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उत्तर प्रदेश

मनरेगा के तहत दिव्यांगजनों को रोजगार से जोड़ रही योगी सरकार

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लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में, प्रदेश सरकार राज्य के सबसे कमजोर और जरूरतमंद वर्गों के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित करने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रही है। ग्राम्य विकास विभाग द्वारा मनरेगा योजना के तहत गरीबों, मजदूरों, महिलाओं और दिव्यांगजनों को रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है। सरकार की यह पहल समाज के सभी वर्गों को सशक्त बनाते हुए एक आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश की नींव रख रही है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मानना है कि विकास का असली अर्थ तभी है जब समाज के सबसे कमजोर वर्ग की जरूरतें पूरी हों और उन्हें उनका अधिकार मिलें। सीएम योगी की अगुवाई में मनरेगा योजना को इस तरह से लागू किया गया है कि दिव्यांगजन भी इस योजना के माध्यम से आत्मनिर्भर बन सकें। मुख्यमंत्री का यह प्रयास प्रदेश के समग्र विकास और समाज के सभी वर्गों को समान अवसर प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

दिव्यांगजनों को रोजगार से जोड़ने की विशेष व्यवस्था कर रही योगी सरकार

मनरेगा योजना के अंतर्गत दिव्यांगजनों को उनकी योग्यता, क्षमता और कार्यकुशलता के अनुसार रोजगार प्रदान किया जा रहा है। समाज के इस वर्ग को भी आजीविका का समान अधिकार मिले इसके लिए सीएम योगी प्रयासरत हैं। इसी के मद्देनजर वर्ष 2017-18 से लेकर अब तक 1.24 लाख से अधिक दिव्यांगजनों को रोजगार देकर उनकी आजीविका को सशक्त बनाया गया है। इन दिव्यांगजनों के माध्यम से अब तक 44.64 लाख मानव दिवस सृजित किए जा चुके हैं। ग्राम्य विकास से मिली जानकारी के अनुसार, मनरेगा योजना के अंतर्गत जरूरतमंद श्रमिकों को उनकी मांग के अनुसार 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है। दिव्यांगजनों को उनकी जरूरतों और क्षमता के आधार पर कार्य सौंपा जा रहा है। यह योजना न केवल रोजगार प्रदान कर रही है, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता को भी बढ़ावा दे रही है।

दिव्यांगजनों को रोजगार उपलब्ध कराने में ऐतिहासिक प्रगति

वित्तीय वर्ष 2024-25 में दिव्यांगजनों को रोजगार उपलब्ध कराने में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। इस वर्ष 50,201 पंजीकृत दिव्यांग जॉब कार्ड धारकों में से 23,262 दिव्यांगजनों को मनरेगा योजना के तहत रोजगार प्रदान किया गया है। इसके साथ ही, अब तक 8.28 लाख मानव दिवस सृजित किए गए हैं। बीते वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2017-18 में 11,332, 2018-19 में 10,993, 2019-20 में 10,699, 2020-21 में 17,400, 2021-22 में 14,065, 2022-23 में 13,948 और 2023-24 में 22,630 दिव्यांगजनों को रोजगार प्रदान किया गया। वर्तमान वर्ष में यह आंकड़ा 23,262 तक पहुंच चुका है।

रोजगार सृजन में अपनाई जा रही है डिजिटल और पारदर्शी प्रक्रिया

सरकार ने मनरेगा योजना को पूरी तरह पारदर्शी बनाने के लिए डिजिटल तकनीक का उपयोग किया है। पंजीकरण, जॉब कार्ड वितरण और कार्य आवंटन की प्रक्रिया को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया गया है। इससे योजना की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता बनी रहती है और लाभार्थियों को उनकी जरूरत के अनुसार कार्य शीघ्रता से प्रदान किया जाता है। मनरेगा योजना के तहत दिव्यांगजनों को उनकी शारीरिक क्षमता के अनुसार कार्य प्रदान किया जाता है। यह सुनिश्चित किया गया है कि उन्हें ऐसे कार्य सौंपे जाएं, जिन्हें वे सहजता से कर सकें। सरकार की यह पहल न केवल उनकी आजीविका को सुरक्षित करती है, बल्कि उन्हें समाज में सम्मान और स्वाभिमान के साथ जीने का अवसर भी प्रदान करती है।

