यायनी की पूजा, कितने बजे से शुरू होगा शुभ मुहूर्त
नई दिल्ली। नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी का पूजन किया जाता है, जो कि माता का एक दिव्य रूप है. इस स्वरूप में माता शेर पर विराजमान हैं और उनके सिर पर एक सुंदर मुकुट है. माता की चार भुजाएं हैं. यह मान्यता है कि इस स्वरूप की पूजा करने से विवाह में आने वाली बाधाएं समाप्त हो जाती हैं. आइए, जानते हैं कि नवरात्रि के इस दिन मां कात्यायनी की पूजा कैसे करनी चाहिए, पूजा की विधि, मंत्र और माता को भोग में क्या अर्पित करना चाहिए.
नवरात्रि के छठे दिन का शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:39 से 5:28 बजे तक रहेगा. विजय मुहूर्त दोपहर 2:06 से 2:53 बजे तक होगा. निशिथ काल मध्यरात्रि 11:45 से 12:34 बजे तक रहेगा. गोधूलि बेला शाम 6:01 से 6:25 बजे तक होगी. अमृत काल सुबह 9:12 से 10:40 बजे तक निर्धारित है
मां कात्यायनी मंत्र
कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी.
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः.
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