नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई 2008 को जयपुर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में जान गंवाने वालों के पीड़ित परिजनों की याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्थान हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक से इनकार कर दिया है, जिसमें आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश की समीक्षा करने के लिए भी रजामंदी दे दी है। यह याचिका राजेश्वरी देवी और अभिनव तिवाड़ी ने लगाई थी। राजेश्वरी देवी के पति ताराचंद सैनी सांगानेरी गेट हनुमान मंदिर पर हुए बम धमाके में मारे गए थे।
अभिनव तिवाड़ी के पिता मुकेश तिवाड़ी ने चांदपोल हनुमान मंदिर के पास हुए बम धमाके में जान गंवाई थी। राजस्थान हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ यह याचिका लगी थी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की डिविजनल बेंच ने मामले की सुनवाई की। इस मामले में बम ब्लास्ट के आरोपियों ने कैविएट लगा रखी है। इस वजह से उन्हें भी सुना जाएगा। एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड आदित्य जैन ने पीड़ितों की ओर से पैरवी की।
जस्टिस ओका की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ‘बरी होने के बाद उन्हें जेल में कैसे रखा जा सकता है?’ वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि आदेश के ऑपरेटिव हिस्से पर रोक नहीं लगा सकते। इसके बाद कोर्ट ने 17 मई को अंतरिम राहत पहलू पर विचार करने का फैसला किया है।
इस मामले में थे पांच आरोपी
2019 में निचली अदालत ने सुनवाई करते हुए पांच आरोपियों को दोषी पाया था। सैफुर्रहमान, मोहम्मद सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ और मोहम्मद सलमान को फांसी की सजा सुनाई गई थी। एक अन्य आरोपी शाहबाज हुसैन को बरी कर दिया था।
राजस्थान हाईकोर्ट ने चारों दोषियों को दोषमुक्त करते हुए बरी करने का फैसला सुनाया था। इसके खिलाफ पीड़ित याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट की शरण में गए हैं। राज्य सरकार ने भी पांच एसएलपी सुप्रीम कोर्ट में दायर की हैं। इन पर 17 मई को सुनवाई होगी। दोषमुक्त और रिहा हुए आरोपियों ने भी सुप्रीम कोर्ट में कैविएट लगाई थी। बम ब्लास्ट के आरोपियों की ओर से एडवोकेट एम. साईं विनोद, रेहरा खान और चांद कुरेशी ने कोर्ट में पैरवी की।
क्या है पूरा मामला ?
13 मई 2008 को जयपुर में सिलसिलेवार आठ बम धमाके हुए थे जबकि नौवां बम जिंदा बरामद किया गया था। इन सीरियल बम धमाकों में 71 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 185 लोग घायल हुए थे। जयपुर जिला विशेष न्यायालय ने 20 दिसंबर 2019 को चार आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी।
इसके खिलाफ दोषियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को पलटते हुए पुख्ता सबूत के अभाव और जांच में कमजोरियां और कमियां बताते हुए दोषियों को बरी कर दिया।
हाईकोर्ट डिविजनल बेंच ने कहा था कि मामले में जांच एजेंसी को उनकी लापरवाही, सतही और अक्षम कार्यों के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। मामला जघन्य प्रकृति का होने के बावजूद 71 लोगों की जान चली गई और 185 लोगों को चोटें आईं, जिससे न केवल जयपुर शहर में, बल्कि हर नागरिक के जीवन में अशांति फैल गई।
बेंच ने कहा था पूरे देश में हम जांच दल के दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित जांच और अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने के लिए राजस्थान पुलिस के महानिदेशक को निर्देशित करना उचित समझते हैं।