उत्तर प्रदेश सरकार की मनरेगा योजना, दिव्यांगजनों सहित सभी जरूरतमंदों के लिए रोजगार सृजन का एक प्रभावी साधन बन गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में, यह योजना समाज के हर वर्ग को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।

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उत्तर प्रदेश

यूपी ने बाजी मारी, टीबी नोटिफिकेशन में देश में अव्वल

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लखनऊ: प्रदेश की झोली में एक और उपलब्धि आई है। ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के मरीजों की पहचान व इलाज करने में उत्तर प्रदेश 2024 में भी अव्वल रहा है। प्रदेश को बीते साल साढ़े छह लाख मरीजों के चिन्हिकरण का लक्ष्य मिला था। उसके सापेक्ष 6.73 लाख मरीजों की पहचान की गई। ये रिकार्ड है। 2023 में भी प्रदेश ने साढ़े लाख मरीजों के लक्ष्य का आंकड़ा पार किया था। दूसरे स्थान पर महराष्ट्र व तीसरे स्थान पर बिहार का नाम दर्ज है। इसके बाद मध्यप्रदेश व राजस्थान ने नोटिफिकेशन किया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि देश-प्रदेश से टीबी उन्मूलन का एक ही तरीका है कि ज्यादा से ज्यादा मरीजों का चिन्हिकरण व इलाज किया जाए। इसी के मद्देनजर केंद्रीय टीबी डिवीजन ने सभी प्रदेशों को 2024 की शुरुआत में टीबी नोटिफिकेशन का लक्ष्य तय किया था। उत्तर प्रदेश को 6.5 लाख मरीज खोजने का लक्ष्य दिया गया था।

विभागीय आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर तक प्रदेश में 6 लाख 73 हजार टीबी मरीजों की पहचान हुई। इन सभी का इलाज शुरू हो चुका है। टीबी नोटिफिकेशन के लक्ष्य को छू पाने में प्राइवेट डाक्टरों की भूमिका भी सराहनीय रही है। प्रदेश में ढाई लाख से ज्यादा मरीजों की पहचान यानी तकरीबन 40 प्रतिशत मरीज प्राइवेट डाक्टरों के माध्यम से पंजीकृत हुए हैं।

उत्तर प्रदेश के बाद महराष्ट्र में सवा दो लाख मरीजों का पंजीकरण हुआ। तीसरे नंबर पर बिहार में दो लाख मरीज चिंहित किए जा सके। मध्य प्रदेश में 1.78 लाख व राजस्थान में 1.70 लाख मरीजों का चिन्हिकरण किया हुआ।

राज्य टीबी अधिकारी डॉ शैलेंद्र भटनागर ने इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि शीर्ष नेतृत्व के मार्गदर्शन में पूरे वर्ष विभिन्न कार्यक्रम जैसे हर माह की 15 तारीख को एकीकृत निक्षय दिवस, एक्टिव केस फाइंडिंग (एसीएफ) अभियान व दस्तक अभियान चलाए गए जिससे हम ज्यादा से ज्यादा टीबी के लक्षण वाले मरीजों को खोज पाए। इस वक्त 100 दिवसीय सघन टीबी अभियान पूरे प्रदेश में चल रहा है जिसके माध्यम से उच्च जोखिम वाले व प्रिजेम्टिव टीबी वाले केसों को खोजने पर पूरे विभाग का ध्यान केंद्रित है।

टीबी का उन्मूलन प्राइवेट डाक्टरों की सहभागिता के बिना नहीं हो सकता। यह एक कड़वा सच है। उत्तर प्रदेश में मथुरा, आगरा, कानपुर, गोरखपुर व झांसी ने इस मामले में बेहतर प्रदर्शन किया है। लखनऊ, मेरठ, मुरादाबाद, बरेली व गाजियाबाद में भी प्राइवेट डाक्टर सक्रियता दिखा रहे हैं लेकिन श्रावस्ती में बीते साल सिर्फ 44 प्राइवेट नोटिफिकेशन हुए हैं।

इसके अलावा महोबा में 255, सोनभद्र में 374, चित्रकूट में 376, हमीरपुर में 380, कन्नौज में 444, सुल्तानपुर में 444, अमेठी में 447, संतरवीदास नगर में 456, चंदौली में 488 और कानपुर देहात में सिर्फ 468 प्राइवेट नोटिफिकेशन हुए हैं। इन जनपदों में प्राइवेट डाक्टरों की प्रतिभागिता बढ़े जाने की जरूरत है।

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