नई दिल्ली। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र निर्माण का ध्येय लेकर चलने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) आज अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर चुका है। त्याग, अनुशासन और निःस्वार्थ सेवा का प्रतीक यह संगठन आज दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना जाता है।
असाधारण परिस्थितियों में हुई थी स्थापना
संघ की स्थापना वर्ष 1925 में विजयादशमी के दिन डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। उस समय भारत अंग्रेजों की गुलामी झेल रहा था और आंतरिक रूप से समाज अस्पृश्यता, विखंडन और आत्मगौरव के क्षरण जैसी विसंगतियों से ग्रस्त था। डॉ. हेडगेवार ने महसूस किया कि जब तक हर भारतीय के हृदय में आत्मबोध और सांस्कृतिक चेतना जागृत नहीं होगी, तब तक भारत पुनः अपने गौरव को प्राप्त नहीं कर पाएगा।
चुनौतियों के बीच भी आगे बढ़ी संघ की यात्रा
पिछले 100 वर्षों में संघ को कई बाधाओं और हमलों का सामना करना पड़ा। स्वतंत्रता के बाद तीन बार प्रतिबंध लगाए गए गांधीजी की हत्या में झूठा फंसाना, आपातकाल और अयोध्या आंदोलन के बाद। इसके अलावा कश्मीर, केरल और बंगाल जैसे प्रांतों में आज भी स्वयंसेवकों पर हमले होते रहे हैं। इसके बावजूद संघ की यात्रा रुकी नहीं।
मध्यप्रदेश और उज्जैन का योगदान
मध्यप्रदेश की गौरव नगरी उज्जैन में 1930 के दशक में संघ कार्य अंकुरित हुआ और 1936 में हैदराबाद आंदोलन, फिर गोवा मुक्ति और दादरा-नगर हवेली आंदोलनों में उज्जैन के स्वयंसेवकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। संघ के स्वयंसेवकों ने विभाजन की पीड़ा में शरणार्थियों की सेवा से लेकर हर युद्ध में राष्ट्र रक्षा तक योगदान दिया।
शताब्दी वर्ष पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने समाज में पंच परिवर्तन का संदेश दिया है
1. स्वदेशी और आत्मबोध
2. नागरिक कर्तव्य का पालन
3. सामाजिक समरसता और सद्भाव
4. पर्यावरण संरक्षण
5. कुटुंब प्रबोधन व पारिवारिक संस्कार
प्रधानमंत्री मोदी का संदेश
संघ की शताब्दी यात्रा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष डाक टिकट और 100 रुपये का स्मृति सिक्का जारी किया। सिक्के पर एक ओर राष्ट्रीय चिह्न और दूसरी ओर वरद मुद्रा में भारत माता की भव्य छवि के साथ स्वयंसेवकों का चित्र अंकित है।संघ का कहना है कि शताब्दी वर्ष को वह उत्सव नहीं बल्कि संकल्प दिवस के रूप में मना रहा है। इसका उद्देश्य भारत के परम वैभव और विश्व पटल पर सांस्कृतिक पुनर्प्रतिष्ठा का संकल्प लेना है।