नई दिल्ली। धनतेरस का त्योहार हर साल दीपावली से दो दिन पहले मनाया जाता है। इस वर्ष यह शुभ दिन 18 अक्टूबर 2025 (शनिवार) को मनाया जा रहा है। यह दिन न सिर्फ दीपोत्सव की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि धन, स्वास्थ्य और समृद्धि का भी प्रतीक माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसीलिए धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी और कुबेर देव की विशेष पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन की गई पूजा से दीर्घायु, धन और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
धनतेरस पर दीप जलाने की परंपरा
धनतेरस पर लोग पारंपरिक रूप से सोना, चांदी, तांबा और पीतल के बर्तन खरीदते हैं, लेकिन इस दिन की सबसे महत्वपूर्ण परंपरा दीप जलाने की होती है। दीपक को सौभाग्य और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, धनतेरस की शाम को तीन स्थानों पर दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है:
1. दक्षिण दिशा में (यम दीपक)
2. पूजा स्थल पर (लक्ष्मी-कुबेर दीपक)
3. मुख्य द्वार पर (वास्तु दीपक)
दक्षिण दिशा का दीपक — यम दीपक
धनतेरस की शाम को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके सरसों के तेल का एक चौमुख दीपक जलाया जाता है। यह दीपक यमराज को समर्पित होता है। मान्यता है कि इस दीपक को जलाने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है, व्यक्ति को दीर्घायु और सुरक्षा की प्राप्ति होती है।
पूजा स्थल का दीपक — लक्ष्मी-कुबेर दीपक
दूसरा दीपक पूजा स्थल पर देवी लक्ष्मी और कुबेर देव के सामने जलाया जाता है। इसमें घी का दीपक जलाना सबसे शुभ माना गया है।
यह दीपक घर में धन-संपत्ति की वृद्धि और लक्ष्मी-कुबेर की कृपा का प्रतीक है। पूजा के दौरान कुबेर मंत्र का जाप करने से शुभ फल और भी बढ़ जाते हैं।
मुख्य द्वार का दीपक — वास्तु दीपक
तीसरा दीपक घर के मुख्य द्वार पर जलाया जाता है। इसे दरवाजे के दोनों ओर रखने से इसका प्रभाव दोगुना होता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, यह दीपक घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश कराता है और नकारात्मकता को दूर करता है।
धन, स्वास्थ्य और सौभाग्य का संगम
धनतेरस की शाम को जलाए गए ये तीन दीपक जीवन, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माने जाते हैं।
दक्षिण दिशा का दीपक जीवन रक्षा और दीर्घायु देता है,
पूजा स्थल का दीपक लक्ष्मी-कुबेर की कृपा लाता है,
और मुख्य द्वार का दीपक घर में खुशहाली और ऊर्जा का संचार करता है।