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वैदिक काल का सिद्ध पीठ : मां कालकाजी देती हैं भक्तों को मनोवांछित फल

राजेंद्र बहादुर सिंह

देश की राजधानी दिल्ली में प्रसिद्ध कालकाजी मंदिर अरावली पर्वत श्रृंखला की सूर्यकूट नामक एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। माता काली की यह अति पवित्र प्राचीन चमत्कारी पीठ वैदिक काल की बताई जाती है। माता काली को समर्पित “कालकाजी मंदिर” का पौराणिक महत्व सनातन धर्म के साथ शक्ति उपासना और परंपरा में गहराई से जुड़ा है। प्राचीन काल से लेकर 18वीं शताब्दी तक यह मंदिर घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ था, और यह भी माना जाता है कि उस दौरान कई सिद्ध साधु-संत और तांत्रिक यहां दूर-दूर से माता की साधना के लिए आते थे। भारत के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में रहती है प्रतिवर्ष यहां विदेशी पर्यटक भी मां के दर्शन के लिए आते हैं। मान्यता है कि मां इतनी दयालु हैं कि हर किसी की झोली यहां हाजिरी लगाने से भर जाती है।

दिल्ली में स्थित इस “कालकाजी मंदिर” का सम्बन्ध महाभारत काल से यानी द्वापर युग से जुड़ा हुआ है, इसलिए कुछ विद्वानों का मानना है कि पांडवों ने इंद्र प्रस्थ की स्थापना के समय माँ कालका की उपासना की थी। इस मंदिर को प्राचीन ग्रंथों में “जयंती काली या “कालिका सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है। “देवी भागवत पुराण” और “मार्कंडेय पुराण” में इस कालकाजी मंदिर का उल्लेख अखण्ड भारत के एक पवित्र और प्राचीन तीर्थस्थल के रूप में मिलता है। यह मंदिर मनोकामना सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है। महाभारत काल में भगवान कृष्ण ने पांडवों सहित यहां आकर भगवती की आराधना की। १५ वीं और १६ वीं शताब्दी के मध्य नाथ संप्रदाय के बाबा बालकनाथ ने इस स्थान को अपनी तपोस्थली के रूप में चुना। उन्हें भगवती का साक्षात्कार हुआ। मां ने बाबा को मन्दिर का जीर्णाेधार करने का आदेश दिया। बाबा बालकनाथ के कहने पर अकबर बादशाह द्वितीय के पेशकार राजा मिर्जा केदार ने इस स्थान का जीर्णाेद्धार करवाया। वहीं, 1667 में औरंगजेब ने मंदिर ध्वस्त करने का फरमान जारी कर दिया था। लेकिन शक्तिस्वरुपा मां की महिमा से मंदिर का अधिक नुकसान नहीं हुआ और पुनर्निर्माण के बाद से यह मंदिर आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है। इब्नेबुतुता नाम के विदेशी यात्री ने इस भव्य मन्दिर का ब्यौरा अपने यात्रा वृतांत्तों में दिया है। हजरत मुख्या निजामुद्दीन औलिया कालिका मन्दिर की ओर जाती भक्त मंडलियों को देखकर खुशी से कहते हैं “देखों कितनी दूर-दूर से मातृ भक्त अपनी मन्नतें लिए हुए गाते बजाते हुए भाव विभोर होकर अपनी रंग बिरंगी वेषभूषाओं में मां का यशोगान करते हुए जा रहे हैं।” संस्कृत साहित्य के प्रख्यात ग्रंथकार अरूण देव बर्मन ने अपनी सूर्यशतक नामक कृक्ति में कालिका मां की वंदना की है।

मत्स्य पुराण में गौरी नामावली में हस्तिनापुर में जयंती काली का स्थान है ऐसा वर्णन मिलता है। तंत्र साधना की दृष्टि से यह पीठ अनाहतचक्र पर स्थापित है। अनाहत चक्र में बारह दल का कमल है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी संपूर्ण ब्रह्माण्ड को बारह भागों में बांटा गया है। प्रत्येक 30 अंश के भाग को उसके आकार और गुणों के अनुरूप एक राशि का नाम दिया गया है। सूर्य एक मास में एक राशि को पार करता है। इस प्रकार एक वर्ष में पूरे ‘भ’ चक्र अर्थात संपूर्ण ब्रह्माण्ड का परिभ्रमण करता है। मन्दिर के बारह द्वार द्वादश आदित्यों और बारह महीनों का भी संकेत देते हैं। इस मन्दिर के बारह द्वार इसी आधार पर बने हैं। बाहर परिक्रमा में छत्तीस द्वार हैं जो मातृकाओं के द्योतक है। हर द्वार के सम्मुख तीन द्वार मां भगवती के त्रिगुणात्मक स्वरूप का भी परिचय देते हैं।

मन्दिर की परिक्रमा के साथ ही उत्तर दिशा में गणेश की प्रतिमा है। पीछे कुछ दूरी पर हनुमान जी व भैरव का स्थान है। मन्दिर के द्वार के सम्मुख दो सिंह प्रतिमाएं स्थापित है। आगे यज्ञशाला बनी है जहां समय-समय पर शक्ति साधक यज्ञ करते हैं। संवत 1779 विक्रमी में राजा राम वर्मा ने यहां ललिताम्बा यज्ञ किया था। यज्ञ संपूर्ण होने पर उन्होंने मां भगवती को चौरासी घंटे भेंट किए थे। आज भी मन्दिर के चारों ओर कई सुंदर सरोवरों, बावलियों, चबूतरों और इमारतों के अवशेष दिखाए देते हैं। भवन के भीतर बने भित्ति चित्रों को देखकर मन्दिर की भव्यता का अनुमान सहज ही होता है। मन्दिर में अखंड ज्योति प्रज्जवलित है। रात्रि के समय मां कालिका के लिए भक्त सुंदर शैय्या को सजाकर मन्दिर में रखते हैं। भक्तों की मान्यता है कि मां भगवती नित्यप्रति छोटी बालिका के रूप में आकर विश्राम करती है। इसलिए रात्रि काल में मन्दिर के सभी द्वार बंद रखे जाते हैं।

