उत्तर प्रदेश
पूरे देश में गूंज रहा है ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ का स्वर : योगी आदित्यनाथ
लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी सरकार में जनता की आकांक्षा के अनुरूप विकास के कार्य हुए हैं। ये पहली बार देश में देखने को मिला है। विकास और विरासत का अद्भुत समन्वय पीएम मोदी की पहचान है। इस दिशा में अद्भुत कार्य हुए हैं। उन्होंने बताया कि इन मुद्दों पर चर्चा करने पर पब्लिक का रिस्पॉन्स मिलता है। जिन मुद्दों पर पब्लिक का सबसे ज्यादा समर्थन मिला है वो है इन्फ्रास्ट्रक्चर। आज देश में हाईवे दोगुने हुए हैं। 2014 से पहले 74 एयरपोर्ट थे आज इनकी संख्या डेढ़ सौ से ज्यादा हैं। कांग्रेस के समय केवल 1 एम्स बना था। अटल जी की सरकार के समय 6 नये एम्स की स्थापना हुई। मोदी जी के कार्यकाल में इनकी संख्या 22 हो गई है। इसी प्रकार आईआईटी, आईआईएम, ट्रिपल आईटी का विस्तार और वन डिस्ट्रिक्ट वन मेडिकल कॉलेज विकास की नई गाथा कह रहे हैं। सीएम योगी सोमवार को मीडिया से बातचीत कर रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पहली बार देश में विरासत का सम्मान भी देखने को मिला है। काशी में विश्वनाथ धाम, महाकाल में महालोक, केदारपुरी, बद्रीनाथ और सोमनाथ मंदिर का पुनरोद्धार और अयोध्या में 500 इंतजार का समाप्त होना व प्रभु श्रीराम का पुन: विराजमान होना। इसके साथ ही इन सभी नगरियों का कायाकल्प भी हुआ है। काशी में पहले 50 लोग एक साथ दर्शन नहीं कर पाते थे। आज 50 हजार भी आ जाएं तो कोई दिक्कत नहीं। अयोध्या में 500 लोग आ जाते थे तो संकट खड़ा हो जाता था, आज 5 लाख भी आ जाएं तो परेशानी नहीं।
सीएम योगी ने कहा कि आस्था से जुड़े केंद्रों के बारे में हमें नया स्वरूप हमें देखने को मिला है। विरासत और विकास का ये अद्भुत समन्वय अगर किसी एक महापुरुष के विजन और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण आज देश में देखने को मिला है तो वह प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में संभव हो पाया है। जनता इन मुद्दों को पूरा समर्थन दे रही है। उन्होंने विश्वास जताया कि यह समर्थन प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में फिर से प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने के लिए आशीर्वाद में बदलेगा। पूरे देश में फिर एक बार मोदी सरकार का स्वर गूंज रहा है। आम जनता फिर से मोदी जी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनने जा रही है।
उत्तर प्रदेश
प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।
महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।
महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।
प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।
महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।
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