पटना। पटना हाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें एक पति द्वारा पत्नी को तलाक दिए जाने की स्वीकृति दी गई थी। पति ने आरोप लगाया था कि पत्नी उसके प्रति क्रूर थी। न्यायाधीश पीबी बजनथ्री एवं जितेंद्र कुमार की खंडपीठ ने निशा गुप्ता की याचिका को स्वीकृति देते हुए उक्त आदेश दिया, जिसमें नालंदा जिले में पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित दिनांक 07.10.2017 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
कोर्ट क्यों रद्द किया तलाक?
याचिकाकर्ता के पति उदय चंद गुप्ता ने 1987 में उनसे शादी की थी। उन्हें दो पुत्र हुए। अदालत ने 47 पन्नों के फैसले में टिप्पणी की है कि दोनों पक्षों के वैवाहिक जीवन में सामान्य टूट-फूट हो सकती है, लेकिन निश्चित रूप से पत्नी द्वारा पति के प्रति कोई क्रूरता नहीं की गई है।अदालत ने पाया कि पत्नी अभी भी अपने बच्चों के साथ अपने ससुराल वाले घर में रह रही है और उसके पति ने घर छोड़ दिया है।
अवैध संबंध का विरोध करती थी पत्नी
अदालत ने कहा कि पति के इस आरोप को साबित करने के लिए ‘कोई ठोस सबूत नहीं’ था कि पत्नी उसके खिलाफ झूठे आपराधिक मामले दर्ज करने की धमकी देती थी, लेकिन ‘सबूत के अनुसार’ प्रतिवादी अपनी पत्नी को पीटता था, जब वह उसके अवैध संबंध का विरोध करती थी।
इस मामले बेटे ने भी गवाही दी थी। इसमें बेटे ने पिता द्वारा मां को पीटने और बिजली के झटके देने की पुष्टि की थी। अदालत का कहना था कि ‘पत्नी ने हमेशा कहा है कि वह अपने पति के साथ रहना चाहती है और जब भी वह घर आता है तो उसने हमेशा उसका स्वागत किया है और उसने कभी भी साथ रहने से इनकार नहीं किया है।’
पति ने रुचि लेना बंद किया
पटना हाई कोर्ट ने यह भी पाया कि ‘यह पति ही है जिसने उसमें रुचि लेना बंद कर दिया है, क्योंकि वह उससे अलग रह रहा है।’ अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि पति के अनुसार उनकी शादी के बाद 1999 से ही मुश्किलें आ रही थीं लेकिन तलाक की याचिका 2008 में दायर की गई और यह स्पष्ट नहीं किया गया कि पति ने क्रूरता के आधार पर नौ साल बाद तलाक की याचिका क्यों दायर की।
तलाक की याचिका पर दिए गए फैसले को रद्द करते हुए अदालत ने कहा कि ‘दोनों पक्ष अपनी लागत वहन करेंगे’ और रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि ‘इस फैसले की एक प्रति परिवार न्यायालयों के सभी पीठासीन अधिकारियों के बीच प्रसारित करें और एक प्रति निदेशक को भेजें।’