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भारत में सुपरफूड क्विनोआ की खेती की क्रांति: कृषि वैज्ञानिक प्रदीप द्विवेदी से विशेष बातचीत

संवाददाता: अंकित कुमार गोयल

फीचर रिपोर्ट: न्यूज़ जर्नल स्पेशल सीरीज़ “भारत के उभरते फसल नवाचार”

क्विनोआ या किनोआ (Quinoa) आज दुनिया भर में सुपरफूड के रूप में जानी जाती है। यह स्यूडो ग्रेन (Pseudograin) है, यानी यह असली अनाज नहीं बल्कि एक बीज है, लेकिन पोषण की दृष्टि से यह गेहूं, चावल या जौ से कहीं अधिक समृद्ध है। दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतीय क्षेत्र से उत्पन्न यह फसल अब भारत के किसानों के लिए नई संभावनाएं लेकर आई है। भारत में इसे वैज्ञानिक रूप से लोकप्रिय बनाने और स्थानीय जलवायु के अनुसार किस्में विकसित करने का श्रेय कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप द्विवेदी को जाता है। न्यूज़ जर्नलिस्ट अंकित कुमार गोयल ने उनसे विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के प्रमुख अंश।

क्विनोआ की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी

क्विनोआ ठंडी से लेकर अर्धशुष्क जलवायु तक में उगाई जा सकती है। इसके लिए 15°C से 25°C तापमान सबसे उपयुक्त माना जाता है। यह हल्की दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी में अच्छी तरह पनपती है, जिसमें जल निकासी अच्छी हो। यह हल्की क्षारीय मिट्टी (pH 6.0–8.5) में भी उगाई जा सकती है। भारत में यह राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के शुष्क क्षेत्रों में सफल रही है।

क्विनोआ की किस्में और विशेषताएं

विश्वभर में क्विनोआ की 120 से अधिक किस्में पाई जाती हैं। इनमें प्रमुख हैं । व्हाइट क्विनोआ, जो हल्के स्वाद वाली और पकाने में आसान होती है; रेड क्विनोआ, जिसमें एंटीऑक्सिडेंट्स और फाइबर अधिक होते हैं; और ब्लैक क्विनोआ, जिसमें प्रोटीन और मिनरल्स की मात्रा सबसे ज्यादा होती है। भारत में डॉ. द्विवेदी और उनकी टीम ने “Indian Quinoa Variety – IQ1” और “IQ2” नामक किस्में विकसित की हैं, जो कम पानी और अधिक तापमान सहन कर सकती हैं।

 

 

खेती की चुनौतियां और समाधान

क्विनोआ की खेती में किसानों में जानकारी की कमी और बीज की सीमित उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। इसके अलावा प्रसंस्करण यूनिट्स और मार्केट चैनल की भी कमी है। डॉ. द्विवेदी के अनुसार, कृषि विश्वविद्यालयों को डेमो प्लॉट स्थापित करने, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने और स्थानीय स्तर पर प्रोसेसिंग यूनिट्स लगाने की जरूरत है।

क्विनोआ के पोषक तत्व और स्वास्थ्य लाभ

क्विनोआ को संपूर्ण प्रोटीन अनाज कहा जाता है क्योंकि इसमें सभी नौ आवश्यक अमिनो एसिड पाए जाते हैं। इसमें 14–16% प्रोटीन, 7–10% फाइबर, कैल्शियम, आयरन, विटामिन B1, B2, फोलेट और ओमेगा-3 फैटी एसिड्स मौजूद होते हैं। यह ग्लूटेन-फ्री है और डायबिटीज, मोटापा तथा हृदय रोगियों के लिए लाभकारी है।

उर्वरक और कीटनाशक प्रबंधन

क्विनोआ एक लो-इंपुट फसल है, जिसे बहुत कम उर्वरक और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है। जैविक खेती में गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट पर्याप्त होता है। कीट नियंत्रण के लिए नीम तेल या लहसुन-अदरक का अर्क छिड़कना कारगर है।

कटाई और प्रसंस्करण प्रक्रिया

बुवाई के 100–120 दिन बाद फसल कटाई योग्य हो जाती है। पौधों को सूखने पर काटकर छाया में सुखाया जाता है और बीज निकालने के बाद धूप में सुखाया जाता है। बीजों पर मौजूद सैपोनिन परत को धोकर या पॉलिश कर हटाया जाता है। इसके बाद इसे पैकिंग यूनिट में सुखाकर 10–12% नमी पर पैक किया जाता है।

आर्थिक लाभ और किसानों की आय

एक हेक्टेयर भूमि से औसतन 10 क्विंटल उत्पादन होता है। बाजार में इसका मूल्य ₹150–200 प्रति किलो तक है। प्रसंस्करण और ब्रांडिंग के बाद यह मूल्य ₹300–400 प्रति किलो तक पहुंच सकता है। इस प्रकार किसान प्रति हेक्टेयर ₹1.5 से ₹2 लाख तक का लाभ कमा सकते हैं।

सिंचाई और प्रबंधन

क्विनोआ को बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है। 3–4 सिंचाइयां पर्याप्त होती हैं बुवाई के समय, फूल आने पर, दाने भरने की अवस्था में और आवश्यकता अनुसार। ड्रिप इरिगेशन से पानी की बचत होती है और उपज में वृद्धि भी होती है।

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