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उत्तराखंड

सोमवती आमावस्या पर लाखों ने लगाई गंगा में डुबकी

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सोमवती अमावस्या का स्नान, आर्द्रा नक्षत्र, गंगा में डुबकी, हरकी पैड़ी

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सोमवती अमावस्या का स्नान, आर्द्रा नक्षत्र, गंगा में डुबकी, हरकी पैड़ी

Somwati Amavsya

हरिद्वार। सोमवती अमावस्या का स्नान सोमवार को आर्द्रा नक्षत्र में शुरू हो गया। इस दौरान हजारों लोगों ने हर की पैड़ी सहित हरिद्वार और ऋषिकेश के तमाम घाटों पर पवित्र स्नान किया।

रविवार की रात मृगशिरा नक्षत्र समाप्त होते ही मुहूर्त प्रारंभ हो गया। सोमवार को सांय 6.32 बजे तक स्नान का मुहूर्त बना रहेगा। चंद्रमा के रात नौ बजे मिथुन राशि में प्रवेश करते ही मुहूर्त प्रारंभ हुआ। यह पर्व काल सोमवार की देर शाम तक बना रहेगा। रविवार की रात से स्नान शुरू हो गया।

सोमवती अमावस्या पर स्नान, दान और श्राद्घ का विशेष महत्व है। सवेरे गंगा स्नान कर हजारों महिलाओं ने नगर में फैले पीपल के वृक्षों की 108 परिक्रमाएं की। अनेक प्रकार के पदार्थ दान दिए। महिलाओं ने हरकी पैड़ी सहित गंगा तटों पर उद्यापन भी किया।

सुबह से ही हरकी पैड़ी पर गंगा स्नान के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ रहे हैं। सुबह से ही हरकी पैड़ी सहित सभी गंगा घाटों पर श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगा रहे हैं।

मान्यता है कि आज के दिन गंगा मे स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और पितरों का तर्पण करने से पित्रों को मुक्ति मिलती है। सोमवती अमावस्या में गंगा स्नान का अपना ही एक महत्व है। स्नान की इस तिथि का योग वर्षो में एक बार आता है इसलिए इस दिन गंगा स्नान का अपना ही एक महत्व है।

ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट समेत तमाम छोटे घाटों में दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान कर पुण्य अर्जित किया। गंगा स्नान करने के लिए पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश सहित देश के कोने-कोने से श्रद्वालु हरिद्वार पहुंचे। इस बीच सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी किए गए हैं।

जब सोमवार को अमावस्या पड़ती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहते है। इसमें भगवान विष्णु और लक्ष्मी के रूप में पीपल का पूजन करते है। इस दिन पीपल का पूजन और परिक्रमा सबसे महत्वपूर्ण है।

पीपल की 108 परिक्रमा करने से सौभाग्य धन और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। वहीं स्नान पर्वों पर गंगा में डुबकी लगाने का भी एक अलग महत्व होता है।

 

 

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उत्तराखंड

शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद

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उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.

उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।

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