उत्तर प्रदेश
महाकुम्भ के छावनी क्षेत्र में हुआ श्री पंचायती अखाड़ा महा निर्वाणी का भव्य प्रवेश
महाकुम्भ नगर। महाकुम्भ क्षेत्र में सनातन धर्म के ध्वज वाहक अखाड़ों के प्रवेश का सिलसिला जारी है। इसी क्रम में श्री पंचायती अखाड़ा महा निर्वाणी ने राजसी वैभव के साथ छावनी क्षेत्र में प्रवेश किया। शहर में जगह जगह पुष्प वर्षा कर संतों का भव्य स्वागत किया गया। कुम्भ मेला प्रशासन की तरफ से भी अखाड़े के महात्माओं का स्वागत किया गया।
नागा संन्यासियों और महा मंडलेश्वरों की फौज लेकर छावनी क्षेत्र में महा निर्वाणी अखाड़े ने किया प्रवेश
सनातन धर्म के 13 अखाड़ों में सबसे धनवान कहे जाने वाले श्री पंचायती अखाड़ा महा निर्वाणी ने छावनी क्षेत्र में प्रवेश किया। अलोपी बाग के निकट स्थित महा निर्वाणी अखाड़े की स्थानीय छावनी से अखाड़े का भव्य जुलूस उठा। सबसे पहले महा मंडलेश्वर पद का सृजन करने वाले इस अखाड़े में इस समय 67 महा मंडलेश्वर हैं। अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा में भी इसकी झलक देखने को मिली। अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद जी की अगुवाई में यह छावनी प्रवेश यात्रा शुरू हुई जिसमें आगे आगे अखाड़े के इष्ट भगवान कपिल जी का रथ चल रहा था, जिसके बाद आचार्य महामंडलेश्वर का भव्य रथ श्रद्धालुओं को दर्शन दे रहा था।
नारी शक्ति को तरजीह देने वाले अखाड़े में दिखी नारी शक्ति की झलक
नारी शक्ति को महा निर्वाणी अखाड़ा ने हमेशा विशिष्ट स्थान दिया है। अखाड़ों में मातृ शक्ति को स्थान भी सबसे पहले महा निर्वाणी अखाड़ा ने दिया। अखाड़ा के सचिव महंत जमुना पुरी बताते है कि साध्वी गीता भारती को अखाड़ों की पहली महा मंडलेश्वर होने का स्थान प्राप्त है जो उन्हें 1962 में प्रदान किया गया था। निर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी हरि हरानंद जी की शिष्या संतोष पुरी तीन साल की उम्र में अखाड़े में शामिल हुई और उन्हें ही यह उपलब्धि हासिल है। दस साल की उम्र में वह गीता का प्रवचन करती थी जिसके कारण राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें गीता भारती का नाम दिया और संतोष पुरी अब संतोष पुरी से गीता भारती बन गई। छावनी प्रवेश यात्रा में भी इसकी झलक देखने को मिली जिसमें चार महिला मंडलेश्वर भी शामिल हुई। यात्रा में वीरांगना वाहिनी सोजत की झांकी में भी इसकी झलक देखने को मिली। छावनी यात्रा में पर्यावरण संरक्षण के कई प्रतीक भी साथ चल रहे थे। पांच किमी लंबा सफर तय करके शाम को अखाड़े ने छावनी में प्रवेश किया।
उत्तर प्रदेश
यूपी ने बाजी मारी, टीबी नोटिफिकेशन में देश में अव्वल
लखनऊ: प्रदेश की झोली में एक और उपलब्धि आई है। ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के मरीजों की पहचान व इलाज करने में उत्तर प्रदेश 2024 में भी अव्वल रहा है। प्रदेश को बीते साल साढ़े छह लाख मरीजों के चिन्हिकरण का लक्ष्य मिला था। उसके सापेक्ष 6.73 लाख मरीजों की पहचान की गई। ये रिकार्ड है। 2023 में भी प्रदेश ने साढ़े लाख मरीजों के लक्ष्य का आंकड़ा पार किया था। दूसरे स्थान पर महराष्ट्र व तीसरे स्थान पर बिहार का नाम दर्ज है। इसके बाद मध्यप्रदेश व राजस्थान ने नोटिफिकेशन किया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि देश-प्रदेश से टीबी उन्मूलन का एक ही तरीका है कि ज्यादा से ज्यादा मरीजों का चिन्हिकरण व इलाज किया जाए। इसी के मद्देनजर केंद्रीय टीबी डिवीजन ने सभी प्रदेशों को 2024 की शुरुआत में टीबी नोटिफिकेशन का लक्ष्य तय किया था। उत्तर प्रदेश को 6.5 लाख मरीज खोजने का लक्ष्य दिया गया था।
विभागीय आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर तक प्रदेश में 6 लाख 73 हजार टीबी मरीजों की पहचान हुई। इन सभी का इलाज शुरू हो चुका है। टीबी नोटिफिकेशन के लक्ष्य को छू पाने में प्राइवेट डाक्टरों की भूमिका भी सराहनीय रही है। प्रदेश में ढाई लाख से ज्यादा मरीजों की पहचान यानी तकरीबन 40 प्रतिशत मरीज प्राइवेट डाक्टरों के माध्यम से पंजीकृत हुए हैं।
उत्तर प्रदेश के बाद महराष्ट्र में सवा दो लाख मरीजों का पंजीकरण हुआ। तीसरे नंबर पर बिहार में दो लाख मरीज चिंहित किए जा सके। मध्य प्रदेश में 1.78 लाख व राजस्थान में 1.70 लाख मरीजों का चिन्हिकरण किया हुआ।
राज्य टीबी अधिकारी डॉ शैलेंद्र भटनागर ने इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि शीर्ष नेतृत्व के मार्गदर्शन में पूरे वर्ष विभिन्न कार्यक्रम जैसे हर माह की 15 तारीख को एकीकृत निक्षय दिवस, एक्टिव केस फाइंडिंग (एसीएफ) अभियान व दस्तक अभियान चलाए गए जिससे हम ज्यादा से ज्यादा टीबी के लक्षण वाले मरीजों को खोज पाए। इस वक्त 100 दिवसीय सघन टीबी अभियान पूरे प्रदेश में चल रहा है जिसके माध्यम से उच्च जोखिम वाले व प्रिजेम्टिव टीबी वाले केसों को खोजने पर पूरे विभाग का ध्यान केंद्रित है।
टीबी का उन्मूलन प्राइवेट डाक्टरों की सहभागिता के बिना नहीं हो सकता। यह एक कड़वा सच है। उत्तर प्रदेश में मथुरा, आगरा, कानपुर, गोरखपुर व झांसी ने इस मामले में बेहतर प्रदर्शन किया है। लखनऊ, मेरठ, मुरादाबाद, बरेली व गाजियाबाद में भी प्राइवेट डाक्टर सक्रियता दिखा रहे हैं लेकिन श्रावस्ती में बीते साल सिर्फ 44 प्राइवेट नोटिफिकेशन हुए हैं।
इसके अलावा महोबा में 255, सोनभद्र में 374, चित्रकूट में 376, हमीरपुर में 380, कन्नौज में 444, सुल्तानपुर में 444, अमेठी में 447, संतरवीदास नगर में 456, चंदौली में 488 और कानपुर देहात में सिर्फ 468 प्राइवेट नोटिफिकेशन हुए हैं। इन जनपदों में प्राइवेट डाक्टरों की प्रतिभागिता बढ़े जाने की जरूरत है।
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