उत्तर प्रदेश
अटल जी का जीवन और विचारधारा पूरे देश के लिए प्रेरणा स्रोत है: राजनाथ सिंह
लखनऊ। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित ‘अटल युवा महाकुंभ’ के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अटल जी के अद्वितीय व्यक्तित्व और उनके साथ जुड़ी स्मृतियों को साझा किया। इस अवसर पर उन्होंने अटल जी की महानता का स्मरण करते हुए प्रदेश के विकास में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि अटल जी का जीवन और विचारधारा आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं।
रक्षा मंत्री ने अपने संबोधन में कहा, “श्रध्येय अटल जी का व्यक्तित्व इतना विराट था कि उनकी कार्यशैली और निर्णयों की पूरी दुनिया कायल थी। लखनऊ अटल जी के दिल में बसता था और यहां के लोग उन्हें उतनी ही गहराई से जानते और समझते थे।” उन्होंने अटल जी के जीवन के अनेक प्रसंगों को याद करते हुए उनकी हाजिरजवाबी और सहजता का जिक्र किया। उन्होंने पाकिस्तान दौरे के दौरान अटल जी के चर्चित जवाब को याद करते हुए कहा, “एक महिला पत्रकार ने जब उनसे कहा कि मैं आपसे शादी करना चाहती हूं, बशर्ते आप मुझे मुंह दिखाई में कश्मीर दें, तो अटल जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘मैं तैयार हूं, अगर आप दहेज में पूरा पाकिस्तान दें।’ इस जवाब ने उनकी चतुराई और सहजता को पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत किया।”
रक्षा मंत्री ने अटल जी के साथ अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए कहा, “मुझे उनके साथ एक अभिभावक का स्नेह और मंत्रिमंडल में सहकर्मी के रूप में काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनकी सरकार जब एक वोट से गिरी, तब उनके ऐतिहासिक भाषण ने लोकतंत्र और देशप्रेम की नई परिभाषा गढ़ी। उन्होंने कहा था, ‘सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी, लेकिन यह देश और इसका लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।’ यह उनकी दूरदर्शिता और सिद्धांतवाद का प्रमाण था।”
कार्यक्रम में बच्चों द्वारा अटल जी के जीवन पर प्रस्तुत की गई झांकियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रक्षा मंत्री ने भरपूर सराहना की। उन्होंने इसे नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक बताते हुए कहा, “अटल जी के विचार और योगदान आज भी युवाओं के लिए पथ प्रदर्शक हैं।” मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा, “आज उत्तर प्रदेश विकास के हर पैमाने पर देश के अन्य राज्यों से आगे खड़ा है। सीएम योगी के कुशल नेतृत्व और अथक प्रयासों ने यूपी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। यह प्रदेश अटल जी के सपनों का साकार रूप बनता जा रहा है।”
उत्तर प्रदेश
प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।
महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।
महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।
प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।
महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।
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