Connect with us
https://aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

प्रादेशिक

कर्नाटकः हाई कोर्ट ने फैसला आने तक धार्मिक पोशाक पर लगाई रोक

Published

on

Loading

नई दिल्ली। कर्नाटक हाईकोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने हिजाब विवाद पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को सरकार को राज्य में स्कूलों को फिर से खोलने का निर्देश दिया। जैसे ही मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्णा एस. दीक्षित और न्यायमूर्ति खाजी जयबुन्नेसा मोहियुद्दीन की पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की, मुख्य न्यायाधीश ने महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवादगी से राज्य में स्कूल खोलने के लिए कहा।

उन्होंने कहा, स्कूलों को बंद करना एक अच्छा कदम नहीं है। आवश्यक कार्रवाई करें और कक्षाएं संचालित करें। यह देखें कि कोई समस्या सामने न आए। मामले को लेकर व्याप्त तनाव और हिंसा के बीच राज्य सरकार ने मंगलवार को राज्य के सभी स्कूलों और कॉलेजों में बुधवार से तीन दिनों की छुट्टी की घोषणा की थी।

हिजाब के लिए दलील देने वाले याचिकाकर्ताओं ने कहा कि छात्राओं के हिजाब पहनने में कोई बुराई नहीं है। हिजाब एक मौलिक अधिकार है और इससे दूसरों को कोई समस्या नहीं होती है, इसलिए उन्हें उसी रंग के हिजाब पहनने की अनुमति दी जानी चाहिए, जैसी शिक्षण संस्थान में उनकी वर्दी निर्धारित की गई है। उन्होंने कहा कि सरकार ने वर्दी पर जल्दबाजी में सकरुलर जारी किया है।

याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि पीठ को छात्रों के हित में इस मुद्दे पर अंतरिम आदेश देना चाहिए, क्योंकि छात्र स्कूलों में नहीं जा पा रहे हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कर्नाटक शिक्षा अधिनियम के अनुसार, छात्रों के लिए वर्दी अनिवार्य नहीं है और वर्दी नियमों का उल्लंघन करने के लिए उन पर केवल 25 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है।

मुख्य न्यायाधीश अवस्थी ने हस्तक्षेप करते हुए पूछा कि क्या याचिकाकर्ता कह रहे हैं कि वर्दी की आवश्यकता नहीं है? इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि अधिनियम के अनुसार, यह अनिवार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिए यह ठीक है, लेकिन कॉलेज के छात्रों के लिए वर्दी का विरोध किया जा रहा है। हालांकि, नवादगी ने इस मुद्दे पर अंतरिम आदेश जारी करने का विरोध किया और कहा कि इस मुद्दे को लेकर कई तरह की घटनाएं हो रही हैं।

इससे पहले, न्यायमूर्ति दीक्षित की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई की थी, जिसने राज्य में एक बड़े संकट का रूप ले लिया है और इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा हुई है। उन्होंने इससे पहले इस मामले की सुनवाई बड़ी पीठ द्वारा करने का फैसला लिया था। उन्होंने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को मुख्य न्यायाधीश को दस्तावेज और याचिकाएं तुरंत जमा करने का निर्देश दिया, क्योंकि मामला अत्यंत महत्वपूर्ण है और इस पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है।

एकल पीठ ने कहा कि संविधान से संबंधित प्रश्न हैं, व्यक्तिगत कानूनों से संबंधित पहलू हैं और मामले के संबंध में अदालत के आधा दर्जन फैसलों पर चर्चा की गई है। न्यायमूर्ति दीक्षित ने मामले का हवाला देते हुए कहा था, मैंने इस संबंध में 12 से अधिक फैसलों की पुष्टि की है। मामले से संबंधित तर्क और प्रतिवाद हैं। मुख्य न्यायाधीश को मामले को एक विस्तारित या बड़ी पीठ को सौंपने का फैसला करने दीजिए।

हालांकि, पीठ ने अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया, जबकि याचिकाकर्ताओं ने कक्षाओं में हिजाब पहनने पर एक निर्णय देने का अनुरोध किया था, क्योंकि इस शैक्षणिक वर्ष के लिए केवल दो महीने शेष बचे हुए हैं।

वर्दी को अनिवार्य करने और हिजाब पहनने के संबंध में कॉलेज प्रबंधन और विकास समिति द्वारा लिए गए निर्णय को बरकरार रखने के सरकारी सकरुलर को चुनौती देने वाली अब तक सात याचिकाएं अदालत में दायर की गई हैं।

इस बीच, राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान संघ के अध्यक्ष मोहम्मद इम्तियाज ने राज्य के पुलिस प्रमुख प्रवीण सूद को हिजाब विवाद के सिलसिले में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने को लेकर शिकायत सौंपी है।

शिकायत में कहा गया है, विरोध अल्पसंख्यकों को लक्षित कर रहे हैं। उनमें से कुछ कानून और व्यवस्था की स्थिति को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। वे समाज में अशांति पैदा करने और विवाद पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। भाजपा विधायक रघुपति भट, जो उडुपी प्री यूनिवर्सिटी महिला कॉलेज की स्कूल विकास प्रबंधन समिति के अध्यक्ष भी हैं, संकट के लिए जिम्मेदार हैं।

