आध्यात्म
क्यों बनता है गोवर्धन पूजा में अन्नकूट, जानें इसका महत्व
गोवर्धन पूजा का त्योहार दिवाली के अगले दिन यानी कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहा जाता है। इस दिन का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। गोवर्धन का त्योहार श्री कृष्ण की लीला को दर्शाता है।
स दिन मंदिरों में अन्नकूट किया जाता है। अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का आयोजन है, जिसमें पूरा परिवार एक जगह बनाई गई रसोई से भोजन करता है। इस दिन चावल, बाजरा, कढ़ी, साबुत मूंग सभी सब्जियां एक जगह मिलाकर बनाई जाती हैं। मंदिरों में भी अन्नकूट बनाकर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। शाम में गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में हल जोतकर अनाज उगाता है। इस तरह गौ संपूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है।
गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की। वेदों में इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि आदि देवताओं की पूजा का विधान है। इसी दिन बलि पूजा, गोवर्धन पूजा होती हैं। इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर, फूल माला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है।
यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई। उस समय लोग इंद्र भगवान की पूजा करते थे व छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर तरह-तरह के पकवान व मिठाइयों का भोग लगाया जाता था।
महाराष्ट्र में यह दिन बलि प्रतिपदा या बलि पड़वा के रूप में मनाया जाता है। वामन जो कि भगवान विष्णु के एक अवतार है, उनकी राजा बलि पर विजय और बाद में बलि को पाताल लोक भेजने के कारण इस दिन उनका पुण्यस्मरण किया जाता है।
माना जाता है कि भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण असुर राजा बलि इस दिन पातल लोक से पृथ्वी लोक आते हैं। अधिकतर गोवर्धन पूजा का दिन गुजराती नववर्ष के दिन के साथ मिल जाता है जो कि कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा उत्सव गुजराती नववर्ष के दिन के एक दिन पहले मनाया जा सकता है और यह प्रतिपदा तिथि के प्रारंभ होने के समय पर निर्भर करता है।
इस दिन प्रात: गाय के गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में गोवर्धन बनाया जाता है। अनेक स्थानों पर इसके मनुष्याकार बनाकर पुष्पों, लताओं आदि से सजाया जाता है। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांट देते हैं। शाम को गोवर्धन की पूजा की जाती है।
पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया जाता है। पूजा के बाद गोवर्धनजी की जय बोलते हुए उनकी सात परिक्रमाएं लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य जौ लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।
अन्नकूट में चंद्र-दर्शन अशुभ माना जाता है। यदि प्रतिपदा में द्वितीया हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन संध्या के समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है। गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और इस दिन उनकी पूजा अपने घर में करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की वृद्धि होती है।
इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो पूर्णत: बंद रहते ही हैं, घर पर कुटीर उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों का दोपहर के समय पूजन किया जाता है।
गोवर्धन पूजा के संबंध में एक लोकगाथा प्रचलित है कि देवराज इंद्र को अभिमान हो गया था। इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची। एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा से प्रश्न किया कि आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं।
कृष्ण की बातें सुनकर यशोदा मैया बोली, “हम देवराज इंद्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं।”
मैया के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण बोले “मैया, हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं?”
यशोदा ने कहा कि वह वर्षा करते हैं, जिससे अन्न की पैदावार होती है। उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण बोले, “हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इंद्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं, अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।”
श्रीकृष्ण की माया से सभी ने इंद्र के बदले गोवर्धन पर्वत की पूजा की। देवराज इंद्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछड़े समेत शरण लेने के लिए बुलाया।
इंद्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गई। इंद्र का मान-मर्दन करने के लिए श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इंद्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे, तब उन्हें अहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतांत्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इंद्र से कहा, “आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं।”
ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इंद्र अत्यंत लज्जित हुए और श्रीकृष्ण से कहा, “प्रभु मैं आपको पहचान न सका, इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें।” इसके बाद देवराज ने श्रीकृष्ण की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।”
सातवें दिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा, अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा। इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।
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आध्यात्म
मौनी अमावस्या स्नान के पहले नव्य प्रकाश व्यवस्था से जगमग हुई कुम्भ नगरी प्रयागराज
महाकुम्भ नगर। त्रिवेणी के तट पर आस्था का जन समागम है। महाकुम्भ के इस आयोजन को दिव्य ,भव्य और नव्य स्वरूप देने के लिए इससे जुड़े शहर के उन मार्गों और चौराहों को भी आकर्षक स्वरूप दिया गया है जहां से होकर पर्यटक और श्रद्धालु महा कुम्भ पहुंच रहे हैं। इसी क्रम में अब सड़क किनारे के वृक्षों को रोशनी के माध्यम से नया स्वरूप दिया गया है।
मौनी से पहले शहर की प्रकाश व्यवस्था को दिया गया नया लुक
प्रयागराज महा कुम्भ आ रहे आगंतुकों के स्वागत के लिए की कुम्भ नगरी की सड़कों को सजाया गया, शहर के चौराहे सुसज्जित किए गए और बारी है सड़क के दोनों तरह मौजूद हरे भरे वृक्षों को नया लुक देने की । नगर निगम प्रयागराज ने इस संकल्प को धरती पर उतारा है। नगर निगम के मुख्य अभियंता ( विद्युत ) संजय कटियार बताते हैं कि शहर में सड़क किनारे लगे वृक्षों का नया लुक देने के यूपी में पहली बार नियॉन और थीमेटिक लाइट के संयोजित वाली प्रकाश व्यवस्था लागू की गई है। इस नई व्यवस्था में शहर के महत्वपूर्ण मार्गों के 260 वृक्षों के तनों, शाखाओं और पत्तियों में अलग अलग थीम की रोशनी लगाई गई है। इनमें नियॉन और स्पाइरल लाइट्स को इस तरह संयोजित किया गया है जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कैसे रात के अंधेरे में पूरा वृक्ष आलोकित हो गया है। शहर से गुजरकर महा कुम्भ जाने वक्ष पर्यटक और श्रद्धालु इस भव्य प्रकाश व्यवस्था का अवलोकन कर सकेंगे।
शहर के 8 पार्कों में भी लगाए म्यूरल्स
सड़कों और चौराहों के अलावा शहर के अंदर के छोटे बड़े पार्कों में भी पहली बार उन्हें सजाने के लिए नए ढंग से संवारा गया है। नगर निगम के चीफ इंजीनियर ( विद्युत) संजय कटियार का कहना है कि शहर के चयनित आठ पार्कों में पहली बार कांच और रोशनी के संयोजन से म्यूरल्स बनाए गए हैं जो वहां से गुजरने वालों का ध्यान खींच रहे हैं। 12 तरह के म्यूरल्स इन पार्कों में लगाए गए हैं जो बच्चों के लिए खास तौर पर आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं। इसके पूर्व शहर शहर की 23 प्रमुख सड़कों , आरओबी , और फ्लाईओवर्स पर स्ट्रीट लाइट और पोल पर अलग-अलग थीम पर आधारित रंग-बिरंगे डिजाइन वाले मोटिव्स लगाए गए थे ।
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