उत्तर प्रदेश
राजधानी लखनऊ को मिलेगा इंटरनेशनल एग्जीबिशन कम कन्वेंशन सेंटर का उपहार, मुख्यमंत्री ने दी सैद्धांतिक सहमति
लखनऊ | मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश की राजधानी में विश्वस्तरीय सुविधाओं से युक्त इंटरनेशनल एग्जीबिशन कम कन्वेंशन सेंटर के निर्माण के लिए सैद्धांतिक सहमति दे दी है। बुधवार को शासन स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक में मुख्यमंत्री ने प्रस्तावित इंटरनेशनल कन्वेंशन कम एग्जीबिशन सेंटर के स्वरूप, निर्माण प्रक्रिया, लागत आदि विषयों पर विमर्श किया और कहा कि राजधानी लखनऊ में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रमों के आयोजन के लिए एक सर्वसुविधायुक्त, विश्वस्तरीय हाईटेक कन्वेंशन- सह-एग्जीबिशन सेंटर की आवश्यकता है। कन्वेंशन सेंटर का निर्माण आवास विकास और एलडीए के संयुक्त तत्वावधान में किया जाना चाहिए। राज्य सरकार भी इसमें वित्तीय सहयोग करेगी। निर्माण कार्य के लिए मुख्यमंत्री ने दो वर्ष की अवधि तय की है।
उन्होंने कहा कि कन्वेंशन सेंटर को बहुउपयोगी बनाया जाना चाहिए। कन्वेंशन सेंटर ऐसा हो जहां बड़े सांस्कृतिक, राजनीतिक, राजकीय, धार्मिक समारोह गीत-संगीत के कंसर्ट पूरी भव्यता और गरिमा के साथ आयोजित हो सकें। एग्जीबिशन सेंटर सभी प्रकार के मेलों/प्रदर्शनियों की मेजबानी करने में सक्षम हो, यहां ओपन थियेटर भी हो, समीप ही होटल इंडस्ट्री के लिए भूमि आरक्षित रखी जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि भवन की वास्तुकला में भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब हो, साथ ही जल और ऊर्जा संरक्षण का उदाहरण प्रस्तुत करने वाला हो। उन्होंने कहा कि कन्वेंशन सेंटर में उत्तर प्रदेश के ओडीओपी उत्पाद, हमारे विशिष्ट खान-पान, लोककला, लोकसंगीत का सतत प्रदर्शन भी किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कन्वेंशन सेंटर में छोटे, बड़े और भारी वाहनों की बेहतर पार्किंग, फायर सेफ्टी, प्रसाधन और फ़ूड कोर्ट आदि की व्यवस्था रखने के भी निर्देश दिए।
हाल ही में सम्पन्न यूपी इंटरनेशनल ट्रेड शो की चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसे आयोजनों में लाखों की संख्या में लोगों का आगमन होता है। ऐसे मौकों पर क्राउड मैनेजमेंट की जरूरत होती है, कन्वेंशन सेंटर में प्रदर्शनी हॉल की रूपरेखा तय करते समय इसका ध्यान रखा जाए।
कन्वेंशन सेंटर के प्रस्तावित स्वरूप पर जानकारी देते हुए अधिकारियों ने बताया कि वृंदावन योजना में जहां वर्ष 2020 में डिफेंस एक्सपो का आयोजन हुआ था, वहां 32 एकड़ की भूमि उपलब्ध है, जिस पर इसका निर्माण कराया जा सकता है। यहां चारों ओर से अच्छी कनेक्टिविटी है। लगभग 10 हजार लोगों की क्षमता वाले इस कन्वेंशन सेंटर में अलग-अलग ऑडिटोरियम होंगे। बैठक कक्ष, वीआईपी लाउंज की भी व्यवस्था है। विशाल परिसर में पंचतत्वों को प्रदर्शित करती विशेष ‘पंच वाटिका’ आकर्षण का केंद्र होगी।
उत्तर प्रदेश
प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।
महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।
महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।
प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।
महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।
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