सातारा के प्रवीण जाधव की रुचि एथलेटिक्स में थी, लेकिन शारीरिक कमजोरी के चलते कोच ने उन्हें दूसरा गेम अपनाने की सलाह दी। इसके बाद प्रवीण ने तीरंदाजी पर अपनाध्यान केंद्रित किया और वे जी तोड़ मेहनत करने लगे। साथ ही उनकी आर्थिक स्थिती भी बचपन में खराब रही। उनके पास बचपन में दो ही रास्ते थे, या तो अपने पिता के साथ दिहाड़ी मजदूरी करते या बेहतर जिंदगी के लिए ट्रैक पर सरपट दौड़ते। लेकिन उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ओलंपिक में तीरंदाजी जैसे खेल में वह भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।
सातारा के सराडे गांव के इस लड़के का सफर संघर्षों से भरा रहा है। वह अपने पिता के साथ मजदूरी पर जाने भी लगे थे लेकिन फिर खेलों ने जाधव परिवार की जिंदगी बदल दी। परिवार चलाने के लिए उनके पिता ने कहा कि स्कूल छोड़कर उन्हें मजदूरी करनी होगी। उस समय वह सातवीं कक्षा में थे।
ओलंपिक में तीरंदाजी जैसे खेल में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले जाधव ने कहा, ‘हमारी हालत बहुत खराब थी। मेरा परिवार पहले ही कह चुका था कि सातवीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ना होगा ताकि पिता के साथ मजदूरी कर सकूं।’ आठ घंटे की कड़ी मेहनत के बाद उनके पिता रमेश को बमुश्किल 200 रुपये की दिहाड़ी मिलती थी। कई बार वह खेतों में खाद डालने के काम में पिता की मदद भी करते थे।
कोच ने बदली प्रवीण की जिंदगी
एक दिन जाधव के स्कूल के खेल प्रशिक्षक विकास भुजबल ने उनमें प्रतिभा देखी और एथलेटिक्स में भाग लेने को कहा। जाधव ने कहा ,‘विकास सर ने मुझे दौड़ना शुरू करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इससे जीवन बदलेगा और दिहाड़ी मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी। मैंने 400 से 800 मीटर दौड़ना शुरू किया।’
अहमदनगर के क्रीड़ा प्रबोधिनी हॉस्टल में वह तीरंदाज बने जब एक अभ्यास के दौरान उन्होंने दस मीटर की दूरी से सभी दस तीर निशाने पर लगाए। उसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और परिवार के हालात भी सुधर गए । वह अमरावती के क्रीड़ा प्रबाोधिनी गए और बाद में पुणे के सैन्य खेल संस्थान में दाखिला मिला ।