आध्यात्म
पूरे देश में महाशिवरात्रि की धूम, इस पंचाक्षर स्त्रोत से करें महादेव को प्रसन्न
नई दिल्ली। आज पूरे देश में महाशिवरात्रि का पर्व पूरी श्रद्धा,आस्था व उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। शिवालयों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी है। हर हर महादेव व ॐ नमः शिवाय की गूँज से चारो दिशाएं गुंजायमान हो रही हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। भगवान भोलेनाथ का मंत्र ॐ नमः शिवाय के जाप से पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश और वायु पांचों तत्व नियंत्रित किए जा सकते हैं।
ये मंत्र मोक्षदायी माना गया है और समस्त वेदों का सार है। इस मंत्र का प्रत्येक अक्षर अपने आप में बेहद शक्तिशाली है। इस पंचाक्षर मंत्र के हर अक्षर की महिमा का गुणगान करने के लिए जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने पंचाक्षर स्त्रोत बनाया था।
इस स्तोत्र में पंचाक्षर (न,म,शि,व,य) की शक्ति का वर्णन किया गया है। नियमित रूप से यदि इस स्तोत्र को सच्चे मन से पढ़ा जाए तो असंभव कामों को भी संभव बनाया जा सकता है। महाशिवरात्रि के दिन से आप इस स्त्रोत का पाठ आरंभ का सकते हैं।
पंचाक्षर स्त्रोत का महत्व
पंचाक्षर स्त्रोत के बारे में मान्यता है कि इसके पाठ से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर होते हैं। मान्यता है कि ये स्त्रोत व्यक्ति की अकाल मृत्यु को टाल सकता है। इसके नियमित पाठ से काल सर्प दोष का प्रभाव भी दूर होता है। शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करते समय कपूर और इत्र का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए।
शिव पञ्चाक्षर स्त्रोत
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय॥1॥
मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय।
मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय॥2॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय॥3॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय॥4॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय॥5॥
पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥6॥
आध्यात्म
जानें भगवान गणेश की पूजा में क्यों नहीं किया जाता तुलसी का प्रयोग
लखनऊ। गणेश चतुर्थी के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। घर-घर में गणेश जी के आगमन से लोगों में काफी उत्साह छाया हुआ है। प्रथम पूज्य गणेश जी के भोग, और प्रसाद के बारे में तो सभी जानते हैं। यही नहीं हम सबने गणेश जी से सम्बंधित कई कथाएं भी सुनी है। लेकिन आज हम आपको ऐसी गणेश जी से संबंधित ऐसी कथा बतायेंगे जिसके बारे में शायद ही आप जानते हो। जी हाँ आज हम आपको बताएँगे की गणेश पूजन के दौरान तुलसी का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता।
दरअसल, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार गणपति जी गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। उसी गंगा तट पर धर्मात्मज कन्या तुलसी भी अपने विवाह के लिए तीर्थयात्रा करती हुईं, वहां पहुंची थी। गणेश जी रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे थे और चंदन के लेपन के साथ उनके शरीर पर अनेक रत्न जड़ित हार में उनकी छवि बेहद मनमोहक लग रही थी।
तपस्या में विलीन गणेश जी को देख तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। उन्होंने गणपति जी को तपस्या से उठा कर उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया। तपस्या भंग होने से गणपति जी बेहद क्रोध में आ गए। गणेश जी ने तुलसी देवी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। गणेश जी से ना सुनने पर तुलसी देवी बेहद क्रोधित हो गईं, जिसके बाद तुलसी देवी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे।
वहीं गणेश जी ने भी क्रोध में आकर तुलसी देवी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। ये श्राप सुनते ही तुलसी जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह गणेश जी से माफी मांगने लगीं। तब गणेश जी ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, लेकिन इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी। ना तुम्हारा शाप खाली जाएगा ना मेरा। मैं रिद्धि और सिद्धि का पति बनूंगा और तुम्हारा भी विवाह राक्षस से होगा। लेकिन अंत में तुम भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की प्रिया बनोगी और कलयुग में भगवान विष्णु के साथ तुम्हें पौधेे के रूप में पूजा जाएगा लेकिन मेरी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
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