नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदुस्तान यूनिलिवर लिमिटेड (HUL) से जुड़े एक मामले में स्पष्ट किया है कि जीएसटी दरों में कटौती का सीधा लाभ उपभोक्ताओं को कीमतों में कमी के रूप में मिलना चाहिए। अदालत ने कहा कि पुरानी कीमत बरकरार रखकर केवल उत्पाद की मात्रा बढ़ाना उचित नहीं है।यह फैसला HUL की डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी मेसर्स शर्मा ट्रेडिंग की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया गया।
कोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और शैल जैन की पीठ ने 23 सितंबर को दिए फैसले में कहा: जीएसटी दरों में कटौती का उद्देश्य उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता बढ़ाना है।यदि कंपनियां कीमत घटाने की बजाय मात्रा बढ़ाती हैं, तो यह कटौती के उद्देश्य को बेअसर कर देता है।इस तरह की रणनीतियां धोखाधड़ी के समान हैं और उपभोक्ता के विकल्पों को सीमित करती हैं।
मामला क्या है?
साल 2017 में जीएसटी दरों में बदलाव के बाद वैसलीन पर टैक्स 28% से घटकर 18% हो गया था।HUL ने कीमतें घटाने के बजाय मात्रा बढ़ा दी और बेस प्राइस ₹14.11 प्रति यूनिट कर दिया।राष्ट्रीय मुनाफाखोरी प्राधिकरण (NAA) ने 2018 में कंपनी पर 18% ब्याज सहित जुर्माना लगाया और ₹5,50,186 उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा करने का आदेश दिया।इस आदेश को चुनौती देते हुए कंपनी ने याचिका दायर की, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया और जुर्माना बरकरार रखा।यह फैसला ऐसे समय में आया है जब जीएसटी परिषद ने 22 सितंबर 2025 से कर ढांचे में बड़े बदलाव का ऐलान किया है।अब बहु-स्लैब प्रणाली की जगह मुख्य रूप से दो दरें – 5% और 18% लागू होंगी।विलासिता और हानिकारक वस्तुओं पर 40% टैक्स लगाया जाएगा।