झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पिता और झारखंड आंदोलन के पुरोधा शिबू सोरेन के निधन पर गहरे दुख के साथ भावनात्मक शब्दों में श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि ये उनके जीवन के सबसे मुश्किल पल हैं। केवल एक पिता नहीं, बल्कि झारखंड की आत्मा का एक मजबूत स्तंभ खो गया है। हेमंत ने कहा कि “बाबा सिर्फ मेरे पिता नहीं थे, वो मेरे विचारों की जड़ थे। एक ऐसा वृक्ष जिसकी छांव ने न जाने कितनों को अन्याय और तपती जिंदगी से राहत दी।”
साधारण शुरुआत, असाधारण संघर्ष
उन्होंने बताया कि शिबू सोरेन की जिंदगी की शुरुआत एक छोटे से गांव, नेमरा से हुई थी। अभावों में पले-बढ़े शिबू सोरेन ने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था। लेकिन उसी गरीबी और शोषण ने उनमें लड़ने की आग पैदा की। हेमंत ने लिखा, “मैंने उन्हें हल चलाते देखा, लोगों के साथ जमीन पर बैठकर बात करते देखा। वह सिर्फ नेता नहीं थे, अपने लोगों का दर्द जीने वाले इंसान थे।”
‘दिशोम गुरु’ की उपाधि दिलों से निकली
हेमंत ने बचपन की एक याद साझा की, जब उन्होंने शिबू सोरेन से पूछा था कि लोग उन्हें ‘दिशोम गुरु’ क्यों कहते हैं। जवाब में उन्होंने कहा था, “क्योंकि मैंने उनके दुखों को समझा और उन्हें अपना लिया।” यह कोई सरकारी पद नहीं था, बल्कि जनता के दिलों से निकला एक सम्मान था।
संघर्ष की मिसाल
हेमंत ने लिखा कि उनके पिता का जीवन लगातार संघर्षों से भरा रहा। वे कभी किसी ताकत के आगे नहीं झुके, हमेशा अन्याय के खिलाफ डटे रहे। “उनका संघर्ष किसी किताब में नहीं लिखा जा सकता, वह उनके पसीने, आवाज और फटी हुई चप्पलों में बसता था।”
सत्ता नहीं, पहचान का सपना था
झारखंड राज्य बनने को शिबू सोरेन ने अपनी मंजिल जरूर माना, लेकिन उन्होंने कभी सत्ता को अपनी उपलब्धि नहीं कहा। उन्होंने हमेशा यही माना कि यह राज्य उनके लोगों की पहचान है, न कि कोई राजनीतिक सिंहासन।
“अब वह हमारे कंधों पर हैं”
हेमंत ने भावुक होकर लिखा, “बाबा अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन झारखंड की हर मिट्टी, हर ताल, हर जंगल, हर थाप में वो हमेशा रहेंगे। उनके सपने को अब हम पूरा करेंगे। उनका संघर्ष अधूरा नहीं रहने देंगे।”
“हम चलेंगे उनके बताए रास्ते पर”
अंत में उन्होंने लिखा, “बाबा, अब आप विश्राम कीजिए। आपने अपनी भूमिका पूरी निभा दी। अब हमें आपके पदचिन्हों पर चलकर झारखंड को आगे ले जाना है। झारखंड आपका ऋणी रहेगा। मैं, आपका बेटा, आपका वादा निभाऊंगा। दिशोम गुरु अमर रहें। जय झारखंड।”