आध्यात्म
फरवरी में इस दिन मनाई जाएगी रथ सप्तमी, सूर्य पूजा से मिलेंगे कई लाभ
नई दिल्ली। हिंदी माह माघ में शुक्ल पक्ष सप्तमी को रथ सप्तमी या माघ सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को भगवान सूर्य के जन्म दिवस से रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी तिथि पर सूर्य देव ने पूरे विश्व को रोशन करना शुरू किया था, इसलिए इस दिन को सूर्य जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
रथ सप्तमी शुभ मुहूर्त
माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि का प्रारम्भ 15 फरवरी को सुबह 10 बजकर 12 मिनट पर हो रहा है। वहीं इस तिथि का समापन 16 फरवरी को सुबह 08 बजकर 54 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, रथ सप्तमी 16 फरवरी, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी।
इस दौरान शुभ मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहेगा
रथ सप्तमी के दिन अरुणोदय-सुबह 06 बजकर 35 मिनट पर
सूर्योदय-सुबह 06 बजकर 59 मिनट पर
स्नान मुहूर्त-प्रातः 05 बजकर 17 मिनट से सुबह 06 बजकर 59 मिनट तक
इस विधि से करें पूजा
रथ सप्तमी के दिन अरुणोदय में स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद सूर्योदय के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य दें और विधि-विधान पूर्वक उनकी पूजा करें। अर्घ्य देने के लिए सबसे पहले सूर्य देव के समक्ष खड़े होकर नमस्कार मुद्रा में हाथ जोड़ें। एक छोटे कलश से भगवान सूर्य को धीरे-धीरे जल चढ़ाकर अर्घ्यदान दें। इसके बाद गाय के घी का दीपक जलाएं। इसके साथ ही पूजा के दौरान सूर्य देव को लाल फूल अर्पित करें।
मिलते हैं ये लाभ
सूर्य सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से साधक को आरोग्य के साथ-साथ समृद्धि की भी प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस दिन दान-पुण्य करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन पर भगवान सूर्य के निमित्त व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है। रथ सप्तमी पर अरुणोदय में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है।
ऐसा करने से व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति हो सकती है, इसलिए रथ सप्तमी को आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है। सूर्य सप्तमी के दिन घर पर स्नान करने की अपेक्षा नदी आदि में स्नान करना ज्यादा लाभकारी माना जाता है। सूर्य सप्तमी पर स्नान, दान-पुण्य और सूर्यदेव को अर्घ्य देने से लंबी आयु, आरोग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की हमारी गारंटी नहीं है।
आध्यात्म
जानें भगवान गणेश की पूजा में क्यों नहीं किया जाता तुलसी का प्रयोग
लखनऊ। गणेश चतुर्थी के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। घर-घर में गणेश जी के आगमन से लोगों में काफी उत्साह छाया हुआ है। प्रथम पूज्य गणेश जी के भोग, और प्रसाद के बारे में तो सभी जानते हैं। यही नहीं हम सबने गणेश जी से सम्बंधित कई कथाएं भी सुनी है। लेकिन आज हम आपको ऐसी गणेश जी से संबंधित ऐसी कथा बतायेंगे जिसके बारे में शायद ही आप जानते हो। जी हाँ आज हम आपको बताएँगे की गणेश पूजन के दौरान तुलसी का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता।
दरअसल, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार गणपति जी गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। उसी गंगा तट पर धर्मात्मज कन्या तुलसी भी अपने विवाह के लिए तीर्थयात्रा करती हुईं, वहां पहुंची थी। गणेश जी रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे थे और चंदन के लेपन के साथ उनके शरीर पर अनेक रत्न जड़ित हार में उनकी छवि बेहद मनमोहक लग रही थी।
तपस्या में विलीन गणेश जी को देख तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। उन्होंने गणपति जी को तपस्या से उठा कर उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया। तपस्या भंग होने से गणपति जी बेहद क्रोध में आ गए। गणेश जी ने तुलसी देवी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। गणेश जी से ना सुनने पर तुलसी देवी बेहद क्रोधित हो गईं, जिसके बाद तुलसी देवी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे।
वहीं गणेश जी ने भी क्रोध में आकर तुलसी देवी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। ये श्राप सुनते ही तुलसी जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह गणेश जी से माफी मांगने लगीं। तब गणेश जी ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, लेकिन इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी। ना तुम्हारा शाप खाली जाएगा ना मेरा। मैं रिद्धि और सिद्धि का पति बनूंगा और तुम्हारा भी विवाह राक्षस से होगा। लेकिन अंत में तुम भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की प्रिया बनोगी और कलयुग में भगवान विष्णु के साथ तुम्हें पौधेे के रूप में पूजा जाएगा लेकिन मेरी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
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