राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 100 वर्ष पूरे होने पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई मुद्दों पर अपनी राय रखी। इस दौरान उनसे 75 साल की उम्र में रिटायरमेंट को लेकर सवाल किया गया।
भागवत ने साफ किया कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि 75 साल पूरे होने पर किसी को पद छोड़ देना चाहिए। उन्होंने बताया कि एक बार संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक मोरोपंत जी ने मजाक में कहा था कि जब किसी को शॉल ओढ़ाया जाता है तो इसका मतलब है कि अब उम्र हो गई है और शांति से बैठकर देखना चाहिए। लेकिन यह केवल मजाक था, इसे गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि संघ में जिम्मेदारियां उम्र देखकर नहीं, बल्कि आवश्यकता और संगठन के निर्देश के अनुसार दी जाती हैं। “अगर मेरी उम्र 80 साल हो जाएगी और संघ कहे कि शाखा चलानी है, तो मुझे जाना होगा। मैं यह नहीं कह सकता कि अब रिटायरमेंट का आनंद लूंगा,” भागवत ने कहा।
संघ प्रमुख ने यह भी स्पष्ट किया कि संगठन में कोई भी कार्य स्वेच्छा से नहीं चुना जाता, बल्कि जो जिम्मेदारी मिलती है, उसे निभाना होता है। उन्होंने कहा, “संघ में 35 साल के व्यक्ति को भी कार्यालय का काम सौंपा जा सकता है और 80 साल के स्वयंसेवक को भी शाखा की जिम्मेदारी दी जा सकती है। यहां ‘मैं यह करूंगा या नहीं करूंगा’ जैसी स्वतंत्रता नहीं है।”
भागवत ने कहा कि संगठन में कई लोग ऐसे हैं जो सरसंघचालक बनने की क्षमता रखते हैं, लेकिन वे अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में व्यस्त हैं। फिलहाल, वह उपलब्ध हैं इसलिए जिम्मेदारी उन पर है। उन्होंने दोहराया कि यह किसी की व्यक्तिगत इच्छा या रिटायरमेंट का सवाल नहीं है। “हम जीवनभर कभी भी रिटायर होने के लिए तैयार हैं, और जब तक संघ चाहेगा, काम करते रहेंगे।