जिस तेज़ी से सैन्य अभियान चला कर तालिबान ने महज़ कुछ सप्ताह में अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा किया है, उसने दुनियाभर के सुरक्षा और कूटनीति मामलों के विशेषज्ञों को परेशानी में डाल दिया है। राजधानी काबुल के तालिबान के कब्ज़े में जाने के बाद कई देश जल्द से जल्द अपने राजनयिकों और आम नागरिकों को अफ़ग़ानिस्तान से निकालने के लिए विशेष अभियान चला रहे हैं। लेकिन इसके साथ जो चीज़ पीछे छूट रही है, वो है अफ़ग़ानिस्तान में बीते दो दशकों में किया गया विकास का काम और निवेश।
पाकिस्तान और चीन के साथ लंबे वक़्त से भारत के सीमा से जुड़े विवाद हैं। माना जा रहा है कि भविष्य में अफ़ग़ानिस्तान में इन दोनों की भूमिका अहम होने वाली है। पाकिस्तान से सटी अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पूरी तरह से लोगों के लिए बंद नहीं हैं, इसके आर-पार जाना लोगों के लिए बेहद आसान है। पाकिस्तान लंबे वक्त से अफ़ग़ानिस्तान से जुड़े मामलों भी सक्रिय भूमिका निभाता आया है।
अब व्यापारिक रूप से पाकिस्तान का सहयोगी चीन भी अफ़ग़ानिस्तान में अधिक दिलचस्पी दिखा रहा है। बीते महीने चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने तालिबान के वरिष्ठ नेताओं के साथ एक अहम बैठक की थी, जो इस बात का संकेत है कि पड़ोसियों के मामले में वो अब मूकदर्शक नहीं बने रहना चाहता।
पश्चिमी देशों की लोकतांत्रिक सरकारों और भारत जैसे दूसरे लोकतांत्रिक राष्ट्र के बीच अफ़ग़ानिस्तान गठबंधन की एक ढीली कड़ी जैसा था। लेकिन उम्मीद की जा रही है कि आगामी दिनों में दक्षिण एशिया में होने वाले इस बड़े खेल में पाकिस्तान, रूस, ईरान और चीन की बेहद अहम भूमिका होने वाली है।