आत्मा बिच परमात्मा, करत निवास सदाय। याते कहुँ कहुँ आत्मा, परमात्मा कहलाय।। 43।। भावार्थ- प्रत्येक जीवात्मा में परमात्मा का नित्य निवास है। अतः वेदों शास्त्रों में...
देश काल नहिँ नियम कछु, नहिँ कछु शिष्टाचार। सरल हृदय नहिँ छल कपट, प्रेमपंथ बलिहार।। 41।। भावार्थ- मैं ऐसे प्रेममार्ग पर बलिहार जाता हूँ जिसमें न...
जहाँ भी संसारी स्वार्थ पूर्ति होती है वहीं प्यार करता है। स्वार्थ समाप्त, तो प्यार भी समाप्त। अतः धनादि वैभव की प्राप्ति द्वारा आनन्द प्राप्ति मानने...
सब साधन संपन्न कहँ, पूछत सब संसार। साधहीन प्रपन्न कहँ, पूछत नंदकुमार।। 39।। भावार्थ- संसारी लोग उसी से प्यार करते हैं, जिसके पास संसारी वैभव होता...
काम क्रोध मद लोभ कहं, मन मूरख! मत छोड़। रसिक शिरोमणि श्याम ढिग, दे इन को मुख मोड़।। 38।। भावार्थ- हे मूर्ख मन! तू काम क्रोधादि...
अर्थात् मन का वेग वायु से भी तीव्र है। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने भी माना यथा- असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् । (गीता 6-35) इस मन...
अतः जब तक भगवान् की भक्ति न की जायगी तब तक अंतःकरण शुद्ध ही न होगा। बिना अन्तःकरण शुद्ध हुये हम सत्य आदि दैवीगुणों का प्रदर्शन...
अतः जीवात्मा भी परमात्मा का नित्य दास है। यह बात और है कि माया के कारण जीव अपना वास्तविक स्वरूप भूल गया है एवं स्वयं को...
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरति देखी तिन तैसी। अर्थात् हमने अनन्त बार भगवान् के अवतार को देखा है, किन्तु वे मायिक ही दिखाई पड़े। जैसे...
अतः बुद्धि की गति ही नहीं है। यदि बुद्धि ग्राह्य भगवान् हो जाय तो बुद्धि को ही भगवान् मानना होगा। किंतु अनेक जीवों ने जाना भी...