नई दिल्ली। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में हाल के दिनों में हालात बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं। बिजली दरों में भारी बढ़ोतरी, खाद्य संकट और सरकारी विशेषाधिकारों के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर आई है। इन व्यापक विरोध प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई हिंसक झड़पों में कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई, जबकि कई दर्जन लोग घायल बताए जा रहे हैं।
स्थिति बिगड़ने पर पाकिस्तानी प्रशासन ने पूरे क्षेत्र में इंटरनेट और दूरसंचार सेवाएं बंद कर दीं तथा अतिरिक्त पुलिस बल तैनात कर दिए। बताया जा रहा है कि प्रदर्शन का नेतृत्व जम्मू-कश्मीर संयुक्त अवामी एक्शन कमेटी (जेएएसी) कर रही है, जिसमें नागरिक समाज और व्यापारी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं। कमेटी ने सरकारी मंत्रियों और अधिकारियों को दिए गए विशेषाधिकार समाप्त करने तथा शरणार्थियों के लिए आरक्षित 12 विधानसभा सीटों को खत्म करने की मांग उठाई है।
हिंसा के बाद प्रदर्शनकारियों ने मारे गए लोगों के जनाजे की नमाज अदा करते हुए विरोध और तेज कर दिया। कई इलाकों में कर्फ्यू जैसी स्थिति है और सभी शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया गया है।
भारत सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि पाकिस्तान द्वारा निर्दोष नागरिकों पर की गई बर्बर कार्रवाई उसके दमनकारी रवैये और पीओके के संसाधनों की लूट का परिणाम है। उन्होंने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान को इन गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने दोहराया कि जम्मू, कश्मीर और लद्दाख भारत के अभिन्न अंग हैं और रहेंगे।
इस बीच, स्थिति को शांत करने के प्रयास में पाकिस्तान की संघीय सरकार ने विशेष वार्ताकारों को मुजफ्फराबाद भेजा है ताकि जेएएसी के प्रतिनिधियों से बातचीत की जा सके। हालांकि, इससे पहले हुए वार्ता प्रयास निष्फल रहे थे, जिसके बाद हालात और बिगड़ गए।
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (HRCP) ने भी सुरक्षाबलों की कार्रवाई और नागरिकों की मौत की निंदा की है। आयोग ने कहा है कि जब तक क्षेत्र के लोगों को उनके मौलिक राजनीतिक अधिकार नहीं दिए जाते, तब तक किसी भी वार्ता से सार्थक परिणाम की उम्मीद नहीं की जा सकती।