प्रादेशिक
हरियाणा के नूंह में दर्दनाक सड़क हादसा, टूरिस्ट बस में आग से आठ जिंदा जले, 24 घायल
नूंह। हरियाणा के नूंह में शुक्रवार को एक टूरिस्ट बस में आग लगने से आठ लोगों की मौत हो गई जबकि 24 घायल हो गए। घायलों को स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया है। घटना की सूचना मिलते ही पुलिस की टीम मौके पर पहुंची। साथ ही फायर ब्रिगेड की टीम भी पहुंची। काफी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया। बस की खिड़कियां तोड़कर घायलों को निकाला गया.
हादसा हरियाणा के नूंह में कुंडली मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे पर हुआ। जीवित बचे लोगों ने कहा कि उन्होंने शनिवार देर रात करीब 1.30 बजे बस के पिछले हिस्से में आग की लपटें देखीं और ड्राइवर को सचेत करने की कोशिश की। आग बढ़ती देख एक मोटरसाइकिल सवार ने बस का पीछा किया और ड्राइवर को चेतावनी दी, जिसने बस रोक दी। स्थानीय लोगों ने आग बुझाने की कोशिश की और आगे की सीटों पर बैठे लोगों को बचाया।
एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि आग लगने के बारे में जानने के बाद वह वाहन से बाहर कूद गई और खुद को बचाया। उन्होंने आगे कहा कि एक बाइक सवार व्यक्ति ने बस में आग लगी देखी और ड्राइवर को सचेत करने के लिए वाहन को ओवरटेक किया। उसने कहा, “मैंने बस के नीचे से एक आवाज़ सुनी। मुझे लगा कि वाहन सड़क पर किसी ऊंचे ढांचे पर चल रहा था, इसलिए मैंने आवाज़ की। हालांकि, बाद में गंध भी आई। एक बाइक सवार जो कई किलोमीटर तक बस के पीछे था, आगे निकल गया और सामने आकरर ड्राइवर को बताया कि बस में आग लग गई है, मैं आगे की एक सीट पर बैठी थी, इसलिए मैं कूद गई।
महिला ने कहा कि कई यात्री उसके रिश्तेदार थे और वे पंजाब के होशियारपुर के रहने वाले थे। वह भी पंजाब के लुधियाना से हैं। उन्होंने बताया कि वे 7-8 दिन की तीर्थयात्रा पर गए थे और घर लौट रहे थे। पुलिस के मुताबिक, बस में सवार सभी लोग पंजाब और चंडीगढ़ के रहने वाले हैं. ये लोग बस से मथुरा और वृंदावन दर्शन करने के लिए आए थे. वापस घर लौट रहे थे, तभी एक्सप्रेसवे पर हादसा हुआ। पुलिस के एक अधिकारी के मुताबिक, हादसे की जांच की जाएगी. पहली नजर में शॉर्ट सर्किट से आग लगने की बात सामने आ रही है।
उत्तर प्रदेश
प्रयागराज में स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम, जिनके श्राप के कारण हुआ था समुद्र मंथन
महाकुम्भ। सनातन संस्कृति में तीर्थराज, प्रयागराज को यज्ञ और तप की भूमि के रूप में जाना जाता है। वैदिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रयागराज में अनेक देवी, देवताओं और ऋषि-मुनियों ने यज्ञ और तप किये हैं। उनमें से ही एक है ऋषि अत्रि और माता अनसूईया के पुत्र महर्षि दुर्वासा। महर्षि दुर्वासा को पौरिणक कथाओं में उनके क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवता शक्तिहीन हो गये थे। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है। मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी।
महर्षि दुर्वासा के श्रापवश देवताओं को करना पड़ा था समुद्र मंथन
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में निकली अमृत की बूंद गिरने के कारण ही प्रयागराज में महाकुम्भ का पर्व मनाया जाता है। पुराणों में समुद्र मंथन की कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण ही देवताओं को असुरों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करना पड़ा था। कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र, हाथी पर बैठ कर भ्रमण कर रहे थे, महर्षि दुर्वासा ने उनको आशीर्वाद स्वरूप फूलों की माला पहनने को दी। देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति के मद में महर्षि दुर्वासा की ओर ध्यान नहीं दिया और उनकी दी हुई माला को अपने हाथी को पहना दिया। हाथी ने फूलों की महक से परेशान होकर माला को गले से उतार कर पैरों से कुचल दिया। यह सब देखकर महर्षि दुर्वासा ने क्रोधवश देवराज इंद्र सहित सभी देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। तब देवता निराश हो कर विष्णु जी के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को पुनः शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को कहा। अंततः महर्षि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति और अमरत्व प्राप्त करने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन किया था।
महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से मिलता है अभयदान
महर्षि दुर्वासा आश्रम उत्थान ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष शरत चंद्र मिश्र जी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार परम विष्णु भक्त इक्षवाकुवंशीय राजा अंबरीष को क्रोधवश गलत श्राप देने के कारण सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा को मारने के लिए पीछा करने लगे। महर्षि को भगवान विष्णु ने अभयदान के लिए प्रयागराज में संगम तट से एक योजन की दूरी पर भगवान शिव की तपस्य़ा करने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने गंगा तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का तप और पूजन किया, जिससे उन्हें अभयदान मिला। पौराणिक मान्यता है कि महर्षि द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन से अभयदान मिलता है।
प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है महर्षि दुर्वासा का आश्रम
दूर्वा अर्थात दूब घास को ही अपना आहार बनाने वाले महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज में झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां महर्षि दुर्वासा के आश्रम में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में शिव लिंग की स्थापना स्वयं दुर्वासा ऋषि ने ही की थी। मंदिर के गर्भगृह में साधना अवस्था में महर्षि दुर्वासा की प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही मंदिर के प्रांगण में अत्रि ऋषि, माता अनसुइया, दत्तात्रेय भगवान, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी है। महर्षि दुर्वासा को वैदिक ऋषि अत्रि और सती अनसुइया का पुत्र और भगवान शिव का अंश माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय और चंद्रमा उनके भाई हैं। सावन मास में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है तथा मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी के दिन दुर्वासा जंयति मनाई जाती है।
महाकुम्भ में पर्यटन विभाग ने करवाया है दुर्वासा आश्रम और शिव मंदिर का जीर्णोद्धार
महाकुम्भ 2025 के दिव्य, भव्य आयोजन में सीएम योगी के निर्देश के अनुरूप प्रयागराज के मंदिर और घाटों का जीर्णोद्धार हो रहा है। इसी क्रम में पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा आश्रम का भी जीर्णोद्धार कराया है। मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैण्ड स्टोन के तीन विशाल द्वार का निर्माण हुआ है। मंदिर की पेंटिग और लाईटिंग का कार्य भी करवाया जा रहा है। महाकुम्भ में संगम स्नान करने वाले श्रद्धालु अभयदान पाने के लिए महर्षि दुर्वासा आश्रम और शिवलिंग का पूजन करने जरूर आते हैं।
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