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सनातनी संस्कृति और परंपरा की द्योतक है गुरु पूर्णिमा

राजेन्द्र सिंह

गुरु पूर्णिमा, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो गुरु के प्रति श्रद्धा, सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, जिन्हें प्रथम गुरु के रूप में पूजा जाता है। गुरु पूर्णिमा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जो हमें हमारे जीवन में गुरु की महत्ता, उनके आचरण, विचारों और जीवन जीने की कला को समझने और अपनाने के लिए प्रेरित करता है। आज के आधुनिक युग में, जब समाज में भौतिकवाद, मानसिक प्रदूषण और यूट्यूब जैसे माध्यमों से फैल रहे अधूरे या भ्रामक ज्ञान के कारण युवा पीढ़ी दिशाहीन हो रही है, गुरु का महत्व और भी बढ़ जाता है।

भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। गुरु वह दीपक है जो अज्ञान के अंधेरे को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। गुरु शब्द का अर्थ है- “गु” अर्थात अंधकार और “रु” अर्थात उसका नाश करने वाला। इस प्रकार, गुरु वह है जो हमें अज्ञानता, भ्रम और भटकाव से निकालकर सत्य, ज्ञान और आत्मजागरूकता की ओर ले जाता है। गुरु केवल एक शिक्षक नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक, प्रेरक और जीवन का पथ प्रदर्शक होता है। वे हमें न केवल बौद्धिक ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि नैतिकता, संयम, धैर्य और आत्म-अनुशासन जैसे गुणों को भी हमारे जीवन में समाहित करते हैं।ऋग्वेद में कहा गया है, “आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः” अर्थात् हमें सभी दिशाओं से शुभ और कल्याणकारी विचार प्राप्त हों। गुरु ही वह माध्यम है जो हमें इन शुभ विचारों तक ले जाता है। गुरु की महत्ता इस बात में निहित है कि वे हमें सही और गलत का भेद समझाते हैं, हमें जीवन के उद्देश्य को पहचानने में मदद करते हैं और हमें भवसागर से पार करने का मार्ग दिखाते हैं।

गुरु का आचरण और विचार उनके शिष्यों के लिए एक आदर्श होते हैं। एक सच्चा गुरु स्वयं अपने जीवन में उन मूल्यों को जीता है, जो वह अपने शिष्यों को सिखाता है। उनका जीवन सादगी, सत्य, और संयम का प्रतीक होता है। गुरु का आचरण हमें यह सिखाता है कि जीवन में सुख और शांति की प्राप्ति भौतिक सुख-सुविधाओं में नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति और नैतिकता में है।गुरु के विचार हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं। वे हमें यह समझाते हैं कि जीवन में संतुलन, धैर्य और समर्पण कितने महत्वपूर्ण हैं। गुरु हमें यह सिखाते हैं कि हर परिस्थिति में सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए और चुनौतियों को अवसर के रूप में देखना चाहिए। उदाहरण के लिए, भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान में न केवल युद्ध की कला सिखाई, बल्कि जीवन के गहन दार्शनिक सत्य भी समझाए। श्रीकृष्ण जैसे गुरु का मार्गदर्शन ही अर्जुन को भटकाव से निकालकर कर्तव्य पथ पर ले गया।

गुरु हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं। यह कला केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू- जैसे समय प्रबंधन, भावनात्मक संतुलन, नैतिक निर्णय और सामाजिक जिम्मेदारी- को शामिल करती है। गुरु हमें नियम और संयम का महत्व समझाते हैं। संयम वह आधार है जो हमें अनुशासित और केंद्रित रखता है। नियमित जीवनशैली, स्वस्थ आदतें और नैतिक मूल्य हमें मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त बनाते हैं।गुरु हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में सुख और दुख, सफलता और असफलता क्षणिक हैं। इनका सामना करने के लिए हमें आत्मनियंत्रण और धैर्य की आवश्यकता होती है। गुरु के मार्गदर्शन में हम यह सीखते हैं कि क्रोध, लोभ, और अहंकार जैसे नकारात्मक गुणों को नियंत्रित कर हम अपने जीवन को और अधिक सार्थक बना सकते हैं।

