बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे और अंतिम चरण के लिए मंगलवार को मतदान हो रहा है। इस दौर में 20 जिलों की 122 सीटों पर 1302 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर है। इस फेज में नीतीश सरकार के 12 मंत्रियों की साख भी परीक्षा में है, जबकि कई ऐसे बड़े चेहरे हैं जो खुद मैदान में नहीं हैं, लेकिन असली इम्तिहान उन्हीं का है।
दूसरे चरण की 122 सीटों में 101 सामान्य, 19 अनुसूचित जाति और 2 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। मिथिलांचल, सीमांचल, चंपारण और शाहाबाद- मगध क्षेत्र की सीटों पर हो रहे इस मतदान से ही बिहार की सत्ता का फैसला तय होगा।
ओवैसी की बड़ी परीक्षा
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के लिए यह चरण बेहद अहम है। 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने सीमांचल की पांच सीटें जीतकर सियासी हलचल मचा दी थी। अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट और कोचाधामन में जीत हासिल कर AIMIM ने महागठबंधन को बड़ा झटका दिया था। हालांकि, बाद में इन पांच में से चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए।
इस बार ओवैसी ने बिहार की 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें से 8 पर पहले चरण में और 17 पर दूसरे चरण में मतदान हो रहा है। इनमें से 15 सीटें सीमांचल की हैं और 2 चंपारण की। सीमांचल में मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में हैं, इसलिए AIMIM का प्रदर्शन यहां निर्णायक रहेगा।
कांग्रेस ने ओवैसी के प्रभाव को चुनौती देने के लिए इमरान प्रतापगढ़ी को प्रचार में उतारा है, वहीं समाजवादी पार्टी ने इकरा हसन को मैदान में लाया है। अगर ओवैसी इस बार सीमांचल में अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने में नाकाम रहते हैं, तो उनकी मुस्लिम राजनीति पर सवाल उठ सकते हैं।
पप्पू यादव की अग्निपरीक्षा
पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव भले ही खुद विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी सियासी साख दांव पर है। सीमांचल क्षेत्र में कांग्रेस का चेहरा बने पप्पू यादव के लिए पूर्णिया, सुपौल और अररिया जिलों की सीटों का प्रदर्शन निर्णायक रहेगा।
उन्होंने अपने करीबी नेताओं को मैदान में उतारा है। कांग्रेस के 37 उम्मीदवार दूसरे चरण में किस्मत आजमा रहे हैं। 2020 में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन ने महागठबंधन की सरकार बनने से रोक दिया था। इस बार पप्पू यादव पर उम्मीदें टिकी हैं कि वे सीमांचल में कांग्रेस को बेहतर प्रदर्शन दिला सकें। पप्पू यादव पार्टी नेतृत्व के करीबी माने जाते हैं और प्रियंका गांधी तथा राहुल गांधी के साथ उनके अच्छे संबंध हैं। ऐसे में कांग्रेस में अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत बनाए रखने के लिए उन्हें इस चरण में बेहतर प्रदर्शन दिखाना होगा।
कुशवाहा की सियासी कसौटी
राष्ट्रीय लोक जनतांत्रिक मंच (आरएलएम) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा भी इस चुनावी दौर में बड़ी परीक्षा से गुजर रहे हैं। एनडीए के सहयोगी के रूप में उन्हें छह सीटें मिली हैं, जिनमें से चार सासाराम, दिनारा, मधुबनी और बाजपट्टी दूसरे चरण में हैं। इन चारों सीटों पर आरजेडी से सीधी टक्कर है।
सासाराम से उनकी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा मैदान में हैं। कुशवाहा 2024 का लोकसभा चुनाव हार चुके हैं, इसलिए इस बार अपनी पत्नी और पार्टी के उम्मीदवारों को जीत दिलाना उनके राजनीतिक भविष्य के लिए अहम है। अगर आरएलएम अपने कोटे की सीटें नहीं बचा पाती, तो कुशवाहा के कद पर असर पड़ सकता है।
मांझी के लिए पारिवारिक चुनौती
एनडीए के सहयोगी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) प्रमुख जीतनराम मांझी के लिए यह चरण पारिवारिक चुनौती से भरा है। उनकी पार्टी के सभी छह उम्मीदवार इसी चरण में मैदान में हैं। इमामगंज, सिकंदरा, बाराचट्टी और टिकारी सीटें पहले से HAM के कब्जे में हैं। इन चारों सीटों पर राजद से सीधी टक्कर है, जबकि कुटुंबा में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और अतरी में आरजेडी प्रत्याशी से मुकाबला है।
इमामगंज से मांझी की बहू दीपा मांझी और बाराचट्टी से उनकी समधन ज्योति देवी चुनाव लड़ रही हैं। ऐसे में मांझी के लिए यह सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि पारिवारिक परीक्षा भी है। अगर वे अपनी पारिवारिक और पार्टी उम्मीदवारों को नहीं जिता पाते, तो एनडीए में उनकी स्थिति कमजोर हो सकती है। बिहार चुनाव के दूसरे चरण में मतदान केवल उम्मीदवारों की नहीं, बल्कि राज्य के चार बड़े नेताओं ओवैसी, पप्पू यादव, कुशवाहा और मांझीकी सियासी साख की परीक्षा है। इन 122 सीटों के नतीजे ही तय करेंगे कि पटना की गद्दी पर कौन बैठेगा और कौन बनेगा बिहार की नई राजनीति का चेहरा।