Connect with us
https://aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

आध्यात्म

प्रेम मन्दिर में साधू भोज कार्यक्रम का आयोजन, पांच हजार साधुओं को दिए उपहार

Published

on

Prem Mandir

Loading

उपहार पाकर साधू बोले कृपालु जी महाराज से नही बड़ा कोई दानी

वृन्दावन। जगद्गुरु कृपालु परिषद श्यामा श्याम धाम समिति के तत्वावधान में आयोजित वृन्दावन क्षेत्र के पांच हजार साधुओं को प्रेम मन्दिर (Prem Mandir)  में भोज के साथ दिए उपहार। साधू भोज कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जगद्गुरु कृपालु परिषद की चेयरपर्सन डॉ. विशाखा त्रिपाठी ने कहा कि इन धार्मिक आयोजनों के मार्ग निर्माण उनके पिता जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने किया आज उनकी बनाई हुई संस्था उनके पथ पर चलकर अपने दायित्वों का बाखूबी निर्वहन कर रही है।

इस अवसर जेकेपी श्यामाश्याम धाम समिति की अध्यक्षा डॉ श्यामा त्रिपाठी एवं अनुजा डॉ कृष्णा त्रिपाठी ने संयुक्त रूप से कहा कि बड़ी दीदी के दिशा निर्देशन में हमारी संस्था को ब्रजवासियों की सेवा से आंनद अनुभूति होती है, बृजवासी स्वयं भगवान के स्वरूप होते है, और इनकी सेवा करने से अन्तःकरण शुध्द होता है।

मंगलवार को चार हजार निराश्रित एवं विधवाओ को मिलेगा उपहार

साधू भोज के इस अवसर पर प्रेम मन्दिर के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर अजय त्रिपाठी ने जाकारी देते हुए बताया कि पांच हजार साधुओं को 15 प्रकार दैनिक वस्तुएं दक्षिणा के साथ प्रदान की गई। मंगलबार को प्रेम मन्दिर के प्रांगण में वृन्दावन क्षेत्र की चार हजार निराश्रित एवं विधवा महिलाओं को भोजन पैकेट व दक्षिणा के साथ 18 प्रकार की दैनिक उपयोग में आने वाली सामग्री से भरा बैग उपलब्ध कराया जाएगा।

Prem Mandir, Prem Mandir news, Prem Mandir latest news,

आध्यात्म

जानें भगवान गणेश की पूजा में क्यों नहीं किया जाता तुलसी का प्रयोग

Published

on

Loading

लखनऊ। गणेश चतुर्थी के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। घर-घर में गणेश जी के आगमन से लोगों में काफी उत्साह छाया हुआ है। प्रथम पूज्य गणेश जी के भोग, और प्रसाद के बारे में तो सभी जानते हैं। यही नहीं हम सबने गणेश जी से सम्बंधित कई कथाएं भी सुनी है। लेकिन आज हम आपको ऐसी गणेश जी से संबंधित ऐसी कथा बतायेंगे जिसके बारे में शायद ही आप जानते हो। जी हाँ आज हम आपको बताएँगे की गणेश पूजन के दौरान तुलसी का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता।

दरअसल, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार गणपति जी गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। उसी गंगा तट पर धर्मात्मज कन्या तुलसी भी अपने विवाह के लिए तीर्थयात्रा करती  हुईं, वहां पहुंची थी। गणेश जी रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे थे और चंदन के लेपन के साथ उनके शरीर पर अनेक रत्न जड़ित हार में उनकी छवि बेहद मनमोहक लग रही थी।

तपस्या में विलीन गणेश जी को देख तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। उन्होंने गणपति जी को तपस्या से उठा कर उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया। तपस्या भंग होने से गणपति जी बेहद क्रोध में आ गए। गणेश जी ने तुलसी देवी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। गणेश जी से ना सुनने पर तुलसी देवी बेहद क्रोधित हो गईं, जिसके बाद तुलसी देवी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे।

वहीं गणेश जी ने भी क्रोध में आकर तुलसी देवी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। ये श्राप सुनते ही तुलसी जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह गणेश जी से माफी मांगने लगीं। तब गणेश जी ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, लेकिन इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी। ना तुम्हारा शाप खाली जाएगा ना मेरा। मैं रिद्धि और सिद्धि का पति बनूंगा और तुम्हारा भी विवाह राक्षस से होगा। लेकिन अंत में तुम भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की प्रिया बनोगी और कलयुग में भगवान विष्णु के साथ तुम्हें पौधेे के रूप में  पूजा जाएगा लेकिन मेरी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाएगा।

Continue Reading

Trending