अहमदाबाद/नई दिल्ली। बिलकिस बानो मामले में दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका में सभी दोषियों की सजा पर फिर से विचार करने की गुहार लगाई गई है। एडवोकेट अपर्णा भट्ट ने आज सुबह भारत के चीफ जस्टिस के समक्ष मामले का उल्लेख किया और तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की। सीजेआई एनवी रमना मामले को देखने के लिए सहमत हुए।
सभी दोषियों को मिली थी उम्रकैद लेकिन अब रिहा
मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को हत्या और सामूहिक दुष्कर्म के मामले में सभी 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा। इन दोषियों ने 15 साल से अधिक समय तक जेल में सेवा की, जिसके बाद उनमें से एक ने अपनी समयपूर्व रिहाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार को उसकी सजा की छूट के मुद्दे को 1992 की नीति के अनुसार उसकी दोषसिद्धि की तारीख के आधार पर देखने का निर्देश दिया था। इसके बाद, सरकार ने एक समिति का गठन किया और सभी दोषियों को जेल से समय से पहले रिहा करने का आदेश जारी किया।
क्या है पूरा मामला
2002 के गोधरा कांड के बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे और इसी दंगे के दौरान 3 मार्च 2002 को दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव में भीड़ ने बिलकिस बानो के परिवार पर हमला किया था। पाँच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया और उसके परिवार के सात सदस्यों की दंगाइयों ने निर्मम हत्या कर दी।