प्रादेशिक
पिता की खोई विरासत पाने की लड़ाई में चक्रव्यूह में फंसे हैं शाश्वत
भागलपुर| सिल्क सिटी भागलपुर में राजनीति चरम पर है और सभी दल के उम्मीदवार अधिक से अधिक मतदाताओं तक खुद पहुंचने की कवायद में जुटे हैं परंतु भागलपुर के समीकरण हर चुनाव में बदलने के कारण और जातिगत समीकरण में सामाजिक न्याय वर्ग की अधिकाधिक भागीदरी से सभी दल के उम्मीदवारों में बेचैनी है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के प्रत्याशी अर्जित शाश्वत जहां अपने पिता सांसद अश्विनी चौबे की विरासत को हासिल करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, वहीं सत्तारूढ़ महागठबंधन (जदयू, कांग्रेस और राजद) के प्रत्याशी कांग्रेस के नेता अजीत शर्मा किसी हाल में इस सीट पर अपना कब्जा जमाए रखना चाहते हैं।
भागलपुर विधानसभा सीट पर मुकाबला जोरदार है। सिल्क नगरी भागलपुर विधानसभा सीट बिहार की महत्वपूर्ण सीटों में से एक है। सभी दल जीत दर्ज करने की कोशिश में हैं। वर्ष 2010 के आम चुनाव में इस सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2014 के उपचुनाव में बाजी पलट गई। यहां से कांग्रेस के अजीत शर्मा ने भाजपा उम्मीदवार को पराजित कर दिया था।
विधायक अश्विनी चौबे के लोकसभा चले जाने के कारण उपचुनाव हुआ था। इस सीट पर 1990 से भाजपा का लगातार कब्जा रहा है। लिहाजा, इस चुनाव में भाजपा पूरा जोर लगाकर इस सीट को हासिल करना चाहेगी।
भागलपुर विधानसभा क्षेत्र का पूरा इलाका शहरी है। भागलपुर शहर प्रमंडल और जिला मुख्यालय भी है। लेकिन विकास के आईने में इस क्षेत्र की तस्वीर धुंधली नजर आती है। पिछले 10 वर्षो में योजनाएं तो कई गिनाई जा रही हैं परंतु ऐसी कोई योजना धरातल पर नहीं उतरी, जिससे शहर की तस्वीर बदली हो।
पूर्व मेयर वीणा यादव कहती हैं कि सही मायने में शहर के विकास के बारे में किसी ने गंभीरता नहीं दिखाई। आज ट्रैफिक जाम रहता है। कई क्षेत्रों में जलजमाव की समस्या है, परंतु कुछ नहीं हो पाया।
भागलपुर के व्यवसायी रामऔतार साह विकास के मुद्दे पर पूछने पर आक्रोश व्यक्त करते हुए कहते हैं, “ड्रेनेज सिस्टम के लिए सात साल पहले 46 करोड़ रुपये स्वीकृत होने के बाद भी निर्माण नहीं हुआ। नतीजा यह है कि घंटे भर की बारिश में बाजार से लेकर कालोनियों की गलियां तालाब बन जाती हैं।”
उन्होंने कहा कि भोलानाथ पुल पर फ्लाईओवर बनाने की बात 10 साल से हो रही है। अब तक योजना नहीं बन पाई लेकिन अलग-अलग दल के नेताओं ने चुनावी मौसम में इसे मुद्दा बनाकर वोटरों को लुभाने का काम जरूर किया।
भागलपुर सीट कांग्रेस और भाजपा की प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। इस सीट की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सोनिया गांधी ने अपने चुनाव प्रचार का आगाज यहां से की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इसके पड़ोसी जिले बांका में चुनावी रैली को संबोधित कर चुके हैं। भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह भी यहां चुनावी सभा कर चुके हैं।
तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विजय कुमार कहते हैं कि भागलपुर पारंपरिक रूप से सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील इलाका रहा है। यह विधानसभा क्षेत्र यादव, कुर्मी, गंगोता और मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। उनका कहना है कि इस विधानसभा क्षेत्र में जाति आधारित वोट काफी अहम हो जाते हैं।
वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के अश्विनी चौबे ने कांग्रेस उम्मीदवार अजीत शर्मा को 11,060 मतों से हराकर इस सीट पर पांचवीं जीत दर्ज की थी। भागलपुर संसदीय सीट पर 2014 में हुए लोक सभा चुनाव में राजद के बुलो मंडल उर्फ शैलेश कुमार ने भाजपा के दिग्गज शाहनवाज हुसैन को हराया था।
विधानसभा अध्यक्ष और कई मंत्री देने वाले इस विधानसभा सीट पर इस चुनाव में अश्विनी चौबे के पुत्र अर्जित शाश्वत राजग के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में हैं, जबकि भाजपा के नगर उपाध्यक्ष रहे विजय साह के बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में आने से शाश्वत मझधार में फंसे हैं।
भागलपुर के वरिष्ठ पत्रकार शिवलोचन कहते हैं कि राजग के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न जरूर बना हुआ है, परंतु बागी भाजपा कार्यकर्ता अभी भी असंतुष्ट हैं, जो भाजपा के लिए यहां मुश्किल पैदा कर रहे हैं। शिवलोचन कहते हैं कि असंतुष्टों को मना लेने के बाद भाजपा के लिए राह आसान हो सकती है।
बहरहाल, भागलपुर सीट पर सभी पार्टियों की निगाह है। भाजपा किसी भी सूरत में इसे फिर से पाना चाहती है, यही हाल कांग्रेस का भी है। वैसे मतदाता अभी खुलकर कुछ नहीं बोल रहे, परंतु इतना तय है कि मुख्य मुकाबला राजग और सत्ताधरी गठबंधन के बीच है। भागलपुर विधानसभा क्षेत्र में 12 अक्टूबर को मतदान होना है।
बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए 12 अक्टूबर से पांच नवंबर के बीच पांच चरणों में मतदान होना है। मतों की गिनती आठ नवंबर को होगी।
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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई
नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।
बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।
बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।
ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।
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