नेशनल
जब महात्मा गांधी ने वतन वापसी का मन बनाया
नई दिल्ली) बीते समय में ऐसे कई अवसर आए , जब महात्मा गांधी वतन-वापसी का पक्का मन बना चुके थे। अक्टूबर 1901 में वह डरबन से बेहतरी की आस में अपने परिवार के साथ रवाना हुए। लेकिन एक ही साल बाद उन्हें दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों के लिए युद्धोत्तरकालीन वार्ता के लिए वापस आना पड़ा। हालांकि उन्होंने उम्मीद की थी कि जितना जल्दी हो सकेगा वह लौट आएंगे।
सन् 1904 में उन्होंने लॉर्ड मिलनर को समझौते का एक प्रस्ताव भेजा जो श्वेतों और उग्र भारतीयों की मांगों का बीच का रास्ता था। अगर वो स्वीकार हो गया होता तो गांधी, कस्तूरबा और बच्चों के पास चले जाते और बंबई हाईकोर्ट में तीसरी बार भाग्य आजमा रहे होते।
जब मिलनर ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया तो गांधी ने फिर अपने परिवार से कहा कि वो दक्षिण अफ्रीका आ जाएं। सन 1906 और 1909 में उन्होंने भारतीयों के अधिकारों की पैरवी के लिए लंदन की यात्रा की और इनमें से किसी भी मौके पर अगर उनकी मांगें मान ली जातीं तो वह भारत लौट जाते। सन् 1911 की गर्मियों में एक बार फिर से उन्होंने यह उम्मीद की कि जनरल स्मट्स उनकी मुख्य मांगों को मान लेंगे, लेकिन वैसा भी नहीं हो सका। इसलिए सत्याग्रह का एक ताजा चक्र शुरू करना पड़ा।
आखिरकार एक आखिरी समझौता कानून का शक्ल लेने वाला था और गांधी परिवार अपने दोस्त प्राणजीवन मेहता की पुरानी इच्छा को पूरा करने के लिए अब स्वदेश लौट सकते थे।
सन् 1911 में दक्षिण अफ्रीका से अपनी किसी भी क्षण वापसी की तैयारी में गांधी ने जोहांसबर्ग में अपनी वकालत एल. डब्ल्यू. रिच को सौंप दी थी। उसके बाद मई 1913 में हेनरी पोलक, डरबन गए जहां उसने स्मिथ स्ट्रीट में कार्यालय खोला और वहां पर वह मुवक्किलों और इंडियन ओपिनियन के ग्राहकों से मिलता थे। चूंकि उन्होंने समुदाय की सेवा के लिए अनुभवी व्यक्तियों का इंतजाम कर दिया था, ऐसे में अब गांधी को यह उम्मीद थी कि वह स्वदेश लौट सकते हैं। वह दक्षिण अफ्रीका, महज एक समस्या को सुलझाने के लिए आए थे और वहां अबाध रूप से दो दशकों तक रह गए थे।
फरवरी 1914 के आखिरी सप्ताह में गांधी ने गोखले को लिखा कि वह अप्रैल में अपने परिवार के साथ रवाना होना चाहते हैं। उनके साथ फीनिक्स स्कूल के कुछ लड़के भी आएंगे। उनके गुरु ने उनसे यह शपथ ली थी कि वह स्वदेश वापसी के बाद एक साल तक राजनीतिक मसलों पर कुछ नहीं बोलेंगे।
गांधी ने कहा, “उस शपथ का ‘अक्षरश: पालन’ किया जाएगा। उन्होंने गोखले से कहा कि उनकी वर्तमान इच्छा यह है कि वह उनके साथ सेवक और सहगोयी के रूप में काम करें। मैं चाहता हूं कि मैं जिससे प्रेम करता हूं और जिसे प्रेरक के रूप में मानता हूं उसके साथ एक वास्तविक शिष्य के रूप में रहूं। मैं जानता हूं कि मैं दक्षिण अफ्रीका में आपका एक अच्छा सहयोगी साबित नहीं हो पाया लेकिन अगर आप स्वीकार करें तो मैं उसकी भरपाई अब अपनी मातृभूमि में करना चाहता हूं।”
(पेंगुइन बुक्स द्वारा हिंदी में शीघ्र प्रकाश्य रामचंद्र गुहा की पुस्तक ‘गांधी : भारत से पहले’ का एक अंश)
नेशनल
पीएम मोदी पर लिखी किताब के प्रचार के लिए स्मृति ईरानी चार देशों की यात्रा पर
नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी एक नवीनतम पुस्तक ‘मोडायलॉग – कन्वर्सेशन्स फॉर ए विकसित भारत’ के प्रचार के लिए चार देशों की यात्रा पर रवाना हो गई हैं। यह दौरा 20 नवंबर को शुरू हुआ और इसका उद्देश्य ईरानी को मध्य पूर्व, ओमान और ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों से जोड़ना है।
स्मृति ईरानी ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि,
एक बार फिर से आगे बढ़ते हुए, 4 देशों की रोमांचक पुस्तक यात्रा पर निकल पड़े हैं! 🇮🇳 जीवंत भारतीय प्रवासियों से जुड़ने, भारत की अपार संभावनाओं का जश्न मनाने और सार्थक बातचीत में शामिल होने के लिए उत्सुक हूँ। यह यात्रा सिर्फ़ एक किताब के बारे में नहीं है; यह कहानी कहने, विरासत और आकांक्षाओं के बारे में है जो हमें एकजुट करती हैं। बने रहिए क्योंकि मैं आप सभी के साथ इस अविश्वसनीय साहसिक यात्रा की झलकियाँ साझा करता हूँ
कुवैत, दुबई, ओमान और ब्रिटेन जाएंगी स्मृति ईरानी
डॉ. अश्विन फर्नांडिस द्वारा लिखित यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन दर्शन पर प्रकाश डालती है तथा विकसित भारत के लिए उनके दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करती है। कार्यक्रम के अनुसार ईरानी अपनी यात्रा के पहले चरण में कुवैत, दुबई, फिर ओमान और अंत में ब्रिटेन जाएंगी।
On the move again, embarking on an exciting 4 nation book tour! 🇮🇳Looking forward to connecting with the vibrant Indian diaspora, celebrating India’s immense potential, and engaging in meaningful conversations. This journey is not just about a book; it’s about storytelling,… pic.twitter.com/dovNotUtOf
— Smriti Z Irani (@smritiirani) November 20, 2024
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