आध्यात्म
ये छोटी छोटी आदतें बदल देंगी आपका भाग्य, आज से ही अपनाएं
नई दिल्ली। अच्छी आदतें आपको एक बेहतर इंसान बनाती हैं, जबकि कुछ बुरी आदतें आपका पूरा जीवन तहस-नहस कर देती हैं। ज्योतिष शास्त्र में ऐसी ही कुछ बातों का जिक्र किया गया है, जिसे अपनाने से जीवन पूरी तरह से बदल जाता है। हालांकि ये नियम छोटे-छोटे हैं, लेकिन इनका असर आपकी पूरी जिंदगी पर पड़ता है। साथ ही सफलता के शिखर पर पहुंचा सकता है।
सफलता के लिए ज्योतिष शास्त्र टिप्स
गंदे कपड़ों में न करें पूजा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आप जिन कपड़ों को रात में पहन कर सोते हैं, उन कपड़ों में कभी पूजा नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा, वॉशरूम, शमशान आदि जगहों पर पहने गए कपड़े को बिना धोए उपयोग में नहीं लेना चाहिए। पूजा के लिए सदैव साफ कपड़ा इस्तेमाल करना चाहिए।
इस दिशा में न करें ये कार्य
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भूलकर भी पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुंख करके ब्रश नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में कई सारी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए ब्रश करते समय दिशा का ध्यान जरूर रखें।
वृक्ष के ऊपर न करें ये काम
ऐसा कहा जाता है कि किसी वृक्ष के ऊपर या उसकी छाया में मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए। इसे बहुत बड़ा अपराध माना गया है। यही नहीं जल, सूर्य और मंदिर की ओर भूलकर भी मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए।
उत्तर और पूर्व दिशा की ओर मुख करके भोजन करें
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, उत्तर और पूर्व दिशा की ओर ही मुख करके भोजन करना चाहिए। इससे खाने का सकारात्मक असर हमारी शरीर पर पड़ता है। साथ ही भोजन के दौरान बोलने से भी बचना चाहिए।
डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता का हमारा दावा नहीं है। संबंधित विशेषज्ञ से अवश्य सलाह लें।
आध्यात्म
जानें भगवान गणेश की पूजा में क्यों नहीं किया जाता तुलसी का प्रयोग
लखनऊ। गणेश चतुर्थी के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। घर-घर में गणेश जी के आगमन से लोगों में काफी उत्साह छाया हुआ है। प्रथम पूज्य गणेश जी के भोग, और प्रसाद के बारे में तो सभी जानते हैं। यही नहीं हम सबने गणेश जी से सम्बंधित कई कथाएं भी सुनी है। लेकिन आज हम आपको ऐसी गणेश जी से संबंधित ऐसी कथा बतायेंगे जिसके बारे में शायद ही आप जानते हो। जी हाँ आज हम आपको बताएँगे की गणेश पूजन के दौरान तुलसी का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता।
दरअसल, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार गणपति जी गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। उसी गंगा तट पर धर्मात्मज कन्या तुलसी भी अपने विवाह के लिए तीर्थयात्रा करती हुईं, वहां पहुंची थी। गणेश जी रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे थे और चंदन के लेपन के साथ उनके शरीर पर अनेक रत्न जड़ित हार में उनकी छवि बेहद मनमोहक लग रही थी।
तपस्या में विलीन गणेश जी को देख तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। उन्होंने गणपति जी को तपस्या से उठा कर उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया। तपस्या भंग होने से गणपति जी बेहद क्रोध में आ गए। गणेश जी ने तुलसी देवी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। गणेश जी से ना सुनने पर तुलसी देवी बेहद क्रोधित हो गईं, जिसके बाद तुलसी देवी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे।
वहीं गणेश जी ने भी क्रोध में आकर तुलसी देवी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। ये श्राप सुनते ही तुलसी जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह गणेश जी से माफी मांगने लगीं। तब गणेश जी ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, लेकिन इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी। ना तुम्हारा शाप खाली जाएगा ना मेरा। मैं रिद्धि और सिद्धि का पति बनूंगा और तुम्हारा भी विवाह राक्षस से होगा। लेकिन अंत में तुम भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की प्रिया बनोगी और कलयुग में भगवान विष्णु के साथ तुम्हें पौधेे के रूप में पूजा जाएगा लेकिन मेरी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
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