प्रातःकाल पुजारी घंटानाद करके मन्दिर में प्रवेश करता है। बाद में मन्दिर के पट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं। मन्दिर प्रातः काल 4 बजे खुल जाता है और रात्रि को 11. 30 बजे बंद होता है। दोपहर में लगभग 11 बजे मां के भोग के लिए तथा 3 बजे से 4 बजे तक सफाई के लिए बंद रहता है। इस पीठ में वेदोक्त, पुराणोक्त और तंत्रोक्त तीनों ही विधाओं से पूजा अर्चना की जाती है और साधक अभिष्ट फल प्राप्त करते हैं।
पूर्व काल में यहां भी पशु बलि प्रदान की जाती थी जो बाद में बंद कर दी गई। अब केवल पशु को तिलक करके छोड़ दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि वह पशु कुछ दिनों बाद अपने आप मर जाता है।

श्री सिद्ध कालिका पीठ में अष्टमी, चतुर्दशी एवं सप्ताह में मंगलवार, शनिवार को विशेष भीड़ रहती है। नवरात्र में यहां विशाल मेला लगता है। लाखों मातृ भक्त मां के दर्शन के लिए लिए यहां आते हैं और दर्शन कर मां को फल फूल नारियल आदि की भेंट चढ़ाते हैं। भगवती यहां प्रत्यक्ष है। वह अपने भक्तों के रोग, शोक, दुख, संताप एवं शत्रुओं के नाश करके अपने भक्तों को अभीष्ट भूखों को अन्न जल व निर्धनों वर देकर मनोरथ पूर्ण करती है। को अपार धन प्रदान करती है। ज्ञान योगियों को ज्ञान व सिद्धि चाहने वाले को सिद्धियां प्रदान करतीं हैं। यहां पूरे वर्ष भर भजन, कीर्तन, जागरण, यज्ञ आदि संपन्न होते रहते हैं। मां काली ही दस महा विद्या के रूप में प्रकट हुई। यहां पूजा अर्चना करने पर समस्त चराचर जगत को माता काली साधक के अधीन कर देती हैं। वहीं आद्यशक्ति चराचर विश्व में नानारूपों में विद्यमान है।

महंत अवधूत जी के नेतृत्व में कार्य कर रही है पीठ

परम पूज्य गुरुदेव महंत श्री रामनाथ जी महाराज के 6 अप्रैल 1992 को ब्रह्मलीन होने के बाद गद्दी संभालने वाले कालिका पीठाधीश्वर महंत श्री सुरेंद्रनाथ अवधूत को इसी दिन यह दायित्व सौंपा गया । आध्यात्मिक परंपरा के अनुसार पीठ के महंत के ब्रह्मलीन होने के ही दिन नए उत्तराधिकारी की घोषणा आवश्यक होती है, महंत अवधूत जी के नेतृत्व में कार्य कर रही है पीठ आज देश और विदेश के करोड़ों करोड़ लोगों की आस्था का प्रतीक बन चुकी है मान्यता है की मां के दरबार में आने वाले हर वक्त की मनोकामना यहां पूर्ण होती है । लोग अपनी मान्यताओं को पूरी होने के लिए मां के दरबार में अर्जी लगाते हैं और मान्यता पूरी होने पर मां का दर्शन पूजन हवन संकीर्तन आदि यथाशक्ति भक्त लोग करते हैं । कहा जाता है कि यदि प्रशासनिक खामियां और न्यायालय में मुकदमे के माध्यम से अवरोध उत्पन्न न किया गया होता तो आज यह पीठ देश की अत्यंत धनवान पीठों में से एक होती क्योंकि प्रतिदिन यहां हजारों की भीड़ मां के दर्शन के लिए उमड़ती है नवरात्र सहित अन्य प्रमुख हिंदू त्योहारो पर देश की राजधानी दिल्ली में स्थित मां कालिका पीठ में लाखों की भीड़ प्रतिदिन दर्शन के लिए आती है कभी-कभी मंदिर प्रशासन को भी इस भीड़ को नियंत्रित करने में पसीने आ जाते हैं लेकिन महंत सुरेंद्रनाथ अवधूत के सरल स्वभाव कुशल प्रबंधन और आध्यात्मिक दक्षता के चलते सभी को दर्शन सुलभ हो जाते हैं । महंत सुरेंद्रनाथ जी पिछले करीब तीन दशक से अधिक समय से इस बीच के निर्विवाद और लोकप्रिय पीठाधीश्वर है। जिनके नेतृत्व में पीठ के बहुत सारे विकास कार्य हुए हैं और बहुत सारे कार्य अभी प्रस्तावित भी हैं जो भविष्य में किए जाने हैं।

गोरखपुर की गोरख पीठ से है गहरा नाता

नाथ संप्रदाय की इस पीठ का गोरखपुर स्थित गोरख पीठ से गहरा संबंध है पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन हो जाने के बाद नाथ संप्रदाय के अध्यक्ष उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री एवम गोरखधाम पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ जी हैं और कालिका पीठ भी नाथ संप्रदाय की है इसलिए गोरखपुर पीठ का दिल्ली की इस पीठ से दशकों पुराना गहरा आत्मीय रिश्ता है।

 

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