ऑफ़बीट
कब्रिस्तान में मिला अरबों का खजाना, फिर जो अधिकारियों को दिखा…
नई दिल्ली। 28 जनवरी को आयकर विभाग को ख़बर मिलती है कि तमिलनाडु के मशहूर सर्वणा स्टोर, लोटस ग्रुप और ज़ी स्कॉवयर के मालिकों ने हाल ही में कैश के जरिए चेन्नई में 180 करोड़ की प्रॉपर्टी खरीदी है और वो इस डील को छुपाकर टैक्स की हेराफेरी कर रहे हैं। जांच करने पर पता चला कि ये खबर पक्की है।
खबर मिलने के तुरंत बाद आयकर विभाग ने इन कंपनियों के चेन्नई और कोयंबटूर में 72 ठिकानों पर छापा मारने के लिए कई टीमें तैयार कीं और अगले दिन सुबह से ही आयकर विभाग की टीम इन कंपनियों के ठिकानों पर छापे मारने लगीं। मगर इनकम टैक्स के अधिकारियों को खाली हाथ ही निराश होकर वापस लौटना पड़ा।
आयकर विभाग को यकीन नहीं हुआ कि इतने पुख़्ता जानकारी होने के बावजूद उनका ऑपरेशन फेल कैसे हो गया। लेकिन डिपार्टमेंट ने हार नहीं मानी उसे यकीन था की उनकी जानकारी गलत नहीं है। आयकर विभाग ने खुद को नाकाम मानने के बजाए इस बात की तफ्शीश में जुट गए कि उनकी ये रेड नाकामयाब कैसे हुई।
आयकर विभाग अधिकारियों ने अपने मुखबिरों को एक्टिव किया शहर के सैकड़ों सीसीटीवी चेक किए, कॉल डिटेल खंगाली गईं। तब एक सीसीटीवी की फुटेज से पता चला कि एक एसयूवी गाड़ी उस रोज़ यानी 28 जनवरी को पूरे दिन सड़कों पर बेवजह इधर-उधर घूम रही थी जिसे देखने के बाद डिपार्टमेंट को उस पर शक हुआ। सीसीटीवी की मदद से उस एसयूवी और उसके ड्राइवर को गिरफ्तार किया गया। रात भर ड्राइवर को हिरासत मे लेकर उससे पूछताछ की तोह उससे पता चला की कंपनी के मालिकों ने सारा काला धन कब्रिस्तान कि एक कब्र छुपा कर रखा है।
7 जनवरी 2019 की सुबह ड्राइवर के साथ मिलकर आयकर विभाग ने कब्रिस्तान पर छापा मारा। अधिकारियों ने जब कब्र खुदवाई तोह उनकी आँखें फटी की फटी रह गयी। उस कब्र मे 433 करोड़ का खज़ाना,करीब 25 करोड़ रुपये नकद, 12 किलो सोना और 626 कैरेट हीरे थे। अब सवाल ये था कि आयकर अधिकारियों ने जिस खज़ाने को ढूढने के लिए 72 ठिकानों पर छापे मारे वो आखिर एक कब्र में कैसे आयाऔर आयकर विभाग की रेड की खुफिया जानकारी किसने लीक की? इन सारे सवालों के जवाब उस ड्राइवर ने दिए जो पूरे दिन चेन्नई की सड़कों पर काला धन लेकर बस यूं ही घूम रहा था।
ड्राइवर ने बताया कि, इस धांधली में शामिल तीनों बड़ीं कंपनियों सर्वणा स्टोर, लोटस ग्रुप और ज़ी स्कॉवयर के मालिकों ने खजाने को पहले ही पार कर दिया था।पैसों की हेराफेरी के साथ-साथ आईटी एक्सपर्ट्स की मदद लेकर इन लोगों ने कंप्यूटर से रिकॉर्ड भी हटा दिया और पैसों को एक एसयूवी गाड़ी में छुपाकर शहर में पूरे दिन घमाने के बाद जब छुपाने की कोई जगह नहीं मिली तो उसे एक नज़दीकी कब्रिस्तान की एक कब्र में छुपा दिया था।
Edited by-मानसी शुक्ला
अन्तर्राष्ट्रीय
नींद के कारण गलती से हुआ 1990 करोड़ से ज्यादा ट्रांसफर, जानें पूरी रिपोर्ट
जर्मनी। जर्मनी में लगभग 12 साल पहले एक बैंक में ऐसा अजीबोगरीब वाकया हुआ था जिसने सभी को हैरान कर दिया है। एक कर्मचारी काम के दौरान कंप्यूटर के की-बोर्ड पर उंगली दबाए हुए सो गया। इस गलती के कारण एक शख्स को 64.20 यूरो की जगह 222 मिलियन यूरो (करीब 1990 करोड़ रुपये से ज्यादा) ट्रांसफर हो गए। गनीमत रही कि एक अन्य कर्मचारी ने समय रहते इस गलती को पकड़ लिया जिसके बाद ट्रांजैक्शन को रोक दिया गया।
शुरू हुई कानूनी लड़ाई
यह घटना साल 2012 की है जो अब इंटरनेट पर वायरल हो रही है। मामले में सबसे हैरान करने वाली बात यह रही है क्लर्क की इस गलती पर सुपरवाइजर ने भी ध्यान नहीं दिया और इस ट्रांजैक्शन को अप्रूव कर दिया। ट्रांजैक्शन की जांच करने की जिम्मेदारी सुपरवाइजर की थी लिहाजा बैंक ने इस बड़ी गलती के लिए उसे जिम्मेदार ठहराते हुए नौकरी से निकाल दिया। मामला जर्मनी की लेबर कोर्ट तक पहुंचा और मामले में कानूनी लड़ाई शुरू हुई।
अदालत ने सुनाया फैसला
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जर्मनी के हेस्से स्टेट की लेबर कोर्ट की ओर से इस मामले में आदेश दिया गया। कोर्ट ने बैंक द्वारा कर्मचारी को नौकरी से निकालने के फैसले को गलत बताया। कोर्ट ने कहा कि यह गलती क्लर्क ने जानबूझकर नहीं की थी। अदालत की ओर से यह भी कहा गया कि कर्मचारी ने भले ही अपनी गलती पर ध्यान नहीं दिया लेकिन उसके कार्यों के लिए उसे बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा
कोर्ट ने यह भी कहा कि कर्मचारी पर समय का बहुत दबाव था, वह रोजाना सैकड़ों लेन-देन की समीक्षा करता था। कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात का भी जिक्र किया कि 222 मिलियन यूरो के गलत ट्रांजैक्शन वाली घटना के दिन कर्मचारी ने 812 डॉक्युमेंट्स को संभाला था और हर डॉक्युमेंट पर वो महज कुछ सेकेंड का समय ही दे पा रहा था। अदालत ने अपने आदेश में इस बात पर जोर दिया कि कर्मचारी की ओर से जानबूझकर की गई लापरवाही का कोई सबूत नहीं मिला। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में बर्खास्तगी के बजाय औपचारिक चेतावनी ही पर्याप्त थी।
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