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बिजनेस

बुलेट की सफलता के पीछे इस शख्स की है मेहनत, जानकर होगा भारतीय होने पर गर्व

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आपने सड़कों पर बुलेट को अक्सर दौड़ते हुए देखा होगा। बुलेट की खासियत यह है कि दूर से उसकी दमदार आवाज की गड़गड़ाहट से आस-पास के लोगों को पता चल जाता है कि बुलेट आ रही है। भारतीय बाजार में बुलेट को काफी पसंद किया जाता है। अगर देसी भाषा में बोला जाए तो जिसके पास बुलेट होती है उसका अलग ही भौकाल होता है। भारत से बुलेट का रिश्ता 115 साल पुराना है। रॉयल एनफील्ड 1955 से भारत में हैं।
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साभार इंटरनेट

पहली बार बुलेट को भारत हिमालय में भारतीय सेना के इस्तेमाल के लिए लाया गया था, और तबसे इन कठिन रास्तों पर सफलता की नई इबारत लिखते हुए भारत में अडवेंचर के साथ रॉयल एनफील्ड का रिश्ता चल रहा है। दमदार आवाज से लोगों के दिलों पर छा जाने वाली बुलेट ने अपनी शुरुआत सुई के साथ की थी। 1851 में जिस कंपनी ने सुई बनाने का काम शुरु किया था वह 1950 तक रॉयल एनफील्ड की वजह से पूरी दुनिया में मशहूर हो गई थी।

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रॉयल एनफील्ड ने 1956 में भारत में कंपनी की शुरुआत की। 1971 में ब्रिटेन ने बाइक बनाना बंद किया मगर भारत में बुलेट बनती रही। 1994 में आयशर ग्रुप ने एनफील्ड इंडिया को खरीद लिया और उसका नाम रॉयल एनफील्ड दिया। बुलेट की लोकप्रियता के बाद एक दौर ऐसा भी आय़ा जब बाइक की सलाना बिक्री घटकर 2000 रह गई। उस वक्त कंपनी बंद होने की कगार पर आ गई। लेकिन एक शख्स ने बुलेट की किस्मत बदल कर रख दी।

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आयशर मोटर्स के सीईओ सिद्धार्थ लाल ने वो कर दिखाया जिससे आज के समय में उनको टक्कर देना नामुमकिन हो गया है। आज के टाइम में रॉयल एनफील्ड भारत का सबसे पसंदीदा बाइक ब्रांड है। उसके बाइक्स की डिमांड भारत के अलावा अमेरिका और यूरोप में भी बहुत ज्यादा है। आज इनकी बाइक जितनी सफल है उतने ही संकट से 17 साल पहले थी। रॉयल एनफील्ड की सफलता के महत्व आप इस उदाहरण से लगा सकते हैं।

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जब 2001 में रॉयल एनफील्ड खरीदने के लिए 55000 खर्च किये है तो अभी आपके पास एक पुरानी बुलेट बाइक होगी लेकिन अगर आप ने आयशर मोटर्स में 55000 का निवेश किया होता तो आज उनकी कीमत लगभग साढ़े तीन करोड़ हो जाती है।

सिद्धार्थ का जन्म 1973 में हुआ था। वो विक्रम लाल के पुत्र है, जो ईशर मोटर्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे। अपने पिता की तरह, सिद्धार्थ ने भी अपनी माध्यमिक शिक्षा द डॉन स्कूल से पूरी की थी। बारहवीं कक्षा को पूरा करने के बाद, सिद्धार्थ ने 1994 में दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की।

सिद्धार्थ ग्रेजुएट होने के बाद आयशर मोटर्स से जुड़ गए। उस समय आयशर सिर्फ 15 तरह के बिजनेस को चलता था, जैसे ट्रक, मोटरसाइकिल। पहले से बाइक के शौकीन रखने वाले सिद्धार्थ ने रॉयल एनफील्ड में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई और कंपनी को दुनिया के सबसे बड़े ब्रांड में शुमार कर दिया।

“एनफील्ड इंडिया” कंपनी को खड़ा करने के लिए चेन्नई में कंपनी बनाई। भारतीय कानून के तहत मद्रास मोटर्स ने कंपनी में बहुमत 50% से अधिक शेयर अपने पास रखे। रॉयल एनफील्ड’ नाम और अधिकार मैट होल्डर ने 1967 में दिवालिया कंपनी की बिक्री के दौरान खरीदे थे।

होल्डर परिवार ने 1967 से लेकर वर्तमान तक रॉयल एनफील्ड मोटरसाइकिलों के लिए स्पेयर का उत्पादन किया है लेकिन रॉयल एनफील्ड नाम के तहत मोटरसाइकिल का व्यापार नहीं किया। डेविड होल्डर ने भारत के एनफील्ड द्वारा ‘रॉयल एनफील्ड’ के उपयोग पर विरोध किया, जबकि ब्रिटेन की एक अदालत ने भारतीय कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया।

रॉयल एनफील्ड भारत में ही मोटरसाइकिलों का निर्माण और बिक्री करता है। इसके साथ ही यूरोप, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी निर्यात करता है। रॉयल एनफील्ड की रीडिज़ाइन के बाद ने बाइक की डिमांड इतनी बढ़ गयी है कि रॉयल एनफील्ड ने अपनी फैक्ट्रीज में दुगुनी मोटरसाइकिल का उत्पादन कर रही है।

जब भारत का दोपहिया उद्योग 2014 में तेज़ी से बढ़ा, मोटरसाइकिल की बिक्री में मामूली 2.5% की बढ़ोतरी हुई। रॉयल एनफील्ड ने बिक्री में 70% इज़ाफ़ा दर्ज किया। 300,000 बाइक रिकॉर्ड बेचीं और पहली बार शक्तिशाली हार्ले-डेविडसन को हराया। एनफील्ड आज के समय में सालाना 450,000 मोटरसाइकिल दुनिया भर में बेच रहा है।

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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई

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नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।

बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।

बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।

ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।

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