आज का युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है। यूट्यूब और सोशल मीडिया जैसे माध्यमों ने ज्ञान के प्रसार को आसान तो बनाया है, लेकिन इसके साथ ही भ्रामक और अधूरे ज्ञान का प्रसार भी बढ़ा है। आज की युवा पीढ़ी यूट्यूब पर उपलब्ध त्वरित और सतही सामग्री की ओर आकर्षित हो रही है। यह सामग्री अक्सर सनसनीखेज, भ्रामक और मूल्यहीन होती है, जो युवाओं को भटकाव, मानसिक तनाव और दिशाहीनता की ओर ले जाती है। समाज में बढ़ता भौतिकवाद, नैतिक पतन और मानसिक प्रदूषण इस बात का प्रमाण है कि हम सही मार्गदर्शन से दूर हो रहे हैं।यूट्यूब और अन्य डिजिटल माध्यमों पर उपलब्ध सामग्री में गहराई और प्रामाणिकता का अभाव होता है। यह सामग्री तात्कालिक सुख और मनोरंजन पर केंद्रित होती है, जो युवाओं को आत्म-जागरूकता और नैतिकता से दूर ले जाती है। ऐसे में गुरु की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। गुरु वह दिशा-सूचक है जो हमें सही और गलत का भेद समझाता है और हमें भवसागर से निकालकर सही मार्ग पर ले जाता है।
गुरु पूर्णिमा का पर्व हमें गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देता है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि गुरु के बिना जीवन की यात्रा अधूरी है। गुरु पूर्णिमा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जो हमें आत्म-चिंतन और आत्म-मूल्यांकन के लिए प्रेरित करता है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने गुरु के दिखाए मार्ग पर कितना चल पाए हैं और अपने जीवन को कितना सार्थक बना पाए हैं।

गुरु पूर्णिमा का महत्व इस बात में भी है कि यह हमें गुरु-शिष्य परंपरा की याद दिलाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है। इस परंपरा में गुरु अपने शिष्य को केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन के मूल्यों, संस्कारों और नैतिकता का भी पाठ पढ़ाता है। गुरु पूर्णिमा हमें यह सिखाती है कि हमें अपने गुरु के प्रति न केवल श्रद्धा रखनी चाहिए, बल्कि उनके द्वारा दिए गए ज्ञान और मार्गदर्शन को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
आज के समाज में, जहां मानसिक प्रदूषण, भौतिकवाद और भटकाव अपने चरम पर है, गुरु का मार्गदर्शन एकमात्र रास्ता है जो हमें इस भवसागर से निकाल सकता है। गुरु हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा सुख आत्मिक शांति और आत्म-जागरूकता में है, न कि भौतिक सुख-सुविधाओं में। वे हमें यह समझाते हैं कि जीवन का असली उद्देश्य आत्म-विकास और समाज के कल्याण में योगदान देना है।गुरु का मार्गदर्शन हमें यह सिखाता है कि हमें अपने विचारों और कर्मों को शुद्ध रखना चाहिए। वे हमें यह समझाते हैं कि जीवन में संतुलन और संयम ही हमें सच्ची सफलता और शांति की ओर ले जा सकता है। गुरु के मार्गदर्शन में हम यह सीखते हैं कि हमें अपने अहंकार, क्रोध और लोभ को त्यागकर एक सात्विक और सार्थक जीवन जीना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा का पर्व हमें यह याद दिलाता है कि गुरु हमारे जीवन का वह प्रकाश है जो हमें अंधेरे से निकालकर ज्ञान और सत्य की ओर ले जाता है। आज के युग में, जब समाज मानसिक प्रदूषण और भटकाव का शिकार हो रहा है, गुरु की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। गुरु का आचरण, उनके विचार और जीवन जीने की कला हमें एक सार्थक और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती है। गुरु पूर्णिमा हमें यह सिखाती है कि हमें अपने गुरु के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता रखनी चाहिए और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। इस पर्व के माध्यम से हम न केवल अपने गुरु को सम्मान देते हैं, बल्कि उनके द्वारा दिए गए ज्ञान को अपने जीवन में उतारने का संकल्प भी लेते हैं। इस प्रकार, गुरु पूर्णिमा हमें आत्म-जागरूकता, नैतिकता और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है, जो हमें इस भवसागर से पार करने में सहायता करती है।

*(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और कई समाचार पत्रों के संपादक रहे हैं।)*

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