पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्हें राजनीति में अक्सर ‘सुशासन बाबू’ कहा जाता है, पिछले दो दशकों से अपनी सरकार की पारदर्शी और भ्रष्टाचार-विरोधी छवि के लिए जाने जाते हैं। सत्ता में रहते हुए उन्होंने कई बार ऐसे कठिन फैसले लिए, जिनसे यह संदेश गया कि उनकी सरकार में दागदार छवि वाले मंत्रियों के लिए कोई जगह नहीं है।नीतीश की यह नीति उन्हें न सिर्फ बाकी नेताओं से अलग करती है, बल्कि बिहार की राजनीति में उन्हें एक ईमानदार और सख्त प्रशासक की पहचान भी देती है।
जब-जब नीतीश ने दिखाया सख्त रुख
1. जीतन राम मांझी (2005)
पहले कार्यकाल में कल्याण मंत्री मांझी पर दाखिला घोटाले के आरोप लगे। नीतीश ने तुरंत इस्तीफा लिया। बाद में मांझी को क्लीन चिट मिली और वे उनके करीबी सहयोगी बने। आगे चलकर उन्हें मुख्यमंत्री भी बनाया गया।
2. रामानंद सिंह (2008)
ग्रामीण विकास मंत्री पर सरकारी भूमि से जुड़े मामले में आरोप लगे। शुरुआती जांच के आधार पर नीतीश ने इस्तीफा मांग लिया।
3. अवधेश कुशवाहा (2015)
चुनाव से ठीक पहले उत्पाद मंत्री कुशवाहा एक स्टिंग ऑपरेशन में रिश्वत लेते कैमरे पर आए। नीतीश ने फौरन उनका इस्तीफा स्वीकार किया, जिससे सरकार की छवि पर आंच नहीं आई।
4. मंजू वर्मा (2018)
मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में मंत्री मंजू वर्मा के पति का नाम सामने आया। नीतीश ने दबाव में आए बिना उनसे इस्तीफा ले लिया।
5. मेवालाल चौधरी (2020)
शिक्षा मंत्री के तौर पर शपथ लेने के कुछ घंटों बाद ही पुराने भ्रष्टाचार के आरोप उभरकर आए। नीतीश ने विपक्षी हमलों से पहले ही उनका इस्तीफा ले लिया।
6. कार्तिक कुमार (2022)
कानून मंत्री पर अपहरण केस में वारंट होने का मामला उठा। विभाग बदलने के बावजूद विवाद थमा नहीं और अंततः उन्हें भी हटना पड़ा।
नीतीश की नीति: समझौता नहीं
नीतीश कुमार की कार्यशैली बार-बार यह साबित करती है कि वे अपनी सरकार में ‘दागदार चेहरों’ को बर्दाश्त नहीं करते। चाहे सहयोगी दल के नेता हों या अपनी पार्टी के मंत्री उन्होंने किसी के साथ ढिलाई नहीं बरती।हालांकि हाल ही में जनसुराज के प्रशांत किशोर ने नीतीश सरकार के तीन मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। इस बार न तो मुख्यमंत्री और न ही सहयोगी दलों ने कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया दी है। यह चुप्पी राजनीतिक हलकों में सवाल खड़े कर रही है।
बिहार चुनाव 2025 से पहले यह चर्चा तेज है कि नीतीश का सख्त रवैया उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी है। उनकी छवि एक ऐसे नेता की बनी है, जो ईमानदारी और सुशासन के लिए अपने राजनीतिक हितों से भी समझौता नहीं करते। यही नीति उन्हें बिहार की राजनीति में अलग खड़ा करती है और उनके चुनावी संदेश को और मजबूत बनाती है।