लोक आस्था के महापर्व छठ का आज शुभ समापन हो रहा है। उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ यह चार दिवसीय पर्व समाप्त होगा। देशभर के घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी है। कुछ स्थानों पर सूर्योदय हो चुका है और व्रती अर्घ्य दे रहे हैं, जबकि कई जगह श्रद्धालु सूर्य की पहली किरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कमर तक पानी में खड़े होकर व्रती सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करेंगे और इसके बाद ठेकुआ प्रसाद से व्रत का समापन करेंगे।
चार दिवसीय यह पर्व 25 अक्टूबर को ‘नहाय-खाय’ की रस्म से शुरू हुआ था और आज 28 अक्टूबर को उषा अर्घ्य के साथ समाप्त हो रहा है। रांची, पटना, गोरखपुर, वाराणसी और दिल्ली समेत कई शहरों में घाटों पर आस्था का सैलाब उमड़ा हुआ है। रात भर मंगल गीतों और भजनों से वातावरण भक्तिमय बना रहा।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को पटना स्थित अपने सरकारी आवास एक अणे मार्ग पर परिवार के साथ डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने मुंगेर के तारापुर स्थित अपने पैतृक आवास पर पूजा-अर्चना कर अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य दिया।
छठ पर्व का पौराणिक और धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने पर माता सीता के साथ सूर्यदेव की पूजा की थी। कहा जाता है कि सूर्यदेव की कृपा से कर्ण का जन्म हुआ था। महाभारत काल में द्रौपदी ने पांडवों के वनवास के दौरान छठ व्रत रखा, जिससे सूर्यदेव ने उन्हें अक्षयपात्र का आशीर्वाद दिया।
मार्कण्डेय पुराण और श्रीमद्भागवत में भी छठ व्रत का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद में सूर्य की पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा की कथा का उल्लेख है। छठ में सूर्यदेव, उनकी पत्नी प्रत्यूषा, ऊषा और बहन देवी षष्ठी की पूजा की जाती है। देवी षष्ठी को संतानों की रक्षा करने वाली माता माना जाता है।
व्रत और परंपराओं की विशेषता
छठ पर्व में डूबते और उगते सूर्य दोनों को अर्घ्य देने की परंपरा है। अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देने से प्रत्यूषा का आशीर्वाद मिलता है, जबकि उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने से ऊषा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास रखती हैं और उषा अर्घ्य के बाद ठेकुआ प्रसाद से व्रत का समापन करती हैं।
प्रकृति और पर्यावरण की पूजा का पर्व
छठ को प्रकृति की आराधना का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। यह पर्व दीपावली के छह दिन बाद कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। श्रद्धालु इस अवसर पर सूर्य भगवान और छठी मैया से परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु का आशीर्वाद मांगते हैं।पहले दिन ‘नहाय-खाय’ के अंतर्गत श्रद्धालु पवित्र नदियों और तालाबों में स्नान करते हैं। दूसरे दिन ‘खरना’ पर निर्जला उपवास की शुरुआत होती है। तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है, जबकि चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर व्रत का समापन किया जाता है।घाटों पर आज श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत संगम दिखाई दे रहा है, जहां आस्था की किरणें उदीयमान सूर्य के साथ पूरे वातावरण को आलोकित कर रही हैं।