हिजाब विवाद की शुरूआत पिछले महीने उडुपी गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज की कुछ छात्राओं के हिजाब पहनकर कॉलेज परिसर में जाने पर हुई थी, जिन्हें कक्षाओं में जाने की अनुमति नहीं दी गई थी। कॉलेज के अधिकारियों का कहना है कि जो छात्रा पहले बिना हिजाब के आती थीं, वे अब अचानक से हिजाब में आने लगी हैं। बाद में छात्राओं ने बिना हिजाब के कक्षाओं में जाने से इनकार करते हुए विरोध प्रदर्शन किया। यह मुद्दा एक विवाद बन गया और कर्नाटक के अन्य जिलों के साथ ही अन्य प्रदेशों में भी इस मुद्दे को उठाया जा रहा है। इसकी वजह से तनाव बना हुआ है और यहां तक कि हिंसा भी हो चुकी है।

उत्तर प्रदेश

योगी सरकार टीबी रोगियों के करीबियों की हर तीन माह में कराएगी जांच

Published

on

Loading

लखनऊ |  योगी सरकार ने टीबी रोगियों के संपर्क में रहने वाले व्यक्तियों एवं पूर्व टीबी रोगियों की स्क्रीनिंग कराने का निर्णय लिया है। यह स्क्रीनिंग हर तीन महीने पर होगी। वहीं साल के खत्म होने में 42 दिन शेष हैं, ऐसे में वर्ष के अंत तक हर जिलों को प्रिजेंम्टिव टीबी परीक्षण दर के कम से कम तीन हजार के लक्ष्य को हासिल करने के निर्देश दिये हैं। इसको लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य ने सभी जिला क्षय रोग अधिकारियों (डीटीओ) को पत्र जारी किया है।

लक्ष्य को पूरा करने के लिए रणनीति को किया जा रहा और अधिक सुदृढ़

प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पार्थ सारथी सेन शर्मा ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। ऐसे मेें टीबी रोगियों की युद्धस्तर पर स्क्रीनिंग की जा रही है। इसी क्रम में सभी डीटीओ डेटा की नियमित माॅनीटरिंग और कमजोर क्षेत्रों पर ध्यान देने के निर्देश दिये गये हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) का लक्ष्य टीबी मामलों, उससे होने वाली मौतों में कमी लाना और टीबी रोगियों के लिए परिणामों में सुधार करना है। ऐसे में इस दिशा में प्रदेश भर में काफी तेजी से काम हो रहा है। इसी का परिणाम है कि इस साल अब तक प्रदेश में टीबी रोगियों का सर्वाधिक नोटिफिकेशन हुआ है। तय समय पर इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए रणनीति को और अधिक सुदृढ़ किया गया है।

कांटेक्ट ट्रेसिंग और स्क्रीनिंग से टीबी मरीजों की तेजी से होगी पहचान

राज्य क्षय रोग अधिकारी डाॅ. शैलेन्द्र भटनागर ने बताया कि टीबी के संभावित लक्षण वाले रोगियों की कांटेक्ट ट्रेसिंग और स्क्रीनिंग को बढ़ाते हुए फेफड़ों की टीबी (पल्मोनरी टीबी) से संक्रमित सभी लोगों के परिवार के सदस्यों और कार्यस्थल पर लोगों की बलगम की जांच को बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं। कांटेक्ट ट्रेसिंग और स्क्रीनिंग जितनी ज्यादा होगी, उतने ही अधिक संख्या में टीबी मरीजों की पहचान हो पाएगी और उनका इलाज शुरू हो पाएगा। इसी क्रम में उच्च जोखिम वाले लोगों जैसे 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों, डायबिटीज रोगियों, धूम्रपान एवं नशा करने वाले व्यक्तियों, 18 से कम बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) वाले व्यक्तियों, एचआईवी ग्रसित व्यक्तियों और वर्तमान में टीबी का इलाज करा रहे रोगियों के सम्पर्क में आए व्यक्तियों की हर तीन माह में टीबी की स्क्रीनिंग करने के निर्देश दिये गये हैं।

हर माह जिलों का भ्रमण कर स्थिति का जायजा लेने के निर्देश

टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए नैट मशीनों का वितरण सभी ब्लाॅकों पर टीबी की जांच को ध्यान रखने में रखते हुए करने के निर्देश दिये गये हैं। साथ ही उन टीबी इकाइयों की पहचान करने जो आशा के अनुरूप काम नहीं कर रहे हैं उनमें सुधार करने के लिए जरूरी कदम उठाने का आदेश दिया गया है। क्षेत्रीय टीबी कार्यक्रम प्रबन्धन इकाई (आरटीपीएमयू) द्वारा हर माह में जनपदों का भ्रमण करते हुए वहां की स्थिति का जायजा लेने के भी निर्देश दिए हैं।

Continue Reading

Trending